मिलेट कुकीज़ ने की ज़िंदगी सेट

प्रदेश में महिलाओं के स्वसहायता समूह अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रहे हैं. वहीं प्रदेश की आदिवासी महिलाओं ने मोटा अनाज और महुआ से कुकीज़ बनाकर अपना अलग मुकाम हासिल किया है. डिंडोरी जिले में महिलाओं द्वारा बनाए जा रहे कुकीज़ स्वाद का हिस्सा बन गए.

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देशदीप सक्सेना
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डिंडोरी जिले में स्वसहायता समूह की सदस्य महिलाएं मोटे अनाज से कुकीज़ बनाती हुईं (Image Credits: Ravivar Vichar)

अमेरिका और यूरोप के साथ अब भारत में भी सुपर फूड्स का क्रेज़ है. मिलेट्स या मोटा अनाज सुपर हेल्थ फूड बन अपने देसी स्वाद और न्यूट्रीशन के साथ दुनियाभर में धूम मचा रहा है. यह स्वाद है महुआ और कोदो-कुटकी जैसे मोटे अनाज से बनी कुकीज़ (बिस्कुट) का.

मध्य प्रदेश के आदिवासी बाहुल्य डिंडोरी में बैगा और गौंड जाति की महिलाओं ने मिलकर स्व -सहायता समूह SHG बनाया. इन महिलाओं की इस कोशिश ने यहां का नजारा ही बदल दिया। कभी गुमनाम जिंदगी जी रही इन महिलाओं ने आज इन कुकीज़ के साथ अपना नाम देश विदेश में मशहूर कर लिया.  रात दिन मेहनत कर दो सौ से ज्यादा महिला समूह में 34 हजार से ज्यादा महिलाएं जुट गई.अब यही उनकी कमाई का साधन बन गया. प्रोटीन और फाइबर से भरपूर इन कुकीज़ का स्वाद और नाम अब प्रसिद्ध हो रहा है.

डिंडोरी की तेजस्विनी नारी विकास महिला संघ की रजनी मांडे अब गर्व से बताते है- "हम 3 से 4 क्विंटल कुकीज़ की पैकिंग तैयार कर अलग अलग बाजारों तक पहुंचा रहे हैं " रजनी ने आगे बताया कि वह 200 समूहों की देखरेख कुकीज बनवाती है.  इन समूहों में जुड़ी सैकड़ों महिला सदस्यों आर्थिक जीवन पटरी पर आने लगा साथ ही हिम्मत भी आई. ।इन्हीं में से कुछ समूहों ने आगे की सोच रखते हुआ नमकीन भी तैयार किए.  

तेजस्विनी नारी विकास महिला संघ की रामसखी धुर्वे का परिवार भी अब खुश है. तंगहाली का जीवन जीने वाला यह परिवार अब अपनी ख्वाहिश पूरी कर रहा है. उनका कहना है कि संघ से कमाई लगभग 30 से 35 हजार रुपए सालाना हो रही है.

इन SHGs को सरकार का भी पूरा साथ मिला जब पूरे देश में मोटे अनाज की खेती पर फोकस किया गया. इनकी फसल को बढ़ावा देने के लिए किसानों को प्रोत्साहित किया जा रहा है . यहाँ तक की भारत सरकार ने वर्ष 2023 को "ईयर ऑफ द मिलेट्स" घोषित किया. इसका मकसद मोटा अनाज उत्पादन बढ़ावा देना है.  इस पहल मोटे अनाज  की खेती और उससे बनी चीजों को नए बाजार मिलेंगे.

सबसे बड़ी बात इस साल G20 सम्मेलन में जहां भारत मेजबानी कर रहा है, वहीं यहां मोटा अनाज ( मिलेट) चर्चा में है. डिंडोरी और आसपास के जिले में पिछड़े वर्ग में माने जाने वाली बैगा और गौंड जाति के लोगों ने मोटा अनाज(मिलेट्स)का उत्पादन कर अपने आप को दुनिया के नक्शे पर उभरा है.  इस काम में आदिवासी महिला SHG के काम और मेहनत सबसे आगे है.  जब देसी ज्वार ,बाजरा,  कोडा  कुटकी को बढ़ावा देने के लिए जी-20 सम्मेलन के लंच में विदेशी मेहमानों के सामने परोसा गया तो निश्चित तौर पर SHG की महिलाओं के चेहरे पर गर्व देखा गया होगा.

 

(Image Credits: Ravivar Vichar)

जहां प्रदेश के डिंडोरी की ही लहरी बाई भी ने दो कमरों के मकान में मोटा अनाज पैदा कर गोदाम बना दिया वही प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी इंदौर में आयोजित जी 20 की पहली कृषि कार्य समिट में मोटा अनाज (मिलेट) को दुनिया भर में पहुंचाने की बात कही. यह शुरुआत है तेजस्विनी नारी विकास महिला संघ जैसे सैकड़ों SHGs के लिए जिन्हे कुकीज से आगे बढ़कर कई नई राहें खोजनी और बनानी है. शायद इसीलिए डिंडोरी में लेहरी बाई हो या रामसखी, इनके महिला समूह देश प्रदेश में अपना नेटवर्क बढ़ा रही है. आसमान तो अभी इनके लिए खुला है इ

न्हे पंख पसारना अभी बाक़ी है. मोटे अनाज के रूप में पहचाने जाने वाला कोदो या इसे क्षेत्रीय भाषा में कोदरा भी कहते हैं. यह एक अनाज की ही किस्म है। भारत के साथ नेपाल में भी इसकी खेती की जा रही है.


कोदो- कुटकी की ओर उनका रुझान अधिक बढा जो डायबिटीज,ब्लड प्रेशर और लीवर जैसी बीमारियों से ग्रसित हैं।यह फसल दो से तीन माह में तैयार हो जाती है। यह मोटा अनाज व उत्पाद यूएई,यूएसए,अमन,लीबिया,नेपाल आदि देशों में एक्सपोर्ट किया जा रहा है.

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(Image Credits: Ravivar Vichar)

महिला डिंडोरी ईयर ऑफ द मिलेट्स कुकीज