मदर्स डे: मां के शब्द ने बना दिया अफसर

बालाघाट जिले में लगभग तीन साल से एसडीम और डिप्टी कलेक्टर के पद अपनी सेवाएं दे रही है. लोकप्रियता और इस मुकाम पर पहुंचने का श्रेय निकिता अपनी मां राधा मंडलोई को देती हैं.निकिता के संघर्ष और मेहनत की कहानी आज युवाओं के बीच मिसाल बन गई.

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Nikita Balaghat SDM

बालाघाट जिले में अपने कैबिन में बैठी एसडीएम निकिता

बालाघाट जिले के किरनापुर के सरकारी मुख्यालय में इस वक़्त एसडीएम निकिता राधा मंडलोई की नेम प्लेट लगी हुई है. इस कैबिन के दरवाज़े सबके लिए खुले हैं. यहां निकिता जरूरतमंद लोगों की उलझनों को सुलझा देती है. उनकी मदद करने का अंदाज़ इस इलाके में चर्चित है.यही नहीं उनका पर्सनल मोबाइल नंबर भी अब सार्वजनिक है. निकिता बालाघाट जिले में  लगभग तीन साल से एसडीम और डिप्टी कलेक्टर के पद अपनी सेवाएं दे रही है. लोकप्रियता और इस मुकाम पर पहुंचने का श्रेय निकिता अपनी मां राधा मंडलोई को देती हैं.निकिता के संघर्ष और मेहनत की कहानी आज युवाओं के बीच मिसाल बन गई. मदर्स डे पर "रविवार विचार" ऐसी युवा लेडी ऑफिसर की कहानी लोगों तक पहुंचा रहा,जो दूसरे लोगों के लिए बड़ी सीख  बनेगी.

 एसडीएम निकिता

सरकारी स्कूल में पढ़ाते हुए एसडीएम निकिता 

एसडीएम निकिता कहती हैं - "मैं सिर्फ क्लास 12 वीं थी. उस रात मुझ पर और परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट गया,जब पिता चल बसे. अकेली मां और हम तीन बच्चे ,सभी आधी-अधूरी बीच पढ़ाई में पिता का साया उठ गया.आर्थिक और मानसिक रूप से मैं टूट गई.इस वक़्त मां के भीतर गज़ब का धैर्य मैंने देखा. कुछ दिन में ही वह दोहरी भूमिका में दिखाई दी. उनमें मेरे पिता और मां की झलक दिखने लगी. वह चाहे ज्यादा न पढ़ सकी पर मां ने एक बात कही -पिता के सपने को पूरा करो.और अधिक मेहनत करो.उस दिन मैंने संकल्प लिया और पलट कर पीछे नहीं देखा."  

खरगोन के उत्कृष्ट सरकारी स्कूल में पढ़ाई की. निकिता ने पिता के निधन के बाद पढ़ाई में पूरी ताकत झोंक दी. दोनों बड़े भाइयों ने भी ग्रेजुएशन पूरा किया.पिता के समय मिली थोड़ी सी जमीन पर खेती में मां जुटी रही.उधर निकिता की मेहनत रंग ले आई. प्रदेश के प्रतिष्ठित एसजीएसआईटीएस इंजीनियरिंग कॉलेज इंदौर में चयन हुआ और उसने वहां से ग्रेजुएशन किया.

निकिता आगे बताती है -" पिता मुझे बचपन से कहते थे. समाज के लिए कुछ करना है तो अफसर बनो. उनके चले जाने के बाद भी यह बात मुझे संकल्प की तरह याद थी. मैंने एक ही मकसद बनाया सिर्फ पढ़ाई और मेहनत. आखिर घर में खुशियां आईं और मेरा चयन पीएससी बैच 2019 के लिए हो गया. और पहली ही पोस्टिंग नक्सल प्रभावित बालाघाट जिले में हुई. मुझे यह दोहरी चुनौती मिली. और मैंने सहर्ष स्वीकार किया. "

एसडीएम निकिता

 बाढ़ के दौरान रेस्क्यू टीम के साथ निकिता 

अपनी बेटी की उपलब्धि पर मां राधा मंडलोई कहती है -" निकिता शुरू से बहुत मेहनती और संवेदनशील रही. उसकी मेहनत के आगे मैं सारे गम भूल गई. खेत में जाते हुए भी यह नहीं भूली कि मुझे बच्चों को पिता की कमी भी पूरी करनी है.निकिता के अफसर बनने पर मुझे गर्व है. उसने अपने पिता का सपना पूरा कर दिया. " निकिता के भाई भी अब रोजगार से जुड़ गए. 

"मां की सीख ने बनाया सफल " 

आदिवासी गरीब बस्ती के लोगों की मदद के कई किस्से इलाके में चर्चा में आ गए. निकिता अपने जॉब के अनुभव बताती है -" लोगों की मदद के लिए ही हमें इस पद पर बैठाया गया है. अवकाश लेकर मैं रेलवे स्टेशन जा रही थी. पता चला कि एक छात्रा जाति प्रमाण-पत्र बनवाने आई और वह दिन एडमिशन का आखरी दिन था. मेरे साइन के बिना वह एडमिशन से वंचित रह जाती.मैंने अपना वाहन ऑफिस की ओर ले जाने को कहा.ऑफिस में उदास बच्ची के प्रमाण-पत्र पर साइन किए और निकल गई ट्रेन पकड़ने. चहरे पर ख़ुशी और चमक देख मुझे मेरी मां की सीख याद आ गई."

Nikita Mandlio Balaghat

अपनी मां राधा मंडलोई के साथ एसडीएम निकिता

कई बार लोगों को मदद के बाद मोबाइल पर थेंक्यु के मैसेज आते हैं. यही निकिता को ऊर्जा देते हैं. वे अपने जिले के सरकारी स्कूल में कई बार विद्यार्थियों को पढ़ाने जाती हैं. अपनी मां को बिजली के बिल और बैंकों की लाइन देखने वाली निकिता चाहती है कि लोकसेवक जनता को आसानी से उपलब्ध हो. ऑफिस के चक्कर न लगाने पड़ें. निकिता कहती है -"संवेदना और भावुकता के बीच यदि हम किसी पीड़ित की बात सुनते हैं तो प्रशासन पर उसका विश्वास बढ़ता है.और हर पल मुझे मेरे कर्तव्य याद रहे इसलिए मैं अपनी मां राधा के साथ पूरा नाम निकिता राधा मंडलोई लिखती हूं. " 

युवा लेडी ऑफिसर डिप्टी कलेक्टर एसडीएम निकिता राधा मंडलोई बालाघाट आदिवासी