इंजीनियरिंग की. एमबीए किया. इंदौर शहर की एक कंपनी में जॉब कर रही थी.फिर गारमेंट्स का बिज़नेस भी किया. सब कुछ ठीक चल रहा था. अचानक लॉक डाउन के बाद नौकरी छूटी. बिज़नेस पर असर पड़ा. रास्ते सारे बंद. ससुराल लौट आने के बाद सोचा,अब जो करेंगे खुद का करेंगे. गौ पालन का मन बनाया. छोटे गांव में रह कर चुनौती थी. पति के साथ दस गायों से शुरुआत की. गांव वालों ने हंसी उड़ाई पर इसे ताकत मान कर कारोबार बढ़ा लिया. केवल दो सालों में अपनी पहचान बना ली. यह कहानी है शाजापुर जिले की किलोदा गांव की बहू पायल पाटीदार की. पायल ने साबित कर दिया कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता.
राजगढ़ जिले के पाडल्या माताजी की पायल को उनके पिता ने उम्मीदों से इंजिनियर बनाया. फिर एमबीए किया. अच्छी खासी जॉब लग गई. शादी के बाद भी जॉब करती रही. पायल कहती है -"गांव लौटने के बाद कोई काम सूझ नहीं रहा था. आखिर पति पीयूष ने हौसला दिया. दस गिर प्रजाति की देशी गाय खरीदी. गोबर उठाना, दूध निकालना, मवेशियों को चारा खिलाना जैसे काम भी करने में संकोच नहीं किया. लोकल और आसपास के गांव में दूध बेचा."
धीरे-धीरे काम में मन लगने लगा. गोबर से कंडे,धूपबत्ती और खाद सहित दूसरे उपयोगी चीज़ें बनाने लगी. पूरे परिवार ने हौसला बढ़ाया. कारोबार बढ़ाने के लिए अब पचास गिर की गाय खरीद लाए.यह गाय गुजरात और राजस्थान से मंगवाई. दूध के साथ दूसरे प्रोडक्ट भी बनाने लगी.
देशी गिर गायों की देखभाल करती पायल
पायल आगे बताती है -" दूध का प्रोडक्शन बढ़ा. अब आसपास के नगरों में दूध सप्लाई करते हैं. घी की ऑनलाइन बिक्री भी शुरू की और कारोबार लाखों में पहुंच गया. मुझे ख़ुशी है की अब इंजीनियर गौ पालक के रूप में पहचान बनाई."
पालतु पशु विशेषज्ञों का भी मानना है कि पौष्टिकता कि नज़र में भी देशी गाय का दूध सबसे बढ़िया होता है. यही सोच कर पायल ने काम के साथ इसे समाज सेवा मान कर गौ पालन का काम शुरू किया. इन दिनों अपने कारोबार के साथ पायल ग्रामीण महिलाओं को भी अपने बल पर आत्मनिर्भर बनने और खुद के कारोबार करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है.
रिपोर्ट :ओम व्यास