जब वो कोई निशाना लगाए, तो कोई गलती नहीं हो सकती थी, माँ ने अपनी बेटी की ये ख़ूबी देखी और उसके लिए हर संभव प्रयास करने का फैसला किया. अंग्रेज़ी में एक कहावत है, 'हिट द बुल्स ऑय'. इस कहावत को अपनी हर रग में बसा लिया था Jharkhand के लोहरदगा (राजाबंगला) निवासी दीप्ति कुमारी ने सरायकेला खरसावां आर्चरी अकेडमी से प्रशिक्षण प्राप्त किया और तीरंदाजी (Archery) में नैशनल खिलाड़ी रह चुकी हैं. हाल ही में दीप्ति ने Jharkhand के मुख्यामंत्री हेमन्त सोरेन से आज उनसे मुलाकात की. उन्होंने मुख्यमंत्री को एक ज्ञापन (memorandum) भेजा, जो पढ़ कर मुख्यमंत्री भी हताश हो गए.
दीप्ति का जीवन किसी भी तरह से कभी आसान नहीं रहा. उन्होंने ज्ञापन में बताया- "माँ ने स्वयं सहायता समूह (SHG) से सात लाख रुपए कर्ज लेकर मेरे लिए चार लाख पचास हजार रुपए में एक धनुष खरीदा, और बहुत आशीर्वाद के साथ मुझे USA भेजने की तैयारी की. लेकिन बदनसीबी देखिये, मैं जब Kolkata पहुंची, तो वह धनुष टूट गया. मेरे पास वापस आने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा था." वे बताती है "मेरी माँ इस सदमे को सह नहीं पाई और बहुत बीमार हो गयी. अब हमारे ऊपर self help group से लिए पैसो का कर्ज़ा हो गया है. उसे चुकाने के लिए मैंने चाय की दूकान भी खोली. कुछ दिनों बाद Ranchi Nagar Nigam के 'अतिक्रमण हटाओ अभियान' में दुकान उजड़ गई और वे घर वापस आ गईं. अब मेरे पास कोई भी आय का स्त्रोत नहीं है. इण्टर की डिग्री सिर्फ एक कागज़ बनकर रह गयी है."
दीप्ति ने अपनी ज़िन्दगी में जितना सहा है उतने पर कोई भी आसानी से टूट जाए, लेकिन वो कहती है- "चाहे कुछ भी हो जाए, मैं ना हार मानूंगी और ना ही हिम्मत हारूंगी. मेरे पास खेलने का हौसला है, आसमान में उड़ने का सपना है, खुद पर भरोसा है और गोल्ड लाने का पक्का ख़्वाब. मैंने ठान रखा है कि झारखंड और अपने देश का नाम मैं दुनिया में रौशन करुँगी." दीप्ति के इस हौसले को देखकर, मुख्यमंत्री की आंखों में भी आसूं आ गए होंगे. उन्होनें दीप्ति कुमारी के शैक्षणिक प्रमाण पत्र तथा उनके द्वारा विभिन्न तीरंदाजी प्रतियोगिताओं में लिए गए हिस्सेदारी और जीते हुए मेडलों की सूची भी देखी. वे दीप्ति कुमारी को भरोसा दिलाया कि राज्य सरकार उन्हें हरसंभव मदद करेगी. इस अवसर पर खेलकूद एवं युवा कार्य मंत्री श्री हफीजुल हसन अंसारी भी उपस्थित थे. दीप्ति कुमारी के हौसले से देखकर देश कि हर लड़की को प्रेरणा मिलती है. इतनी परेशानियां होने के बावजूद वे हार मानाने को तैयार नहीं है. बस ये ही तो चाहिए ऊंचाइयों तक पहुंचने के लिए. दीप्ति का सफर ख़त्म नहीं अब शुरू हुआ है.