" मैं पहले से ही सिलाई का काम कर रही थी. पर मुझे लगा कि कुछ ऐसा काम करूं कि दूसरी जरूरतमंद महिलाओं को भी काम दे सकूं. मैंने नीलकंठ सखी मंडल बनाया. इसमें दस महिलाओं का समूह (self help group-SHG) बना कर हैंडीक्रॉफ्ट आइटम (handicraft) बनाना शुरू किया. कुछ सीखा और कुछ मन से तैयार किया. मुझे ख़ुशी है कि मैं 15 दूसरी जरूरतमंद महिलाओं को भी रोजगार दे सकी.अब हम देशभर के हस्तशिल्प मेले में जाकर हिस्सा लेते हैं. हमारे प्रोडक्ट को बहुत पसंद किया जा रहा है." नीलकंठ सखी मंडल की अध्यक्ष मनीषा ने यह बात बहुत गर्व से कही. हाल ही में इंदौर में आयोजित मालवा उत्सव (Malwa Utsav) में शामिल होने आए सूरत गुजरात के नीलकंठ सखी मंडल के स्टॉल पर ग्राहकों की बहुत भीड़ रही.
हस्तशिल्प मेले में शामिल हुए इस समूह की अध्यक्ष मनीषा बेन डोबरिया आगे कहती हैं -" हमारे समूह द्वारा तैयार प्रोडक्ट की मार्केटिंग के लिए मेरे पति राकेश डोबरिया पूरा साथ देते हैं.हम कच्छ से ब्लॉक प्रिंट का बचा वेस्ट कपड़ा खरीद कर लाते हैं.इससे फेब्रिक जूलरी तैयार की जाती है. इसके दूसरे आइटम भी तैयार किए जाते हैं." इस समूह से जुडी हुईं कीर्ति बेन कहती हैं - "हम इस से समूह से जुड़े तभी से हमारी आर्थिक स्थिति में बहुत सुधार हुआ. हम कच्चा माल ले जाकर अपने घर से आइटम सप्लाई कर देते हैं." इसमें सभी महिलाएं अलग -अलग तरह की चीज़ें बनती हैं. इस समूह के काम से जुड़ीं मित्तल कथिरिया भी बहुत खुश है. मित्तल कहती हैं - " मैंने कभी सोचा नहीं था कि घर बैठ कर भी इतना अच्छा काम मिल जाएगा. कच्चे माल से मैं वूडन जूलरी सहित कई तरह के सामान बना लेती हूं. मुझे कहीं जाना भी नहीं पड़ता और कमाई नहीं अच्छी हो जाती है."
समूह के सदस्यों को कई जगह अवार्ड मिल चुके हैं (फोटो क्रेडिट: रविवार विचार)
गुजरात में भी रोजगार हासिल करना और आत्मनिर्भर बनने की प्रक्रिया में स्वयं सहायता महिला समूह की भूमिका नज़र आने लगी है. नीलकंठ समूह ऐसी हैंडमेड जूलरी बना रहा जो गरीब महिलाओं के सपने और इच्छा तो पूरी कर ही रहा बल्कि समूह से जुड़ी महिलाओं को आर्थिक रूप से मजबूत कर रहा.अब तक कई जगह इस समूह को सम्मान मिल चुके हैं. समूह की मनीषा आगे बताती है -" महिलाओं को सबसे ज्यादा जूलरी पसंद है और मंहगी जूलरी पहन नहीं सकती.इसे ध्यान में रख सब आइटम बनाए. इसके अलावा सभी हैंडमेड बेल्ट,मिरर, बटंस और प्रिंट कपड़े जो प्रेस के साथ कपड़ों पर स्थाई डिज़ाइन बन जाता है,बनाए जा रहे. "
मनीषा सभी महिलाओं को साथ लेकर चल रही है. उनके पति राकेश कहते हैं -" मुझे ख़ुशी है कि महिलाओं को इंदौर,बेंगलुरू, मैसूर, दिल्ली. गुजरात के कई शहर में अहमदाबाद,सूरत,बड़ौदा,पावागढ़ सहित कई शिल्प मेलों में बुलाया. समूह की सभी महिलाओं की आर्थिक हालात सुधर गए. और अब वे सभी स्वाभिमान की जिंदगी जी रहीं हैं."