"आखिर कैंसर बीमारी का नाम सुनते ही कौन नहीं सहम जाएगा.मेरे साथ भी यही हुआ.एक पल के लिए लगा कि मौत के मुंह में खड़ी हूं. पर डॉक्टर ने हिम्मत दी. मैंने ऑपरेशन कराया.वापस जॉब शुरू किया. यहीं एक फ़रिश्ते से मोहब्बत हो गई. सब कुछ जानकर भी राहुल (परिवर्तित नाम ) ने मुझसे शादी की. आज लगता है मैं ऊपर और आसमां नीचे है.मैंने कैंसर को मात देकर ज़िंदगी से मोहब्बत कर ली." ओवेरियन कैंसर से पीड़ित रही रश्मि (परिवर्तित नाम) मुस्कुराते हुए हुए अपनी खुशहाल ज़िंदगी के बारे में गर्व से कहती है.
इस समय महिलाओं में भी अचानक अलग-अलग तरह के कैंसर जैसी बीमारी देखने को मिल रही है. कई बार लक्षण नहीं दिखने या लक्षणों को नज़र अंदाज़ करने का नतीजा इलाज में देरी और मौत कारण बन जाता है. बावजूद एडवांस जांच और समय पर ट्रीटमेंट से काफी हद तक इस बीमारी पर काबू पाया जा चुका है. ऐसे कई उदहारण हैं जिनको ओवेरियन कैंसर था और समय पर इलाज लिया. आज वे ही पीड़ित महिलाएं अपनी खुशनुमा ज़िंदगी जी रहीं हैं. आइए इस बीमारी से लड़ कर बेहतरीन ज़िंदगी जी रही युवतियों और महिलाओं की कहानियों को बताते हैं. ये उदाहरण आपके मन से कैंसर जैसी बीमारी से डर को दूर कर देगी.
कैंसर के कई प्रकार हैं. कई बार कारण पता नहीं चलते. कैंसर सर्जन डॉ. नम्रता कछारा कहती हैं - "महिलाएं जो सारे घर को संभालती हैं, खुद के शरीर पर कभी ध्यान नहीं देती. और यही वजह लक्षणों नज़रअंदाज़ कर देती है. तकलीफ बढ़ने तक इलाज में देर हो जाती है. इस बीमारी में अधिकतर शुरुआत में लक्षण नज़र नहीं आते. महिलाओं में भूख नहीं लगना, कई बार-बार भूख लगना तो कई बार वज़न काम ज्यादा होने लगता है. पेट फूलने लगता है. जो सामान्य लक्षण हैं. पर लक्षण स्थाई हों या बढ़ रहें हो तो डॉक्टर से सलाह लेना चाहिए."
डॉ.नम्रता कछारा
पांच साल पहले 28 साल की एक युवती ने ओवरी कैंसर से लड़ाई लड़ी. और न केवल वह बीमारी से जीती,बल्कि खूबसूरत परिवार के साथ ज़िंदगी बिता रही है. डॉ. नम्रता आगे बताती है-" नेहल (परिवर्तित नाम) मेरे पास आई. एक ओवरी ऑपरेशन से निकाल दी. फिर लक्षण नज़र आए. वह बहुत उदास थी. मैंने हिम्मत दी. नेहल का वापस ऑपरेशन किया. सफल रहा. शादी के बाद एक खूबसूरत बच्चे की मां भी है."
ये केस साबित करते हैं कि समय पर इलाज ही जीवन को सुरक्षित रखता है. रश्मि के जटिल केस में इलाज के दौरान मेहनत लगी. डॉ. नम्रता बताती हैं - रश्मि बहुत उदास थी. उसे ज़िंदगी में अंधेरा ही अंधेरा दिखाई दे रहा था. मैंने काउंसलिंग की. उसकी पूरी ओवरी निकाल दी. उसे समझाया नए बच्चे को जन्म देने की कल्पना से बेहतर है खुद की ज़िंदगी को बचाया जाए.आखिर यह केस मेरी ज़िंदगी का यादगार केस बन गया. एक बड़ी कंपनी में जॉब करते हुए समझदार युवक से ढाई साल पहले रश्मि की शादी भी हो गई.वह पूरी तरह खुश और स्वस्थ है."
मरीज़ का चेकअप करती हुई डॉ.नम्रता
कुछ दिन पहले एक और केस में शुजालपुर से आई एक महिला अपना चेकअप करवाने आई. यहां एडवांस मशीनों से जांच में पता चला कि उसे 8 सेमी की गठान थी जो कैंसर की थी. डॉ. नम्रता इस केस को लेकर बताती है - "छोटे शहरों में सामान्य मशीनों से जांच होने से इस बीमारी का पता नहीं चला. यहां उसका सफल ऑपरेशन किया. उसे शुगर,बीपी के साथ दूसरी और दिक्क्तें थीं. अब वह स्वस्थ होकर लौट गई."
ओवरी कैंसर यानि बच्चेदानी के कैंसर इलाज न करवाया तो जानलेवा हो सकता है.यह अलग-अलग स्टेज में तीन तरह के होते हैं. 18 से 30 साल की उम्र में जर्म सेल ट्यूमर, 35 से 45 साल के आसपास महिलाओं को बॉर्डर लाइन कैंसर होने की आशंका रहती है. इस समय डॉक्टर को महिला के सेक्स पॉवर को बचाना भी चुनौती होता है. इस तरह के कैंसर में यदि जांच न कराई तो ट्यूमर बढ़ जाता है. आखरी में 45 से 70 साल के बीच महिलाओं को थर्ड स्टेज में पता चलता है ,जब तक ओवरी से पानी बॉडी में फ़ैल जाता है. डॉ. नम्रता कहती है -"अब सर्जरी और कीमोथैरेपी बहुत एडवांस है. बिना डरे इलाज करना चाहिए. भावुक होकर डरने की बजाए आत्मविश्वास से इसके खिलाफ लड़ें. पीड़ित महिलाओं को नया जीवन मिल जाता है."