अचार वाली दीदी

वह अभी तक कल्पना नहीं कर पा रही थी. तीन साल पहले तक खेतों में दूसरे के यहां मजदूरी करने वाली सविता मंच पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने खड़ी थी.अब वह गांव में अचार वाली दीदी के नाम से पहचानी जाती है.   

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विवेक वर्द्धन श्रीवास्तव
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Aachar wali Didi Ratlam CM Shivraj Singh

Image Credits : Ravivar Vichar

रतलाम जिले का गांव धामनोद में लगे डोम में पैर रखने की जगह तक नहीं. मंच पर मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह खड़े हैं. उनके भाषण के पहले संचालक ने नाम पुकारा सविता देवी चौहान को अधिकारी सम्मान से मंच पर लाए. भीड़ में खड़ी सविता अपनी तीन अन्य साथियों के साथ मंच पहुंची. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह कहते हैं - आप ही हो न अचार वाली दीदी. सविता ने कहा - जी सर.  इतना कहते ही उसने अपने हाथों में पकड़ी अचार की पैक बॉटल सीएम को दे दी. आप को और अवसर और मार्केट के तरीके सिखाए जाएंगे. अधिकारियों को कह दिया है. धीरे -धीरे  वह मंच से उतर गयी. वह अभी तक कल्पना नहीं कर पा रही थी ,उसने अपनी साथियों को गले लगा कर वहीं हग कर लिया. तीन साल पहले तक खेतों में दूसरे के यहां मजदूरी करने और अपनी मेहनत के पैसे मांगने के लिए गिड़गिड़ाने वाली सविता मंच पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सामने खड़ी थी. पूरे स्वाभिमान के साथ. उसकी प्रशंसा के पुल बांधे जा रहे थे. अब वह गांव में अचार वाली दीदी के नाम से पहचानी जाती है. 

कलोरी खुर्द गांव की सविता चौहान  की कहानी बड़ी दिलचस्प है. सविता और उसके पति हीरालाल चौहान खेत मजदूरी के लिए जाते. सविता कहती है -"मेरा छोटा बेटा गोदी में था. मजदूरी कर पेट भरना ही किस्मत में था. मैं  चिलचिलाती धूप में बच्चे को पेड़ के नीचे झोली बांध कर सुलाती थी. बड़ा बेटा घर पर छोड़ कर आती. " ये कोई एक दिन की बात नहीं थी. इतनी मेहनत और पसीना हर रोज बहाने के बाद भी घर चलना मुश्किल हो रहा था. पति -पत्नी समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर इस ज़िंदगी कि मुश्किलों से कैसे निजात पाई जाए.

और एक दिन कलोरी खुर्द में जिला पंचायत की टीम पहुंची. ऐसे ही मजदूरों और कुछ वहां मौजूद महिलाओं को पंचायत सदस्य सरकारी स्कीमों को समझा रहे थे. अपने पैरों पर कैसे खड़ा हुआ जाए ,कैसे स्वाभिमान की ज़िंदगी जी सकें,यह सब शामिल था. शाम हो रही थी महिलाएं मजदूरी से लौट रही थी. उनमें सविता भी शामिल थी. पंचायत में चहल-पहल देख वह भी रुकी. खुद का रोजगार और कमाई की बात सुनते ही वहीं बैठ गई. हालांकि सरकारी स्कीम का सुनकर महिलाओं के गले बात पूरी तरह नहीं उतरी. सविता ने वहां बैठे अधिकारियों से कहा -"साब ,परेशान तो बहुत हैं. पर हमारे पास पैसा है न कोई धंधा शुरू करने का आइडिया." अधिकारियों के समझाने पर सविता राजी  हो गई. समूह बनाया. नाम रखा जय माता दी महिला स्वसहायता  समूह. अध्यक्ष बनी पवन कुमारी.

सविता आगे बताती है- "सप्ताह में मिलने वाली मजदूरी के चंद रुपए भी गिनने और हिसाब करना नहीं आता था. समूह में 13 सदस्यों के साथ सब सीखा." अब थी रोजगार शुरू करने की बार. आजीविका मिशन के सुझाव और SHG ने  जीवन बदल दिया. अचार बनाने और पैकिंग के लिए मिशन के अधिकारी चार सदस्यों में शामू बाई ,अनुषा ,धापू बाई सहित सविता को मंदसौर ले गए जहां अचार बनाने के साथ कई सावधानियां सिखाई. जिला परियोजना प्रबंधक हिमांशु शुक्ला ने बताया कि इन महिलाओं को बेहतर प्रशिक्षण के लिए मंदसौर ले गए ,जहां विशेषज्ञों ने इन्हें तैयार किया. 

Ratlam aachar wali didi    

सविता आगे बताती हैं -"वह अपनी साथियों के साथ थोक में केरियां खरीद कर लाईं.अचार का मसाला और  पैकेजिंग के लिए  शीशियां और सिल्वर क्वाईन भी सस्ते दामों पर इंदौर से मंगाए,जिससे मुनाफा ज्यादा मिल सके."आजीविका नाम से ये अचार स्टोर और हाट बाजार में बेच रहें हैं.सविता आगे कहती है -" पहले खेत मालिकों से कर्ज लेना पड़ता था. अब बेहतर जिंदगी जी रही है. समूह का लोन भी वह समय पर उतार चुके हैं.पति भी मजदूरी छोड़ अचार के प्रचार और सप्लाई में सहयोग करने लगे.अब उन्हें दस से 15 हजार रुपए की कमाई हो जाती है.अचार दो सौ किलो रुपए बिक रहा है.सीज़न खत्म होने पर इंदौर कोल्ड स्टोर से केरी मंगा ली. 

रतलाम कलेक्टर नरेंद्र सूर्यवंशी ने बताया कि  "जिले में आजीविका मिशन कि योजना दूसरों जिले की तुलना में देरी से शुरू हुई. बावजूद महिलाओं की मेहनत ने समूह बना कर देश में अलग पहचान बना ली. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी यहां के समूहों के उत्पादों की सराहना की है."

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