बेटी और पर्यावरण के भविष्य को बचाने की अनोखी पहल

बढ़ते भ्रूण हत्या के मामलों को कम करने और ख़त्म होती हरियाली को बचाने के लक्ष्य के साथ इस योजना की शुरुआत की गई. इस योजना के तहत, बेटी का जन्म होने पर ग्रामीण मिल कर 111 पौधे लगाते और 31 हज़ार का फिक्स्ड डिपॉज़िट किया जाता है.

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मिस्बाह
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piplantri rajasthan saving girl

Image Credits: Her Zindagi

बेहतर बनने की गुंजाइश कभी ख़त्म नहीं होनी चाहिए. बेहतर बनने के सफर पर निकल कर ही बदलाव की मंज़िल मिल सकती है. जब अखबार लड़कियों के साथ दुष्कर्म और भेदभाव की घटनाओं से भरे हैं, तब राजस्थान (Rajasthan) में राजसमंद जिले का छोटा सा गांव पिपलांत्री (Piplantri) बेहतर बनने के सफर पर निकला, और उसकी बदलाव की कहानियां आज अखबार की सुर्खियां है. इस गांव ने पर्यावरण संरक्षण (environment conservation) और नारीवाद (eco-feminism) के लक्ष्य को एक साथ हासिल किया.

सामाजिक कार्यकर्ता (social activist) और पूर्व सरपंच (Sarpannch) श्याम सुन्दर पालीवाल (Shyam Sundar Paliwal) की बेटी 2007 में उन्हें हमेशा के लिए छोड़कर चली गई. इस घटना से टूट जाने की जगह उन्होंने कई बेटियों का भविष्य सवारने का इरादा किया. उन्होंने 'किरण निधि योजना' (Kiran Nidhi Yojana) की शुरुआत की. बढ़ते भ्रूण हत्या (infanticide) के मामलों को कम करने और ख़त्म होती हरियाली को बचाने (saving green cover) के लक्ष्य के साथ इस योजना की शुरुआत की गई. इस योजना के तहत, बेटी का जन्म होने पर ग्रामीण मिल कर 111 पौधे लगाते और 31 हज़ार का फिक्स्ड डिपॉज़िट (FD) किया जाता है. 10 हज़ार रूपये परिवार वाले जमा करते हैं और बाकी ग्रामीण जान, पंचायत, या NGO की तरफ से. जमा राशि बेटी की 20 साल की उम्र हो जाने पर मिलती हैं जिसका इस्तेमाल पढ़ाई या शादी की लिए किया जा सकता है. साथ ही, माता-पिता से एक शपथ पत्र (affidavit) पर हस्ताक्षर कराया जाता है जिसमें वह आश्वासन देते हैं कि बेटी को नियमित रूप से स्कूल भेजेंगे, उसके नाम पर लगाए गए पेड़ों की देखभाल करेंगे, और 18 साल से पहले उसकी शादी नहीं करेंगे. 

piplantri rajasthan saving girl

Image Credits: India TV

पौधों को लगाने और उनकी देखभाल की काम ने गांव की स्वयं सहायता समूहों (Self Help Group) को रोज़गार दिया है. SHG दीदियां एलो वेरा, बम्बू, गुलाब की पौधे लगा चुकी हैं. SHG महिलाएं एक्सपर्ट्स से ट्रेनिंग लेने की बाद  एलो वेरा से अचार, जेल, और जूस जैसे कई उत्पाद बना रही हैं. पिपलांत्री पंचायत के पास अब इन उत्पादों की बिक्री के लिए अपनी वेबसाइट भी है. 5500 की आबादी वाले गांव में करीब 1100 SHG महिलाओं और ग्रामीणों को रोज़गार मिला है. इसकी वजह से अब उन्हें शहरों की तरफ नहीं जाना पड़ता. गांव में शराब सेवन, पेड़ों की कटाई और जानवरों की खुली चराई पर पूरी तरह प्रतिबंध है. ग्रामीणों का दावा है कि पिछले 7-8 वर्षों से कोई पुलिस भी केस दर्ज नहीं हुआ है. 

piplantri rajasthan saving girl

Image credits: SBS

रविवार विचार (Ravivar Vichar) का मानना है कि इस तरह के सशक्त और आत्मनिर्भर गांव का मॉडल दूसरे ग्रामीण क्षेत्रों को भी अपनाना चाहिए ताकि महिला सशक्तिकरण और पर्यावरण संरक्षण की प्रयासों को गति मिल सके.  

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