मिलेट मैन ऑफ़ इंडिया, फिर भी 'नो नेम, नो फेम'

वे गांवों में लगातार जाने लगे और फिर अपनी प्रोडूसर की नौकरी छोड़ दी. तभी उन्होंने डेक्कन डेवलपमेंट सोसाइटी (डीडीएस) की नीव रखी जिसका काम लगभग 32 गांवों में है. डीडीएस खाद्य सुरक्षा, महिला सशक्तिकरण, और ग्रामीण विकास की दिशा में काम करती है. 

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मिस्बाह
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Image Credits: The Hindu

आज न केवल भारत पर संयुक्त राष्ट्र संघ साल 2023 को मिलेट ईयर के रुप में मना रहा है. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मोटे अनाज के इस्तेमाल को बढ़ावा देने की बात कर रहे हैं. जिस मिलेट क्रांति की आज भारत अगुवाई  कर रहा है, उसकी पहल काफी पहले पी.वी. सतीश कर चुके थे. सतीश एक किसान और सामाजिक कार्यकर्ता थे. उन्होंने स्वस्थ और टिकाऊ खाद्य फसल के रूप में मोटे अनाज को बढ़ावा देने की दिशा में काफी काम किया. उनके काम की वजह से वो 'मिलेट मैन' कहलाये. पी वी सतीश एक ऐसे परदे के पीछे से काम करते कार्यकर्ता थे जिन्होंने आंध्र प्रदेश में मेदक जिले के सूखे पड़े गांवों में हज़ारों किसान महिलाओ की सहायता से बाजरा के इस्तेमाल को आम करने का बीड़ा उठाया. 

पी वी सतीश ने 1960 के दशक में पत्रकारिता में गोल्ड मेडल हासिल कर दूरदर्शन के प्रोडूसर के रूप में काम किया. 1975 में भारत में पहली बार सॅटॅलाइट के माध्यम से ग्रामीण लोगो की समस्याओ का टीवी के ज़रिये निदान किया जा रहा था.  6 राज्यों के 20 जिलो के 2400 गाव में लोगो ने पहली बार टीवी देखी जिसमे इसरो और नासा का भी योगदान था. सतीश उस वक़्त आंध्र प्रदेश के ग्रामीण इलाकों का काम देख रहे थे.  तभी वो ग्रामीण जनों की समस्याओं से रूबरू हुए. वे गांवों में लगातार जाने लगे और फिर अपनी प्रोडूसर की नौकरी छोड़ दी. तभी उन्होंने डेक्कन डेवलपमेंट सोसाइटी (डीडीएस) की नीव रखी जिसका काम लगभग 32 गांवों में है. डीडीएस खाद्य सुरक्षा, महिला सशक्तिकरण, और ग्रामीण विकास की दिशा में काम करती है. 

1983 में पी वी सतीश के आग्रह पर 22 साल के हर्षा भोगले (मशहूर कमेंटेटर) को क्रिकेट की कमेन्ट्री करने का मौका मिला जिसके बाद  इन्होने कमेन्ट्री की दुनिया में खूब नाम कमाया. इस बात का जिक्र शायद ही कभी पी वी सतीश ने किया होगा. गाँव की दलित महिलाओ का चेहरा,उनका काम और उनकी आवाज़ को आगे रखने वाले यह ‘मिलेट मेन’ गांव की साधारण महिला को भी अपना गुरु बनाने में हिचकिचाते नहीं थे. उनका जीवन साधारण और व्यक्तित्व ऊंचे ख्यालों वाला था. उनका काम करने का तरीका सौंदर्य व उल्लास से भरपूर था. उन्होंने विवाह नही किया, वे एक कमरे में रहते थे. सतीश खाना खुद पकाते और दूसरों को बनाकर खिलाने में उन्हें माँ जैसा आनंद मिलता. 

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Image Credits: Geoff Tansey

गांव में आपसी प्रेम को बढ़ाने और भेदभाव को कम करने के लिए 80 के दशक में सतीश ने सरकार को एक प्रोपोज़ल भेजा, जिसके बाद  दलित महिलाओं की एक अनोखी राशन व्यवस्था शुरू की गई. इसमें सरकार ने तीन साल की सब्सिडी एक साथ किसानो को दे दी और ये अनिवार्य किया गया कि किसानों को मोटे अनाज का एक हिस्सा दलित महिलाओ को देना होगा जो राशन व्यवस्था संभाल रही थी. महिलाओं ने घर में सुंदर कोठार बनाये. सबको बातचीत कर ज़रुरत के हिसाब से राशन बांटा जाता. जिसके बाद ऊंची जाति के पुरुषो कोने भी दलित महिलाओं से अनाज लेना शुरू किया. इस पहल से समाज में भेद-भाव ख़त्म होने की शुरुआत हुई. 

दलित महिलाएं रसोई, खेती, राशन व्यवस्था के साथ-साथ कम्युनिटी रेडियो, टीवी और एडिटिंग में भी एक्सपर्ट बनीं. रिसर्च करने आये वैज्ञानिकों ने भी इन महिलाओं के ज्ञान और कौशल को सही माना. कौशल महिलाओं का था और हिम्मत पी वी सतीश की. सतीश दूसरों को आगे बढ़ाने और सबको साथ लेकर चलने वालों में से थे. सफलता की राहों में अकेले न चलकर औरों को साथ लेने वाले लोग कम हैं. सतीश ने ये साबित किया कि एक दूसरे से सीखने से और साथ एक दिशा में चलने से बड़ी से बड़ी मंज़िल भी पाई जा सकती है. सतीश तो अब नहीं रहे, पर उनकी शुरू की गई क्रांति की चर्चा आज दुनियाभर में है, उनकी पहल आज कई महिलाओं का रोज़गार है.    

मिलेट ईयर डेक्कन डेवलपमेंट सोसाइटी (डीडीएस) पी वी सतीश