नारंगी जर्सी पहने भारत की महिला राष्ट्रीय फ़ुटबॉल टीम की स्ट्राइकर संध्या रंगनाथन जब नेपाल के ख़िलाफ़ एक दोस्ताना मैच चेन्नई के जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम में खेल रही थी,तब उस स्टेडियम में कुछ खास था.जहां संध्या की निगाहें गोल पर थी,वहीं स्टेंड्स में बैठी उनकी सिंगल मदर की नज़रें बस संध्या पर. मैच के बाद संध्या ने कहा -“मैं आज जो भी हूं, उसके पीछे वजह मेरी मां है ,दो बेटियों की सिंगल मदर के रूप में उनके लिए ज़िंदगी आसान नहीं थी, लेकिन उन्होंने हमें सब कुछ दिया. मेरे समर्थन का सबसे मजबूत स्तंभ. मुझे बहुत खुशी और गर्व है कि आखिरकार उन्होंने मुझे देश के लिए खेलते हुए देखा. मेरी अम्मा, मेरी हीरो.”
एक अकेली मां को दो बेटियों की परवरिश में करना पड़ा. और पालपोस के ऐसे मुकाम पर पहुंचाया की आज भारतीय फुटबॉल टीम को स्ट्राइकर नंबर वन है संध्या. तभी जब गेंद संध्या के पास आती है तब रोमांच और जोश बढ़ जाता है . कॉमेंट्री बॉक्स में भी खेल के साथ रफ़्तार और जोश होता है.और ये लगातार बॉल इंडिया के पास...और ये खिलाडी सामने की टीम पर पूरा दबाए बनाए हुए हैं,और ये बॉल अब संध्या के पास आई,संध्या ने फुर्ती और रफ़्तार से बॉल को पैरों में उलझाती हुई..ये डी लाइन पहुंच गई ..और और..संध्या ने ये एक और गोल दाग दिया. इसी गोल के साथ इंडिया ने मैच पर कब्ज़ा जमा लिया. दर्शकों की भीड़ में आवाज़ और तेज़ हो जाती है,सिर्फ एक ही आवाज़ संध्या,संध्या . इंडिया ने मैच जीता और खिलाडियों ने संध्या को कंधे पर उठा लिया है. मैदान में सिर्फ एक ही आवाज़ गूँज रही है,संध्या,संध्या,संध्या.यह नजारा तो वीमन फुटबॉल लीग का था. ऐसे नजारे कई मैचों में देखने को मिलते है. तभी तो संध्या को वैल्युबल प्लेयर ऑफ़ द ईयर का अवॉर्ड मिला. इंदिरा गाँधी एकेडमी फॉर स्पोर्ट्स एन्ड एजुकेशन में तराशी गई संध्या , अटैकिंग फॉरवर्ड खिलाडी है.
इंडिया की फुटबॉल की पहचान बन चुकी संध्या की कहानी और मुकाम आसान नहीं था. इसके पीछे छुपी है एक मासूम लड़की की संघर्ष और जीत की ज़िद की कहानी. आज हम संध्या के इस सफर पर ले चलते हैं,जो कोई फ़िल्मी कहानी से काम नही है. संध्या यानी साँझ...शाम, अंधेरे की दस्तक. यहां से डूबते सूरज और गहरे अंधेर का इशारा.एक परिवार में माता पिता ने मासूम सी बेटी का नाम संध्या रखा. बेटी कुछ समझ पाती,इसके पहले ही माता-पिता के बीच झगड़ों से संध्या टूट सी गई. कुछ समय जरूर गांव के ही पथरीले मैदान में अपनी सहेलियों के साथ वह फुटबॉल खेलने जाती. लेकिन ये ज्यादा दिन नहीं चल सका, मां-बाप में झगड़े इतने बढ़ गए कि एक दिन बाप अपनी छोटी बेटियों और पत्नी को छोड़ कर भाग गया. मां के सामने संध्या और उसकी बहन को अच्छी परवरिश देने के साथ,दो टाइम रोटी का संकट. मासूम संध्या को अच्छी पढ़ाई और खाने को कुछ अच्छा मिले इसलिए सरकारी हॉस्टल भेजना पड़ा.
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मां और बहन से दूर बाहर अकेले कमरे में संध्या उदास रहती. संध्या का जन्म तमिलनाडू के कुडलूर जिले में 20 मई 1998 जन्म हुआ. और पथरीले रास्ते का यह सफर पहले पड़ाव में हॉस्टल में आ कर सिमट गया. संध्या बड़ी हो रही थी, उसने हॉस्टल को अपना घर मान लिया. सहेलियां भी बनी और वह उनके साथ फुटबॉल ग्राउंड जाने लगी. यहीं फुटबॉल के कोच एस.मरियाप्पन की नज़र संध्या के खेलने के अंदाज़ पर पड़ी.
पढ़ाई के साथ संध्या फुटबॉल में रम गई. मरियाप्पन उसे लगातार तराश रहे थे. फिर क्या था, संध्या ने ज़िन्दगी में दुःख के मैदान पर खुशियों का ऐसा गोल दागा कि राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मैदानों पर दौड़ती हुई संध्या के शानदार प्रदर्शन पर दर्शकों की नज़र होती है. संध्या रंगनाथन, वीमन फुटबॉल लीग की हीरो.अपनी मेहनत और पसीना बहा कर संध्या ने नए रंग भर दिए. खेल के साथ सोशल वर्क में मास्टर्स भी वे कर चुकीं हैं.
2018 में स्पेन के खिलाफ COTIE महिला कप फुटबॉल मैच में पहला गोल दागा. संध्या ने मार्च 2019 में SAFF महिला चैम्पियनशिप में श्रीलंका के खिलाफ दूसरा गोल किया. ये सफलता का सफर फिर नए परवान चढ़ता गया. इसी साल अप्रैल 2019 में नेपाल के खिलाफ तीसरा गोल दाग रिकॉर्ड बनाया. संध्या कहतीं हैं-"मेरी खुशियों का चुना गया." वे चाहती हैं की बेटियों और महिलाओं को…
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