एक महिला का सबसे कोमल रूप होता है उसका 'मातृत्व'. जब बात उसके बच्चों की आती है, तो वह कुछ भी सहन करने को तैयार रहती है. वो सिर्फ यह चाहती है की उसके बच्चे हमेशा खुश रहें. इसके लिए वह किसी भी तरह के संघर्ष से पीछे नहीं हटती. कुछ ऐसी ही कहानी बिहार के गया जिले के पसेवा गांव की संगीता भारती की, जो मां के रूप में अपने पांच बेटियों को खुद के संघर्ष से आगे बढ़ने का हौंसला दे रही है. पति के जाने के बाद संगीता और उसकी पांच बेटियां अकेली पड़ गयी. ना पैसा था, ना ही नौकरी. संगीता ने फैसला कर लिया था कि वो अपनी बेटियों को इस तरह भूखे पेट सोते हुए नहीं दे सकती.
संघर्ष के इस दौर में उसने खेतों और भवन निर्माण में मजदूरी की, घरों में बर्तन मांजने के काम किए और किसी तरह परिवार चलाया और बेटियों को शिक्षित करने का लक्ष्य लेकर आगे बढ़ी. वे बताती है- "हम बेहद गरीबी में अपना जीवन जी रहे थी, तभी 2017 में JEEVIKA स्वयं सहायता समूह (SHG) से जुड़ने का मौका मिला. मैं समूह की बैठक में भाग लेने लगीं और साथ में बचत करने लगी. बाद में ग्राम संगठन में चर्चा के दौरान एक दिन JEEVIKA self help group की दीदियों ने मुझे सतत जीविकोपार्जन योजना के माध्यम से स्वरोजगार से जोड़ा."
अब वह सतत जीविकोपार्जन योजना के माध्यम से किराना दुकान चला अपनी आत्मनिर्भरता की और कदम बढ़ा रहीं हैं. वह अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए लगातार प्रयासरत हैं. योजना से प्राप्त पूंजी में क्रमिक वृद्धि करते हुए संगीता भारती निर्धनता से आत्मनिर्भरता की ओर आगे बढ़ी हैं. कई बिंदुओं को ध्यान में रखते हुए उन्हें मिशन स्वावलंबन के तहत प्रमाण पत्र दिया गया है. संगीता ने साबित कर दिया की महिला अगर ठान ले तो उसे कोई परेशानी नहीं हरा सकती. देश की हर महिला के लिए मिसाल हैं संगीता की कहानी, जिसने हार नहीं मानी और अपनी बेटियों के भविष्य को सुधारने के लिए हर संभव प्रयास करतीं रही.