आज की अहिल्या: एसडीम विशाखा देशमुख

अपने छोटे से कार्यकाल में उन्होंने गुना, धार और इंदौर जिलों में अपनी सेवाएं दी. गुना में एक सरकारी योजना को विशाखा ने सार्थक बना दिया. अनाथ और निर्धन पन्नी बीनने वाले बच्चों को न केवल रहने की जगह दिलाई, बल्कि उनके चेहरे पर स्थाई मुस्कान उपहार में दे आई.

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विवेक वर्द्धन श्रीवास्तव
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Vishakha

Image Credits: Ravivar vichar

होल्कर स्टेट की शासिका देवी अहिल्या बाई होल्कर (Ahilya Bai Holkar) के काम और निर्णय इतिहास में दर्ज हैं. मंदिरों का जीर्णोद्धार हो या गांव में कुएं-बावड़ी बनाना हो,रियासत के कई इलाकों में आज भी निशानियां बरक़रार है.शिव उपासक अहिल्या की सोच लगभग ढाई सौ साल पहले दूरदर्शी दिखाई देती है,जिन्होंने महिलाओं को सम्मान दिया. रोजगार के कई अवसर तैयार किए. रविवार विचार ने ऐसी महिलाओं को मिलवाया जिनके कामकाज और जूनून से जनहित में अपनी सेवाएं दे रहीं हैं. सही मायने में 'आज की अहिल्या' यही है. इस सीरीज़ में एक और ऐसी आज की अहिल्या से मिलवाते हैं.     

काम के जूनून ने बना दिया यूनिक ऑफिसर 

मूसलादार बारिश और पानी से भर चुके डोम में खड़े 15 हजार चुनाव कर्मचारियों के बीच में एक प्रिग्नेंट लेडी उसी आत्मविश्वास से कर्मचारियों को गाइड करती रही. बिना खुद के स्वास्थ्य की परवाह किए बगैर..... सबसे संवेदनशील माने जाने वाले नगर निगम इंदौर के चुनाव पूरी ईमानदारी से ड्यूटी निभा रही और कोई नहीं बल्कि इंदौर की एसडीएम विशाखा देशमुख (SDM Vishakha Deshmukh) थी. उनके काम की शैली और आत्मविश्वास को देख हर अधिकारी कर्मचारी दंग था.जब कई कर्मचारी ऐसी संवेदनशील कामों से पीछा छुड़ाता है. ड्यूटी कैंसिल करवाने में ताकत लगवाता है उससे उलट एसडीएम विशाखा ने चुनाव संपन्न कराए. सतत मॉनिटरिंग की.

अपनी प्रिग्नेंसी के आखरी टाइम तक लगातार ड्यूटी देने वाली एसडीम विशाखा देशमुख कहती है -" मेरा फोकस हमेशा क्लियर रहता है. यदि मन मजबूत है तो कोई आपको हरा नहीं सकता. मैंने पूर्व कलेक्टर मनीष सिंह के मार्गदर्शन में चुनाव करवाए. डीएम मनीष सिंह ने मुझे लगातार हौसला दिया. उनसे मिले हौसले ने मेरी हिम्मत और बढ़ा दी. मैं इस चुनौती को भी जीना चाहती थी. शांति पूर्वक चुनाव और फिर बेटी का जन्म दोहरी ख़ुशी का अहसास दे गया."

2018 बैच की विशाखा देशमुख का डिप्टी कलेक्टर के पद पर चयन और फिर सर्विस में मिली सफलताओं ने मिसालें पेश कर दी.काम के प्रति जूनून और लोगों की मदद की भावना ने उनको अलग पहचान दे दी. अपने छोटे से कार्यकाल में उन्होंने गुना,धार और इंदौर जिलों में अपनी सेवाएं दी. गुना में एक सरकारी योजना को विशाखा ने सार्थक बना दिया.अनाथ और निर्धन पन्नी बीनने वाले बच्चों को न केवल रहने की जगह दिलाई ,बल्कि उनके चेहरे पर स्थाई मुस्कान उपहार में दे आई. इंदौर जिले में भी उनके काम का अंदाज़ ही उन्हें अलग बना रहा. उनके एसडीएम कैबिन के दरवाज़े हर उस परेशान व्यक्ति के लिए खुले हैं, जिसके पास किसी प्रभावी व्यक्ति की रिकमंड नहीं.       

गुना में पदस्थ समय को याद करती हुईं कहती हैं - " मेरे लिए नया जिला था. डिप्टी कलेक्टर के पद के साथ मुझे जिला परियोजना समन्वयक (DPC) इंचार्ज भी थी. शासन की योजना हमें मिली. सामान्य वर्ग के बच्चों के लिए भी हॉस्टल खोला जाना था. ये वो बच्चे चिन्हित करने थे जो असहाय हों,निर्धन हों,अनाथ हों और ऐसे बच्चे जो कूड़े-करकट के ढेर से पन्नी बीन कर अपनी जिंदगी चला रहे हों.और इन बच्चों को ढूंढना बड़ी चुनौती था. मैं खुद निकल पड़ी बच्चों की तलाश में. मैंने ठान लिया था कि इस योजना को सौगात में बदलना है. आखिर सफलता मिली. कूड़े के ढेर में पन्नी बीनते दो मासूम से मैं खुद मिली. और इस मिशन की शुरुआत हुई. धीरे-धीरे मेरी उम्मीद से ज्यादा ऐसे बच्चे मिले. दूसरी परेशानी ऐसी बिल्डिंग तलाशना था जहां से स्कूल पास हो और सुरक्षित हॉस्टल बना सकें.आखिर बहुत मेहनत के बाद हमने बिल्डिंग भी चिन्हित की.एक्स्ट्रा फंड के लिए वरिष्ठ ऑफिसर्स से मिली. और एक या दो नहीं बल्कि 40 से ज्यादा मासूमों की चहल-पहल से हॉस्टल का नज़ारा ही बदल गया. ये पल मेरे लिए यादगार हो गए. " 

कोरोना काल में भी जनहित में खास मोर्चों पर ड्यूटी ली.धार जिला मुख्यालय पर कोरोना की पहली लहर में कंटेंटमेंट एरिया मॉनटरिंग और लोगों तक मदद पहुंचा पहली प्राथमिकता थी. आयुष विभाग के साथ त्रिकटु चूर्ण और दूसरी दवाइयों को घर-घर पहुंचाने में भी डिप्टी कलेक्टर विशाखा धार जिले में चर्चित रहीं. विशाखा का इस कठिन दौर में ही अगला ट्रांसफर इंदौर हो गया. विशाखा आगे बताती हैं - "यहां कोरोना की दूसरी और जानलेवा लहर में संक्रमण की चपेट में आए लोगों को दम तोड़ते देखा,बावजूद अस्पतालों में मॉनटरिंग और परिजनों को मदद पहुंचाने में मैं अपना डर भूल गई. कई लोगों की मदद करने में जो सुकून मिला वह शब्दों में बता नहीं सकती."



डिप्टी कलेक्टर जैसे पद पर पहुंचने का श्रेय वे अपने पिता विनोद देशमुख को देती हैं,जिन्होंने अहसास दिलाया कि समाज में कुछ करना है तो प्रशासनिक ऑफिसर बनो. विशाखा कहती हैं - " इतनी मेहनत की,कि फिर पलट कर नहीं देखा.मेरे पिता ने जहां मुझे दिशा दी वहीं मेरी मां नलिनी देशमुख हर वक़्त ऊर्जा बन कर मेरे साथ खड़ी रही."      

जाति प्रमाण-पत्रों को बनवाना हो या किसानों के जमीनों नपती हो ,एसडीएम विशाखा देशमुख ने सख्त आदेश दे दिए कि कोई भी परेशान और जरूरतमंद ऑफिस के चक्कर न लगाए.पति पुनीत आईपीएस ऑफिसर हैं और बेटी इशना है. विशाखा का मानना है कि -" महिलाओं को उनकी क्षमता दिखाने का पूरा मौका दिया जाना चाहिए. महिला सशक्तिकरण (women empowerment ) जैसी सोच की शुरुआत हर घर और हर पुरुष की मानसिकता से हो. हर जरूरतमंद की निष्पक्ष मदद के साथ संवेदनशीलता और धैर्यता ही किसी अधिकारी को सफल बनती है.होल्कर स्टेट की शासिका देवी अहिल्या बाई इसीलिए सफल और इतिहास में दर्ज है."

गुना नगर निगम इंदौर SDM Vishakha Deshmukh आज की अहिल्या Ahilya Bai Holkar महिला सशक्तिकरण women empowerment