महुआ कर रहा मालामाल

जनजाति समुदाय को महुआ से तैयार शराब ,ताड़ी से जोड़ा जाता है. लेकिन कुछ सालों में महुआ की तस्वीर बदल गई. छत्तीसगढ़ के जगदलपुर,बस्तर में तो महुआ वेल्यू एडेड प्रोडक्ट पहली पसंद बना गया है.जो अब एक्सपोर्ट के मामले में धूम मचा रहा है.

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विवेक वर्द्धन श्रीवास्तव
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बस्तर फ़ूड की फाउंडर रज़िया महिलाओं को समझाती हुई (फोटो क्रेडिट : ऋषि भटनागर,जगदलपुर )

"मैं जंगलों में बड़ी हुई. यहीं का सब रचा-बसा है. प्रकृति से बहुत लगाव शुरू से रहा. पढ़ाई पूरी होने के बाद लगा जॉब सभी को मिलना कठिन है. क्यों न खुद अपना काम करें और दूसरों को भी रोजगार दें. बस यही सोच मुझे यहां तक ले आई. छत्तीसगढ़ के जंगल हमारे लिए वरदान हैं.जंगल में लगे महुआ के पेड़ों और उनसे जुडी भ्रांतियों को दूर कर मैंने साबित कर दिया कि प्रकृति कभी नुकसान नहीं पहुंचाती. मुझे ख़ुशी है आज यही महुआ एक्सपोर्ट हो रहा और छह हजार से ज्यादा परिवार रोजगार से जुड़ गए." महुआ को सेहतमंद बनाने वाली छत्तीसगढ़ के बस्तर की शेख रज़िया बड़े गर्व से अपनी बात कहती है. 'महुआ लेडी" के रूप में देश-विदेश में अपनी पहचान बना चुकी है रज़िया महुआ के वेल्यू एडेड बना रही हैं.   

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शेख रज़िया (फोटो क्रेडिट : ऋषि भटनागर,जगदलपुर)

अभी तक महुआ का नाम सुनते ही नशा करने की चीज़ हमारे दिमाग में आ जाती है. खासकर जनजाति समुदाय को महुआ से तैयार शराब ,ताड़ी से जोड़ा जाता है.और सदियों से लोग महुए की शराब पीते आ रहें हैं.लेकिन कुछ सालों में महुआ की तस्वीर बदल गई. छत्तीसगढ़ के जगदलपुर,बस्तर में तो महुआ वेल्यू एडेड प्रोडक्ट पहली पसंद बना गया है.एक्सपोर्ट के मामले में महुआ धूम मचा रहा है. रज़िया आगे बताती हैं - "छत्तीसगढ़ और मप्र के कई इलाकों में महुआ के घने जंगल हैं. जब मैंने खुद रिसर्च किया तो पाया यह नशा नहीं बल्कि शरीर के लिए वरदान भी है. बस यहीं से मैंने पहले महुआ को लेकर लोगों के बीच गलतफहमियां हटाना शुरू किया. समझाया कि यह महुआ सही ढंग से खाया जाए तो शरीर में खून की कमी,ताकत और चहरे पर नई ताज़गी दे सकता है. इसे मिशन बनाया और पिछड़े इलाके को बस्तर फूड्स के नाम से विदेशों तक पहुंचा दिया." 

जगदलपुर के बस्तर फूड्स फर्म से तैयार प्रोडक्ट्स लंदन में बड़े चाव से उपयोग कर रहें हैं. महुआ से कुकीज़ ,महुआ इनर्जी वीटा,महुआ लड्डू, महुआ टी जैसे कई प्रोडक्ट बन रहे. फूड्स की फाउंडर रज़िया कहती हैं - "यह बड़ी उपलब्धि है जो गरीब ग्रामीण केवल 35 रुपए किलो मिनिमम सेल प्राइज़ पर महुआ बेचने पर मजबूर थे, वही महुआ अब 100 रुपए किलो एमएसपी पर बिक रहा है. लंदन की कंपनी से जुड़ने के बाद सभी जगह वन विभाग और जिला प्रशासन के सहयोग से महुआ बीनने वालों को ट्रेनिंग दी गई. एक खास तरीके से नेट बिछा कर महुआ फ़ूड ग्रेड इकठ्ठा किया जाता है. पिछले साल जो महुआ केवल 12 टन एक्सपोर्ट हुआ वह इस बार 80 टन भेजा जा चुका है. टारगेट 200 टन का है."

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महुआ हाथ में लेकर बताते हुए (फोटो क्रेडिट : ऋषि भटनागर,जगदलपुर)

छत्तीसगढ़ राज्य में जहां बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा, कांकेर, सोनागांव, नारायणपुरा, कोरबा, महेंद्रगढ़ और सूरजपुर जैसे जिले के जंगलों में महुआ के सैकड़ों पेड़ हैं वहीं मप्र में उमरिया, बालाघाट, सीधी, मंडला, बैतूल, खंडवा और अलीराजपुर के इलाकों में भी महुआ के पेड़ों का बड़ा जंगल है.महुआ ने कई परिवारों की ज़िंदगी बदल दी. दंतेवाड़ा की पार्वती मौर्य बताती हैं -" जब कभी पैसों की जरुरत होती थी ,महुआ सस्ते भाव में बेच देती थी. अब सब कुछ बदल गया. महुआ महंगा बिका तो घर की स्थिति अच्छी हो गई. एक वाहन खरीद लिया." मप्र के अलीराजपुर के सोमकुआं गांव के कालू कहते हैं -" कभी सोचा नहीं था कि महुआ जिससे लोग नशा करते थे, अब ज़िंदगी में खुशियां दे रहा.मैं खुद कई टन महुआ सप्लाई कर चुका हूं." 

छत्तीसगढ़ सरकार महुआ को लेकर जनजाति समुदाय को बढ़ावा दे रही है.माइक्रोबायोलॉजी में पोस्ट ग्रेजुएट, नीति आयोग से सम्मानित और यूएस से फैलोशिप ले चुकीं रज़िया कहती हैं -" हमारी टीम में आठ सदस्य के साथ लगातार रिसर्च चलता रहता है.मुझे ख़ुशी है लोग जंगल की कीमत समझने लगे. पेड़ कटने में कमी आई है." 

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