धूप से सींची किस्मत

तोरपा प्रखंड के गुटुहातू गांव की शशिकांत गुड़िया का परिवार भी अपने गांव में खेती बाड़ी से जुडी परेशानियां हर दिन झेल रहा था. उन्होंने कृषि के क्षेत्र में इतनी मेहनत की और स्वयं सेवी संस्था 'प्रदान' से तकनीकी प्रशिक्षण लेकर अपने गांव के हालात सुधार दिए.

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रिसिका जोशी
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solar panel hadled by women

Image Credits: SoLAR

भारत की 60% जनता किसी न किसी रूप में कृषि उद्योग से जुड़ी हुई है और इसी कारण हमारे देश को कृषि प्रधान देश कहा जाता है. पानी, ज़मीन, और पैसा- ऐसे तीन चीज़े जिनके बिना किसान का गुज़ारा होना बहुत मुश्किल है. भारत में 20 प्रतिशत से ज़्यादा किसान गरीबी रेखा के नीचे रहते है. इन किसानो के परिवार का गुज़ारा कैसे चल रहा है यह जान के हम सब सोचने पर मजबूर हो जाएंगे. ऐसे ही तोरपा प्रखंड की फटका पंचायत के गुटुहातू गांव की शशिकांत गुड़िया का परिवार भी अपने गांव में खेती बाड़ी से जुडी परेशानियां हर दिन झेल रहा था. लेकिन शशिकांत चुप बैठने वालो में से नहीं थी. उन्होंने कृषि के क्षेत्र में इतनी मेहनत की और स्वयं सेवी संस्था 'प्रदान' से तकनीकी प्रशिक्षण लेकर अपने गांव के हालात सुधार दिए. आज शशिकांत गुड़िया का नाम हर किसी की ज़ुबान पर है. 

शशिकांत बताती हैं- "जून 2021 में मुझे सौर लिफ्ट सिंचाई प्रणाली के बारे में पता चला, जिसे हमारे गांव में महिला मंडल और ग्राम संगठन बैठक में 'प्रदान' नाम की सेवा संसथान ने आयोजित किया था. जैसे ही मुझे इस प्रणाली के बारे में पता चला, मै गांव की 'सौर उपयोगकर्ता समूह' का हिस्सा बनी और आज 'कारो सोलर सिंचाई समिति' की एक सक्रिय सदस्य हूँ." वे बताती है- "इस गांव में सिचाई के लिए अच्छे प्रबंध नहीं थे और पानी के लिए मानसून का ही इंतज़ार करना पड़ता था." इसी कारण शशिकांत का परिवार केवल धान और मडुआ की खेती करता था. हालांकि शशिकांत की जमीन कारो नदी के तट पर थी, पर नदी के पानी को खेतों तक ले जाना गंभीर समस्या थी. गांव में बिजली की समस्या होने के कारण पंप भी काम नहीं आते थे. सौर लिफ्ट सिंचाई प्रणाली की स्थापना की प्रक्रिया समझने के लिए शशिकांत ने गांव में होने वाली हर बैठक में भाग लिया. उन्होंने स्वयं सहायता समूह से ऋण लिया और अपने गांव के लोगों को भी उनसे जुड़ने के लिए प्रेरित किया. 

इसके फलस्वरूप सितंबर माह में उन्होंने रबी मौसम में सौर सिंचाई का उपयोग कर आलू, गोभी और फूलगोभी सहित अन्य सब्जियों की खेती की. शशिकांत अपने खेत से अब एक वर्ष में तीन फसल का उत्पादन कर रही है. वे दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करती रहती है. वो चाहती तो अपनी परेशानियों के आगे झुक सकती थी लेकिन उन्होंने रास्ता ढूंढ़ने के लिए हर संभव प्रयास किया और आज वे खेती से ही अच्छा ख़ासा कमा रही है. यह कहानी बहुत सी महिलाओं के लिए प्रेरणा बनेगी. सौर प्रणाली का उपयोग करने के लिए गांव में बहुत से काम चलते रहते है.  महिलाएं अपनी खेतो में इस तकनीक का उपयोग कर बहुत बदलाव ला सकती है.

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