"मुझे 'कशीदाकारी फैब्रिक्स' बेचकर तुरंत पैसे मिल जाते है," यह बताकर वह बहुत खुश थी. 45 की ड्राइव लेकर यह महिला हर सप्ताह ऊटी जाती है, और इतने पैसे कमा लेती है की अपने जीवन अच्छे से बिता पाए. ऊटी में ऐसी बहुत महिलाएं आए दिन आकर अपनी आजीविका का स्त्रोत तैयार कर पा रही है. यह सब मुमकीन हो रहा है एक महिला की बदौलत, जो ऊटी की पारम्परिक कला को बचाने के लिए और महिलाओं को रोजगार देने के लिए हर दिन मेहनत कर रही है. ऊटी निवासी शीला पॉवेल ने टोडा कम्युनिटी और तमिलनाडु की एम्ब्रोइडरी की परंपरा को बरक़रार रखे हुए है. पिछले 15 वर्षों से, वह अपने कशीदाकारी वाले कपड़े को खरीद इनसे उत्पाद बना रही है. शीला के साथ 200 से ज़्यादा महिलाएं जुडी है. शीला ने बताया कि- “कढ़ाई का यह रूप केवल टोडा समुदाय द्वारा किया जाता है, और अगर संरक्षित नहीं किया गया, तो यह ख़त्म हो जाएगा."
ऊटी में जन्मी और पली-बढ़ी शीला टोडा समुदाय के लोगों को समर्पित एक स्कूल में गई. इसी कारण उन्हें अपने शिल्प और देहाती जीवन शैली पर बहुत गर्व है. शीला जिस परंपरा को बचाने में लगी हुई है, वह टोडा कढ़ाई बहुत मुश्किल है और केवल भारत में उनके समुदाय द्वारा की जाती है. शीला ने ठान लिया है कि वे इस कला को पूरी दुनिया में नाम देकर ही रहेंगी. इसीलिए उन्होंने एक स्वयं सहायता समूह (SHG) तैयार किया जो शानदार काम कर रहा है. शीला का Self Help Group आज सबका ध्यान अपनी ओर खींच रहा है.
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वे बताती है- "2005 में, कुछ महिलाएं अपने कशीदाकारी शॉल के साथ मेरे पास आईं और मुझे शॉल बेचने में उनकी मदद करने के लिए कहा. आगे बात करने पर मुझे पता चला कि पर्यटकों की भाषा ना बोल पाने के कारण वे उत्पाद बेच ही नहीं पा रहे." बस इसीलिए 'शालोम ऊटी' का जन्म हुआ. आज 2 दशक से भी ज़्यादा हो गए है, शीला इन सभी महिलाओं के परिवार चला रहीं है. वे बताती है- “हमने अब तक 250 से अधिक महिलाओं के साथ काम किया है और वर्तमान में 200 महिलाएं हमारे साथ सहयोग कर रही हैं. वे एक हफ्ते में 2,000 रुपये से 5,000 रुपये के बीच कुछ कमाते हैं. उत्पादों को पूरे भारत में बेंगलुरु, मुंबई, हैदराबाद और चेन्नई जैसे शहरों में बेचा जाता है." वह जिन कारीगरों के साथ काम करती हैं उनमें 55 और उससे अधिक उम्र की महिलाएं हैं. शीला का मानना है, अन्य समुदायों की महिलाओं को भी कला सीखना चाहिए ताकि इसे संरक्षित किया जा सके.
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भारत में ऐसी बहुत कलाएं है, जो टोडा कशीदाकारी की तरह बहुत सुन्दर है. माना की शीला की तरह और भी लोग है, जो उन्हें सुरक्षित रखने का प्रयास कर रहे है. लेकिन हमारी सरकार को इन कलाओं और इनके साथ भारत के कल्चर को ज़िंदा रखने के लिए और प्रयासों की ज़रूरत है. SHG महिलाएं पुरे देश में अपनी कला और कौशल निखारने पर दिन रात काम कर रही है. चाहे मध्यप्रदेश का बाग़ प्रिंट हो, तमिल नाडु की तोडा एम्ब्रोइडरी, या बंगाल की कांथा कढ़ाई, महिलाएं हर परंपरा को आगे बढ़ाने का काम अपने कन्धों पर ले चुकी है. सरकार के साथ मिलकर वे पूरी दुनिया पर छाने की ताकत रखती है.