जंगल जंगल बात चली है, पता चला है...

प्रकृति को सहेजना संभालने के साथ संसाधनों से कमाई करने की यह अनूठी कहानी है. आर्थिक आज़ादी की तरफ बढ़ते कदमों के साथ SHG महिलाएं जीवन के अलग अलग क्षेत्रों में अपने निशान छोड़ रही हैं और देश समाज के लिए कितना कुछ कर रही है.

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SHG and nature conservation

Image Credits: Ravivar vichar

बंजर इलाका और गर्म हवाएं, बस ऐसा ही कुछ हाल था पुंजापुरा पहाड़ी का. देवास जिले के गांव पानकुआं के लोग बस अपनी पहाड़ी और इलाके का हाल देख खून के आंसू बहाते थे. फिर पिछले 3 साल में बदलाव की हवाएं चली और  नज़ारा कुछ ऐसा बदला कि बंजर पहाड़ी पर अब घने जंगल है और ठंडी हवाएं गांव वालों को राहत दे रही है . बड़ी बात यह की पुंजापुरा पहाड़ी अब "जंगल बैंक" साबित हो रही है. यह कमाल कर दिखाया SHG महिलाओं ने. अब यहां के ग्रामवासी विशेषकर SHG महिलाएं इस "जंगल बैंक " को संवारने और बढ़ाने में दिन-रात एक कर रहीं हैं.    

सिर्फ जंगल ही नहीं यहां पनपी घास भी दोहरा फायदा करा रही है. इस घास से SHG महिलाओं के पशुधन की दूध मात्रा बढ़ गई है. और चारे के लिए भी अब उन्हें दूर नही जाना पड़ता. 

SHG महिलाओं ने अपने प्रयासों को आगे बढ़ाते हुए बांस के पेड़ लगाना शुरू किए .अब जहां तक नज़र जाती है वहां तक बांस ही बांस के घने पेड़ वाला जंगल नज़र आता है. प्राकृतिक खूबसूरती से इस इलाके को नई पहचान मिल रही है.  बांस के इस जंगल ने स्वसहायता समूह SHG की उम्मीदें भी बढ़ गई.  विकास महिला स्वसहायता समूह की अध्यक्ष किरण सौलंकी बताती हैं -" हमारे इंतज़ार के दिन ख़त्म हुए. तीन साल की कड़ी मेहनत से बांस के ये पौधे अब बड़े होंगे है . यह हमारे समूह के लिए कमाई का जरिया बन जायेंगे. समूह की महिलाओं को अभी आठ हजार रुपए महीने मिलता है.कुछ ही दिनों में बांस की कटाई शुरू हो जाएगी. हमें इसका सीधा फायदा मिलेगा."

वन विभाग की कोशिशों और सहयोग से ही पुंजापुरा तालाब के किनारे बांस के पौधे रोपे गए . डिप्टी रेंजर मूलचंद भार्गव कहते हैं- "यह खास तरह के बांस वैसे नार्थ-ईस्ट इलाके में पाए जाते हैं. यह नमी और ठंडे प्रदेशों में पनपते हैं. यह मालवा इलाके में नया प्रयोग है. वन समिति और स्वसहायता समूह की महिलाओं ने ताकत झोंकी और तीन साल में जंगल खड़ा कर दिया."

विकास समूह की सदस्य रेखा तंवर कहती हैं -" मेरी जिंदगी तो मजदूरी और गरीबी में निकल रही थी. बंजर पहाड़ी पर जब पौधे लगाए ,तो सोचा नहीं था कि ये जंगल जिंदगी को पटरी पर ला देंगे. मेरे मवेशी एक या डेढ़ लीटर से ज्यादा दूध नहीं देते थे. जंगल से घास मिलने लगा. अब मवेशी चार लीटर से ज्यादा दूध देने लगे. धंधे में फायदा हुआ तो गाय ,भैंस और खरीद ली. बच्चे स्कूल जाने लगे."

इस जंगल की देख-रख करने वाले  जय लक्ष्मी समूह की सचिव कहती हैं -"हमारे पास काम नहीं था. यह बंजर पहाड़ी पर जब बांस लगाए  तब भी भरोसा नहीं था कि यह हमारे सपनों को हकीकत में बदल देगा. हमको अभी मुफ्त में घास मिल रही. मवेशी तंदरुस्त हो गए."    

अध्यक्ष सपना निगम भी बहुत खुश है. वह बताती है -" मेरे मवेशी ही नहीं बल्कि समूह के सभी सदस्यों को ये फायदा हुआ. जब बांस काट के बिकेंगे तब हमारी कमाई और बढ़ जाएगी." इस इलाके में साढ़े बारह हजार से ज्यादा बांस के पेड़ लहलहा रहें हैं. रेंजर नाहर सिंह भूरिया कहते हैं -" ये जंगल खड़ा करना हमारे लिए बड़ी चुनौती था. गांव की वन समिति के अलावा दो स्वसहायता समूह की दीदियों से यह अनुबंध किया. अभी आठ हजार रुपए महीने दे रहे है." 

जिला पंचायत की परियोजना प्रबंधक शीला शुक्ला कहती हैं -"जिले के दो स्वसहायता समूह की बाइस महिलाओं को सीधा लाभ मिला. ये बांस  कटाई और बेचने से बड़ी कमाई कर सकेंगी. अभी घास मुफ्त में मिल रही है. गरीबी झेल रही महिलाओं और ग्रामीणों के जीवन स्तर सुधारने के लिए ये जंगल वरदान साबित हुआ." जिले के सहायक परियोजना प्रबंधक रामसिंह ने बताया -"तीन साल पहले 2022 में 25 हजार घास  के पुले महिलाओं को मिले, जबकि 2022 तक बत्तीस हजार पुलों को काटा. लगभग बीस हजार पुले विभाग के पास स्टॉक में हैं. ये बीस हैक्टेयर जमीन पर जबरदस्त ग्रोथ ले रहें हैं.

प्रकृति को सहेजना संभालने के साथ संसाधनों से कमाई करने की यह अनूठी कहानी है. आर्थिक आज़ादी की तरफ बढ़ते कदमों के साथ SHG महिलाएं जीवन के अलग अलग क्षेत्रों में अपने निशान छोड़ रही हैं और देश समाज के लिए कितना कुछ कर रही है.

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