गांव के तीन रूम जिनमें उग रहे शानदार मशरूम

जो नई और अनोखी शुरआत मशरुम की खेती कर रहे श्री चक्रधर स्वसहायता समूह ने की हैं उसे आगे बढ़ाने में सबसे महत्वपूर्ण रहा प्रशासन का सहयोग और समूह सदस्यों का हौसला.

author-image
विवेक वर्द्धन श्रीवास्तव
एडिट
New Update
mushroom 2

उगते मशरुम के रूम में समूह सदस्य (Photo Credits: Ravivar vichar)

कॉन्टिनेंटल खाना आज इतना पॉप्यूलर हो गया है कि घर ,हॉटल या शादी, हर जगह मौजूद है. पास्ता-पिज्जा हर प्लेट पर सज रहा है. कॉन्टिनेंटल क्यूसीन में मशरूम वैसा ही है जैसे देसी खाने में धनिया. यह लगभग हर कॉन्टिनेंटल डिश में उपयोग होता है. मशरूम की ऐसी धूम है कि कीमतें आसमान छू रही है. इसी वजह से मशरूम उगाने वालों की चांदी हो गई. मशरूम में जब अच्छी कमाई दिखी तो मजदूरी करने वाली महिलाएं कहां पीछे रहने वाली थीं !  उन्होंने मशरूम की खेती को अपनी पसंद बना लिया. लेकिन नई तरह की खेती, इस नए प्रोडक्ट को तैयार करना आसान नहीं था. पर जब हिम्मत की तो केवल तीन महीने में ही इन महिलाओं के जीने का तरीका बदल दिया. और इससे बड़ी बात यह की मशरुम खेती वाली महिलाएं SHG मेंबर है.और फिर यह खेती कई इलाकों में हो रहीं है.

mushroom 4

मशरुम का रूम (Photo Credits: Ravivar vichar)

अब बुरहानपुर जिले की जयसिंगपुरा गांव की रहने वाली प्रियंका कुशवाह की कहानी ही लीजिए .प्रियंका जब श्री चक्रधर स्वसहायता समूह की अध्यक्ष बनी तो अपने साथ महिलाओं को जोड़ा. ये छोटा-मोटा काम और उसके साथ फसल के सीज़न में खेत-मजदूरी करती थीं. प्रियंका बताती है - " हम सिलाई बुनाई का काम घर से ही करती थी , लेकिन गांव इतना छोटा की ज़्यादा ग्राहक नहीं मिलते.  ऐसे में एक दिन टीवी पर मशरुम की खेती के बारे में देखा सुना".  मन बना लिया कि  अब मशरूम की खेती करूंगी. जब घर परिवार में यह बात चलाई तो सिरे से नकार दिया गया. कोई बोला - " प्रियंका,पता भी है मशरूम क्या है ?  सड़ी लकड़ियों-बल्लियों पर बारिश में उगने वाला जंगली पौधा जैसा है, कचरे के ढेर में उगता हैं." किसी ने कहा - " जहरीला पौध होता है, कौन खाएगा और खरीदेगा ?" प्रियंका की बात और प्लान पर पहली बार में ही पानी फेर दिया गया. लेकिन प्रियंका के दिमाग में मशरूम घूम रहा था. समूह की बैठक रविवार को जब हुई तब प्रियंका ने सुनीता राठौर और दूसरी महिलाओं से बात की. लेकिन ऐसी खेती ऐसा काम किसी के गले नही उतरा. प्रियंका इस बारे में बताती है - " मीटिंग में बड़ी बहस के बाद सबने मिलकर तय किया कि सरकारी अफसरों से बात करेंगे , इस नए काम में घुसने से पहले".कुछ ही दिन में जिला परियोजना प्रबंधक कृष्णा रावत से मिले. मशरूम की खेती को लेकर सारे सवाल उनसे किए गए. साथ ही अपने अपने घर वालों की बात भी बताई. जब कृष्णा रावत ने सारे डाउट दूर किए तो समूह में नया उत्साह जागा और उन्होंने आगे बढ़ने का मन बना लिया. समूह को खेती का गुर सिखाने जिला प्रबंधक की ओर से ट्रेनर बुलाए गए. SHG महिलाओं ने जाना की जो मशरूम बारिश में जगह-जगह उग आते हैं,वे खाने वाली जाति नहीं है. मशरूम की खाने वाली जाति और क्वालिटी की खेती होती है जो हेल्थ के लिए बहुत अच्छी है. 

प्रियंका,सुनीता,प्रतिभा ने मिलकर कमरा तैयार किया. ट्रेनर के कहने पर प्रशासन ने मशरूम के लिए महाराष्ट्र से 3 किट मंगवाए. लगभग सौ बेग तैयार हुए.  जरूरी ट्रेम्प्रेचर 25 से 30 डिग्री सेट किया. 15 दिन में बैग पर अंकुर फूट गए. सबकी खुशियों का ठिकाना नहीं रहा, मेहनत सफल होती दिखाई दे रही थी. अब परिवार भी समझने लगा मशरुम कचरा नही बल्कि सोना हैं. 20 दिन में तो पहली खेप मिल गई. सदस्यों ने बताया कि सबसे बड़ी दिक्कत इस मशरूम को बेचने की थी. प्रियंका अपनी साथियों के साथ मार्केट निकली. अपना प्रोजेक्ट और खेती समझाई. लोकल मार्केट, कैफे और होटल्स में ये गीले पैक मशरूम पहली बार में ही दो सौ रुपए किलो बिक गए. प्रियंका बताती है-" अगली फसल फिर 20 दिन में आ गई, अब हमारे सामने इन्हें बेचने दिक्कत थी की कहां बेचने जाएं ?" फिर समझ आया की मशरूम सूखा कर पैकेट तैयार कर भी बेच सकते हैं. यह आपदा में अवसर का पल था. सूखे पैक्ड मशरूम बेचा तो कल्पना भी नहीं थी कि ये दो सौ नहीं,बल्कि आठ सौ रुपए किलो में बिके.  सुनीता ने बताया - "नई खेती में चुनौती का दूसरा हिस्सा मार्केटिंग था." SHG ने शहर के होटल्स, कैफे सहित कई बाजारों में बात की. लागत तो बहुत ही जल्दी निकल गई. SHG की महिलाएं अब मजदूरी पर नहीं जाती. इनमें से कीर्ति हुकुमचंद ने बकरी पालन,सरला रंजीत ने कटलरी का धंधा शुरू किया. जिससे वे और कमाई कर रहीं हैं. समूह की प्रतिभा बताती हैं- "यह इलाका केला उगाने वाला है". वह केले के चिप्स बना कर भी बेच रही है. समूह सदस्य चाहती है प्रशासन मार्केट उपलब्ध कराए तो बहुत मदद मिलेगी. 

कलेक्टर सुश्री भव्या मित्तल SHG क्रांति में सहयोगी रही है और कई मायनों में इसकी अगुवाई की है. वो बताती हैं - " जिले के समूह सदस्यों में नया करने की चाह है. मशरूम खेती करने वाली समूह की सदस्यों को मार्केटिंग करने की ट्रेंनिग दी जाएगी.ऑनलाइन अपडेट होने का भी तरीका सिखाएंगे जिससे जिले की ये महिलाएं आधुनिक तरीके से जीवन जी सके." प्रशासन की यही कोशिश , जिले के सैकड़ों SHG को नई राह दिखाएंगे. जो नई और अनोखी शुरआत मशरुम की खेती कर रहे श्री चक्रधर स्वसहायता समूह ने की हैं उसे आगे बढ़ाने में सबसे महत्वपूर्ण रहा प्रशासन का सहयोग और समूह सदस्यों का हौसला. 

musroom 3

तेज़ी से उगते मशरुम (Photo Credits: Ravivar vichar)

 

खेती मशरूम SHG स्वसहायता समूह