केले के पेड़ से रोजगार

अमेठी के सिंहपुर ब्लाक में स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं केले के तने से जरूरत के सामान बनाकर आत्मनिर्भर बन रही हैं. इसी केले के पेड़ की जड़ों से महिलाएं खाद भी बना रही हैं जो किसानों के लिए वरदान साबित हो रहा है.

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रिसिका जोशी
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Image credits: Down to earth

अवसर की कमी नहीं है , बस देखने वाली नज़र चाहिए. कहते है ना कि महिलाओं से ज़्यादा पारखी नज़र किसी और के पास नहीं होती. काम ढूढ़ने से ज़्यादा अच्छा है कि अपने आस पास कि वस्तुओं से ही काम निकाला जाए, और यह साबित कर दिया है अमेठी के सिंहपुर ब्लाक में स्वयं सहायता समूह से जुड़ी महिलाएं ने. यह महिलाएं केले के तने से जरूरत के सामान बनाकर आत्मनिर्भर बन रही हैं. जिस केले के पेड़ से किसान फल लेने के बाद कचरा खेतों में छोड़ देते हैं, उसी केले के तने से महिलाएं पर्स, टोपी, बैग, चटाई, आसनी समेत कई जरूरत की चीजें बनाकर आत्मनिर्भर बनाकर अपने परिवार का भरण पोषण कर रही हैं. इसी केले के पेड़ की जड़ों से महिलाएं खाद भी बना रही हैं जो किसानों के लिए वरदान साबित हो रहा है.

जिले में पिछले कई सालों से केले की खेती का प्रचलन तेजी से बढ़ा और केले का प्रयोग लोग कई तरह से करने लगे. समूह की महिलाओं ने भारत सरकार के उपक्रम 'नाबार्ड' के सहयोग से यह प्रयास शुरू किया गया है. शुरुआत कुछ महिलाओं से हुई लेकिन आज इस व्यवसाय से 15 स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं को रोजगार मिल चूका है. जहां एक तरफ इस काम से महिलाओं को रोजगार मिला, तो वहीं दूसरी तरफ किसानों को खेतों में होने वाले कचरे से छुटकारा भी मिल गया. इस काम को करने के लिए समूह की महिलाओं को प्रशिक्षण देकर उनको निपुण भी किया जाता है. 

इन महिलाओं से बहुत से SHGs भी प्रेरणा ले सकते है और केले के खेतों से अपने रोजगार का रास्ता तैयार कर सकते है. देश भर में ना जाने कितनी खेतों से फाइबर्स इक्कठा कर लोगों के ज़रूरत के सामान बनाए जा सकते है. करने को तो हर काम आसान है बस परिशिथियों से हार मानना सही नहीं है, और ये बात इन महिलाओं से बेहतर कोई नहीं समझ सकता.  

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