Photo Credit: Ravivar vichar
महिलाओं की ज़िद के आगे चट्टानें भी हार मान सकती हैं. वे चटक सकती हैं. और तो और अब तक जो पुरुष अब तक जिन्हें घूंघट तक सिमित मान रहे हों, वे भी ऐसी महिलाओं के लिए अपनी सोच बदलने पर मजबूर हो गए. ये कमाल कर दिखाया है खंडवा जिले में खालवा ब्लॉक के ठेठ पिछड़े जनजाति बहूल गांव लंगोटी की मजबूर महिलाओं ने. यहां गांव में ठंड के खत्म होने से पहले पानी की किल्लत शुरू हो जाती.गांव का तालाब सूख जाता. हालत इतने बिगड़ जाते कि महिलाएं तीन किमी दूर ताप्ती नदी किनारे छोटी-छोटी झिरी (गड्ढे) से पानी निकाल कर मटकों से पानी लाती पड़ता था. दर दर पानी के लिए भटकने के बाद इन महिलाओं को फिर मजदूरी की आग में तपना पड़ता. इस परेशानी से तंग आ कर महिलाओं ने माउंटेन मैन मांझी की राह पकड़ी और जब तक खुदेगा नहीं तब तक रुकेगा नहीं का मंत्र अपनाया.
लंगोटी गांव के 162 परिवारों के हजार से ज्यादा सदस्य हर साल पानी की किल्लत से जूझते. गांव की महिलाएं बताती हैं -"इस पीने के पानी को इकठ्ठा करने में दिनभर हो जाता. एक दिन हमने ठान लिया कि पानी की ये जंग लड़ कर रहेंगे. हम अपना ही एक कुआं खोद कर पानी की व्यवस्था करेंगे. यह बात सुन कर हमारे परिवार के पति और दूसरे पुरुषों ने मज़ाक बनाया. हमने परवाह नहीं की." सरकार ने इस गांव में पानी की किल्लत मिटाने के लिए एक या दो नहीं बल्कि आठ ट्यूबवेल खुदवाए. ये भी एक के बाद एक बैठ गए.अब हमारे पास कोई और चारा नहीं था.
Photo Credit: Ravivar vichar
अब सवाल था कि आखिर किस जगह या किसके खेत पर ये कुआं खोदें. गांव की दो महिलाएं आगे आईं. रामकली और गंगा बाई. दोनों देवरानी -जिठानी ने अपनी खेत की ज़मीन देने को राजी हो गईं. महिलाओं ने एक शर्त रख दी. जब तक पानी नहीं निकलेगा,तब तक हम चट्टानें तोड़ते रहेंगे. महिलाएं एक जुट हुईं. नारियल फोड़ा और फिर खेत की इस जमीं पर शुरू किया खुदाई का काम. कोई महिला कुदाल लाई तो घर में रखी छैनी, हथोड़े, सब्बल.
तेज़ गर्मी और पारा 46-47 डिग्री. चिलचिलाती धूप और बहते पसीने में लथपथ इन महिलाओं के जोश को ठंडा नहीं कर पाई. गांव के पुरुष अभी भी हंसी उड़ा रहे थे. उनको अंदाज़ा था एक-दो दिन में थक कर चूर ये महिलाएं लौट आएंगी.रोज लगभग सत्ताईस महिलाएं चट्टानों से दो चार होती रहीं. पच्चीस फिट पर बड़ी चट्टान रोड़ा बना गई. ग्रामीण महिलाएं कहतीं हैं -" हम सभी पंचायत गए. सरपंच -उपसरपंच ने फंड की दिक्कत बता कर हाथ खड़े कर दिए. हमने कुछ दिन मजदूरी की. अपना पेट काट कर पैसा बचाया और चट्टान के लिए आठ हजार रुपए देकर ब्लास्ट करवाया." फिर महिलाएं कुआं खोदने में जुट गई.
मजबूत इरादों के आगे कोई इन महिलाओं को डिगा नहीं पाया. पूर्व उप सरपंच सामु बाई कहती हैं - "सरकार की प्रक्रिया में ट्यूबवेल खुदे ,जो सफल नहीं हुए. पंचायत के पास इतना पैसा नहीं था." इस बीच तीस दिन बीत गए. कई सब्बल टूटे. छैनी मुड़ गई. लेकिन पानी नहीं दिखा. दिखा तो सिर्फ इन महिलाओं के चेहरे पर पहले दिन वाला जोश और भरोसा. गांव की फूलवती कहती है- "चालीसवां दिन था. हाथों में छाले पड़ गए. अचानक छैनी पर पड़े हथौड़े से चट्टान टूट गई. अंदर तली से पानी की धार फूट गई. पानी की बूंदों की तरह हमारे चेहरों पर खुशियां नाच उठी."
Photo Credit: Ravivar vichar
क्षेत्र में काम कर रही स्पंदन संस्था की सीमा प्रकाश कहती हैं -इन महिलाओं ने कमाल कर दिया. संस्था इन महिलाओं को दो किलो चावल और पाव भर दाल देती. कपड़े मुहैया कराए जिससे महिलाओं का मनोबल बना रहे. "गांव के ही सूरज कहते हैं - "ये महिलाओं का चमत्कार है. उन्होंने साबित कर दिया कि वे ठान लें तो कुछ भी कर सकती हैं."
चट्टानों को चीर कर अपने हक़ का पानी निकाल लिया. गांव की मजदूर और बेबस महिलाओं ने समाज में जल देवियां बन कर नई पहचान बना ली ,जो हर घर की प्यास बुझा रही है.