छत्तीसगढ़ (Chattisgarh) के दुर्ग जिले में बटेर पालन (Quail Farming) को लेकर गांव खम्हरिया, मचांदुर ने अलग पहचान बना ली. छोटे से गांव मचांदुर की शबनम और सरिता साहू कहती हैं - "हम लोग अपने परिवार को चलाने के लिए मजदूरी पर जाते थे. खदानों से मिट्टी खोदकर बहुत मुश्किल से सौ से 150 रुपए कमा पाते. आजीविका मिशन (Ajeevika Mission) के अधिकारियों की मदद से हमने जय गंगा महिला सहायता समूह (Self Help Group)बनाया. बटेर पालन शुरू किया. शुरुआत में थोड़ी दिक्क्त हुई ,लेकिन अब हमारी आर्थिक दशा ही बदल गई. हम लोग अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में पढ़ा रहे."
छत्तीसगढ़ में बटेर पालन ने कई परिवारों की ज़िंदगी बदल दी. महिलाओं को आत्मनिर्भर बना दिया. मजदूरी करने वाली कई महिलाएं अब कारोबार संभाल रहीं हैं. छत्तीसगढ़ के कई जिलों में स्वयं सहायता समूह (Self Help Group)की महिलाएं बटेर पालन कर रहीं. कोंडागांव, दुर्ग सहित कई जिलों में समूह की महिलाओं ने इस कारोबार को कमाई का जरिया बना लिया. यही महिलाएं पहले दिनभर धूप में मजदूरी कर पेट पालती थीं. खदानों से मिट्टी खोद कर पसीना बहाने वाली ये महिलाएं बटेर पालन से कई गुना अधिक मुनाफा कमा रहीं हैं.
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मचांदुर की शबनम बताती है - "शुरुआत में हम खम्हरिया गांव की हैचरी से शुरुआत में 300 चूजे खरीद कर लाए. अब इनकी संख्या एक हजार से ज्यादा है. जो चूजा हम 12 रुपए नग लाए वही ढाबे पर 45 रुपए नग बिक जाता है. इसे हम 60 रुपए जोड़ी में बेचते हैं. बटेर बड़े चाव से खाया जाता है. हमें रोज 150 अंडे मिल रहे हैं. एक सीज़न में ही हमने 70 हजार रुपए का कारोबार किया."
दुर्ग जिले में बटेर पालन को लेकर प्रशासन भी लगतार महिलाओं को ट्रेनिंग दे रहा. दुर्ग ब्लॉक की सहायक विस्तार अधिकारी (ADO) रश्मि चौहान कहती हैं -"हमारे ब्लॉक में खम्हरिया के बाद मचांदुर में हैचरी मशीन लगने वाली है. महिलाओं को बटेर पालन में अच्छा मुनाफा हो रहा है. गौठान परिसर में ही आजीविका मिशन की अलग-अलग योजनाओं से महिलाओं को कमाई के नए स्थान मिल रहे." जिले के पाटन की विस्तार अधिकारी श्वेता यादव बताती हैं -"यहां भी मुर्गी पालन के साथ बटेर पालन में महिला समूह की सदस्यों ने कारोबार शुरू किया. इसमें भी महिलाओं को कमाई में फायदा हो रहा है. इस योजना को और बढ़ावा दिया जा रहा, जिससे अधिक समूह की महिलाओं को लाभ मिल सके."
दुर्ग के कई इलाकों में बटेर पालन के लिए महिलाओं को प्रोत्साहित किया जा रहा है. जिला पंचायत के जिला परियोजना प्रबंधक (DPM) सागर पंसारी कहते हैं - "दुर्ग में महिलाओं को मुर्गी पालन के साथ इस कारोबार के बारे में भी समझाया. इसमें जगह कम लगती है. इसके चूजे 40 से 45 दिन में बड़े हो जाते हैं. इस इलाकों के ढाबे और होटल्स में इसे ख़ास पसंद किया जाता है. इस वजह से इसके भाव भी बटेर पालक महिलाओं को ज्यादा मिल जाते हैं. पशु पालन विभाग भी इसमें पूरा सहयोग दे रहा."
कोंडागांव में भी बटेर की मांग
प्रदेश के ही कोंडागांव में भी बटेर पालन को लेकर महिलाओं में उत्साह है. यहां के अंड़ेगा गांव ने बटेर पालन में खास जगह बना ली. 'नया सवेरा स्वयं सहायता समूह' (SHG) की भुवनेश्वरी प्रधान और संगीता निषाद बताती हैं - "हम घरेलु महिलाएं रहीं. कोई अलग से इनकम नहीं थी. आजीविका मिशन (Ajeevika Mission) की सहायता से समूह बनाया.बटेर पालन शुरू किया. गौठान केंद्र में शेड तैयार कर इसकी शुरुआत की. कांकेर से 500 चूजे लाए. 17 हजार रुपए में यह शुरुआत की. पहली बार इतना फायदा नहीं हुआ,लेकिन दूसरी बार में 80 हजार रुपए की कमाई हुई."
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यहां अब महिलाएं खुद अपना हिसाब रखती हैं. अड़ेंगा की सेक्टर मैनेजर ओमकुंवर बैस बताती हैं - "समूह की महिलाओं ने बहुत मेहनत की. पशु पालन विभाग ने भी महिलाओं को मार्गदर्शन दिया. बटेर की देखभाल और उनकर दाना-पानी के साथ स्वास्थ्य को लेकर भी महिलाएं ट्रेंड हो चुकीं हैं.ये महिलाएं कांकेर जिले से चूजे खरीद कर लाती है."
कोंडागांव का जिला प्रशासन भी इनको आत्मनिर्भर बनाने में जुटा हुआ है. केशकाल के बीएम हरीश मांडवी कहते हैं -" केशकाल ब्लॉक में बटेर पालन योजना को लेकर महिलाओं को पूरा सहयोग दिया जा रहा. मैं खुद सेंटर पर जाकर महिलाओं की परेशानियों को सुन हल करता हूं."
छत्तीसगढ़ के सीनियर ऑफिसर भी इस योजना को लेकर ख़ास ध्यान दे रहे. दुर्ग के जिला पंचायत सीईओ (CEO Zila Panchayat) अश्विनी देवांगन कहते हैं -"मैं महिलाओं को समूह में प्रोत्साहित कर रहा हूं. गौठान सेंटर और आजीविका मिशन के को-ऑर्डिनेशन पर मैंने बहुत ध्यान दिया. समूह की महिलाओं की काउंसलिंग कर एक ही कोई कारोबार पर फोकस करने का सुझाव रंग ले आया. महिलाओं की मेहनत के कारण ही वे आत्मनिर्भर बनने की दिशा में आगे बढ़ चुकीं हैं." आने वाले दिनों में महिलाओं का उत्साह यही बना रहा तो छत्तीसगढ़ में मुर्गी पालन की ही तरह बटेर पालन योजना महिलाओं के लिए कमाई के नए रास्ते खोल कर उन्हें आत्मनिर्भर बनाएगी.