"महिलाओं को न समझो बेकार......जीवन का यहीं है आधार." सुर्ख़ लाल साड़ियां पहन कर जब समूह की महिलाएं गांव की गलियों में नारे लगाती हैं तो उनका विश्वास और हिम्मत देखने वाली है. महिलाओं की ये हुंकार गांव से निकल कर भोपाल के सरकारी गलियारों तक गूंज रही है. इन महिलाओं के जोश ने सबको पीछे छोड़ दिया. इन महिलाओं की आज अपने इलाके के साथ सारे प्रदेश में चर्चा हो रहीं है. ऐसा मैनेजमेंट ऐसा डिसिप्लिन कि यह SHG आज मिसाल है. ये कहानी है नीमच के गांव धनेरियाकलां की. महीने की पांच तारीख हो गयी, गांव की महिलाएं एक जैसी यूनिफॉर्म पहन कर आज फिर गलियों में निकलीं. हाथों में रसीद कट्टा और पूरा हिसाब. ये महिलाएं पूरे आत्मविश्वास से हर घर पर दस्तक दे रहीं हैं.
गांव वालों ने भी रूपये-पैसे से साथ दिया और फिर इन महिलाओं को पानी की प्यास बुझाने के लिए धन्यवाद दिया. देखते ही देखते दो घंटे में लगभग चार हजार रुपए इक्कठे हो गए. इस तरह की मुहिम लगभग तीन दिन चली. स्वसहायता समूह की महिलाऐं खुद कम्यूटर पर पैसों का हिसाब किताब मिलाती हैं जब सदस्य बोली सब ओके. इतना सुनते ही वहां मौजूद महिलाओं के चहरे पर विजयी मुस्कान आ जाती है. अभी कुछ महीनों पहले लगभग साढ़े छह हजार की आबादी वाले इस गांव में पीने के पानी के लिए महिलाऐं अक्सर जद्दोजहद करती थी. उनकी आधी ज़िंदगी का हिस्सा पानी की व्यवस्था करने बीत रहा था,ऊपर से खेत मजदूरी में पसीना बहाना. इस परेशानी से निजात पाने के लिए महिलाओं ने वो कर दिखाया जिसकी कल्पना गांव के पुरुषों ने कभी की ही नहीं थी. इन महिलाओ को कोशिशों से ही अब पूरे गांव की प्यास बुझा रही है.
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स्वसहायता समूह की सदस्य ग्रामीणों से टैक्स वसूलती हुई (Photo Credits: Ravivar vichar)
गांव की सरपंच देवकन्या कहती हैं-" साढ़े छह हज़ार से ज्यादा आबादी वाले इस गांव में पानी की अच्छी टंकी है,12 सौ नल कनेक्शन के साथ पानी भी था. लेकिन गांव के पुरुष और पंचायत कर्मचारियों को गांव के ही लोग टाइम पर टैक्स और मैंटेनस का पैसा तक नहीं देते थे." इस कारण पानी की सप्लाई पूरी तरह चरमरा गई. कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था, फिर यह जवाबदारी बैठक कर दो स्वसहायता समूह श्रीराम सहायता समूह और बजरंगबली सहायता समूह को सौपीं. यह एक नया प्रयोग था.
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धनेरियाकलां की महिलाएं तकनीकी व्यवस्था देखते हुए (Photo Credits: Ravivar vichar)
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टेक्नीशियन से वॉटर सप्लाई सिस्टम समझते हुए (Photo Credits: Ravivar vichar)
गांव के ही प्रेम सिंह चुण्डावत कहते हैं - "टाइम पर पैसे इक्कठे नहीं होने से व्यवस्था बिगड़ रही थी. क्या बच्चे और क्या महिलाएं सभी परेशान थे. अब गांव के ही समूह की महिलाओं ने ये व्यवस्था संभाली ,उसके बाद कोई परेशानी नहीं आ रही हैं." समूह की जयश्री राठौर कहती हैं- "शुरुआत में बहुत बड़ी चुनौती थी. अब तक ये काम हमारे ही गांव के पुरुष करते थे. लेकिन पूरे आत्मविश्वास से यह जवाबदारी ली. दोनों समूह में 11-11 महिला सदस्य हैं, राजस्व बढ़ा तो आत्मविश्वास भी बढ़ा." समूह की ही अंगूरबाला रेगर भी गर्व से बताती है -" सदस्यों ने ठान लिया था कि गांव कि परेशानी दूर करनी है.अब कम्यूटर पर पूरा हिसाब रखते हैं जिससे पता चल जाता है कि किस परिवार का टेक्स बकाया है." मधु कंवर बहुत खुश है. वह कहती है -"हमने साबित कर दिया कि महिलाएं किसी काम में पीछे नहीं हैं. लगातार राजस्व कि बंपर वसूली हो रही है." जो वसूली बड़ी मुश्किल से सात-आठ हजार रुपए तक हो पाती थी,अब हर महीने 20 हजार रुपए तक हर महीने वसूली हो रही है. समूह कि सदस्य कहती हैं-" पहले केवल पानी सप्लाई कि व्यवस्था को ठीक किया. धीरे-धीरे टेक्निकल लोगों को बुला कर ट्रेनिंग भी ले ली. अब समूह को इस राजस्व वसूली का दस प्रतिशत राशि समूह को दी जाती है. बाकि राशि से बिजली का बिल और मैंटेनस भी टाइम पर हो रहा है. धनेरियाकलां में स्वसहायता समूह अब बुलंद भारत की बुलंद तस्वीर पेश कर रहा है.
'महिलाओं ने जब संभाली कमान
हर नल में पानी,बढ़ा स्वाभिमान'
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नल में पानी की धार देख चेहरे पर छलकी खुशी (Photo Credits: Ravivar vichar)