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पानी की समस्या सबसे बड़ी और पुरानी है. ऐसे में महिलाएं आगे आई. उन्होंने जल सहेली समूह बनाया. ये जल सहेलियां अपने गांव के क्षेत्र में पानी की समस्या को दूर करने के लिए सभी प्रकार के प्रयास करती हैं. 

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SHG women saving water

Image Credits: Ravivar vichar

बुंदेलखंड की  वीरांगना लक्ष्मी बाई ने अंग्रेज़ो से लोहा लेकर वीरगति  प्राप्त की. लेकिन लगभग 180 साल बाद आज दुश्मन बदल गया है.   बुंदेलखंड की सैकड़ों वीरांगनाएं आज जलवायु परिवर्तन से दो-दो हाथ आज़मा रही हैं. सूखाग्रस्त इलाके में पानी की उपलब्धता को बनाये रखने के लिए एक जुट होकर संघर्ष कर रही हैं.       

बुंदेलखंड मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश की सीमा से सटा एक ऐसा पठारी क्षेत्र है, जो दोनों राज्यों के 13 जिलों से मिलकर बना है. एक करोड़ से भी ज़्यादा आबादी वाले इस क्षेत्र की ज़्यादातर नदियां, तालाब और कुंए सूख रहे हैं. पानी ना होने के कारण किसान आत्महत्या कर रहे हैं और परिवार के परिवार पलायन को मजबूर हैं. क्षेत्र में उद्योगों का विकास ना के बराबर है. पानी की समस्या सबसे बड़ी और पुरानी है. 

ऐसे में गांव -देहातों में रहने वाली महिलाएं आगे आई हैं. उन्होंने यहां की एक स्वयं सेवी संस्था की पहल पर एक समूह बनाया है, जिसका नाम है जल सहेली. समूह के नाम के आधार पर समूह से जुड़ने वाली महिलाओं को भी जल सहेली कहते हैं, जो अपने गांव के क्षेत्र में पानी की समस्या को दूर करने के लिए सभी प्रकार के प्रयास करती हैं. 

SHG women saving water

Image Credits: Ravivar vichar

परमार्थ सेवी संसथान की मदद से देखते ही देखते पूरे बुंदेलखंड में 1000 से अधिक जल सहेलियों का एक मॉडल खड़ा हो गया. ये ग्रामीण  महिलाएं गांव के लोगों को पानी से जुड़े हर प्रकार की समस्या के समाधान बताती हैं | इसमें पानी का संचयन, जल संरक्षण, कुओं को गहरा करना, जल संरचनाओं का पुनर्द्धार, छोटे बांध बनाना, हैंड पंप को सुधारना, सरकार के साथ समुदाय की भागीदारी करवाना, प्रशासनिक अधिकारियों से मिलना और ज्ञापन देना तक शामिल है |

परमार्थ सेवी संसथान के संजय सिंह बताते है, 'जल सहेली' मॉडल के माध्यम से बुंदेलखंड के चंदेल कालीन तालाबों के पुनरुद्धार का बेहतर प्रयास किया है. इन जल सहेलीयो ने पानी पंचायत के माध्यम से न केवल 2256 हेक्टेयर कृषि भूमि को कुल 10.121 बिलियन लीटर पानी उपलब्ध कराया, बल्कि फ़सल पद्धति में बदलाव और स्मार्ट कृषि के माध्यम से कुल 3.288 बिलियन लीटर पानी की बचत की. जल सहेलियों  के इन प्रयासों से 1194.60 टन अतिरिक्त कृषि उत्पादन और 8867 श्रमिक दिवस का रोज़गार भी उत्पन्न किया.

गांव की यह महिलाएं बहुत से कामों में पुरुषों से भी ज़्यादा बेहतर तरीके से भागीदारी करती हैं. जल सहेलियों का कहना है कि जिन गांवों में जल सहेलियों के ग्रुपों का गठन हुआ है, वहां विकास खुद-ब-खुद दिखता है. जल स्रोंतों से अतिक्रमण हटा है. पीने के पानी की व्यवस्था भी काफी अच्छी हुई है. सिंचाई आदि के साधनों की कमी भी दूर हुई.

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मध्य प्रदेश में छतरपुर जिले की जल सहेली गंगा लोधी कहती है, "लोग जलवायु परिवर्तन की बात करते हैं लेकिन यहां हम लोगों को पता है की मौसम में बदलाव हमे कैसे और कितना परेशान कर रहा है. बढ़ते हुए तापमान से बुंदेलखंड की धरती और ज़्यादा प्यासी हो गयी है और अब हमे पानी की हर एक बूंद को बचाना है. जल सहेलियों की एक बड़ी सफलता है कि लोगों को पानी बचाना आ गया है."

SHG women saving water

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ट्यूबवेल से पानी निकालते समय पहले काफी पानी बह भी जाता था. लेकिन हमने  उसको भी बचाने का प्रयत्न किया है."

गंगा कहती हैं, " हमने ट्यूबवेल के पास पानी को बहने के लिए  नालियां बना दीं है और उनका निकास गढ्ढो में होता है. गढ्ढे भरते हैं और उसका पानी मवेशी पी लेते हैं. धरती का पानी भी रिचार्ज हो जाता है."

SHG women saving water

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गंगा के अनुसार जल सहेलियों ने अपने गांव की एक नदी को भी पुनर्जीवित किया है. ये छोटी सी सही लेकिन गांव के लिए वरदान है और ये केन नदी की एक सहायक नदी है.  

“जल सहेली”और "पानी पंचायत” का यह मॉडल आज भारत सहित पूरी दुनिया में फ़ैल रहा है.

 

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