पूरे देश में गज़क की मिठास और अनूठे स्वाद के लिए प्रसिद्ध मुरैना में यहां की महिलाएं अब मजदूर नहीं बल्कि मालकिन के दर्जे से कालीन बनाने की यूनिट संभालेगी. घर और बंगलों की शान-ओ-शौकत बढ़ाने के उपयोग में लाए जाने वाले गलीचे या कालीन के लिए अब आपको पंजाब या दक्षिण भारत का मुंह नहीं देखना पड़ेगा. अभी तक मजदूरी कर रही महिलाओं ने यह जिम्मा संभाला. अब यही महिलाएं मजदूरी छोड़ कालीन बनाएंगी. एक सप्ताह के अंदर ही 300 से से ज्यादा महिलाओं ने इसकी तैयारी कर ली. बीस से ज्यादा स्वयं सहायता समूह यह का पंजीयन भी करा लिया गया है. आने वाले दिनों में मुरैना के गलीचे या कालीन घरों की सजावट का हिस्सा होंगें.जिला पंचायत अंतर्गत आजीविका मिशन के अधिकारी इस यूनिट को शुरू करने में जुटे हुए हैं.
कालीन बनाती महिला कारीगर (Image Credits: Ravivar vichar)
अलापुर गांव के हाजी अली स्वयं सहायता समूह की रेशमा कहती हैं -" मैं तो बरसों से मजदूरी कर रहीं हूं. केवल डेढ़ सौ रुपए रोज मिलते हैं. समूह के साथ मिलकर हमने कालीन बनाने की ट्रेनिंग ली. मैं अपनी सखियों के साथ बहुत मेहनत कर सुंदर कालीन बनाएंगे. मुझे ख़ुशी है कि आने वाले दिनों में हम मजूदर नहीं मालकिन कहलाएंगे." ऐसे ही लगभग तीन सौ महिलाओं के चेहरे पर अब खुशियां देखी जा सकती. दूसरे या अली स्वयं सहायता समूह की सोनी दीदी बताती है -" मैंने कभी सोचा नहीं था कि जीवन में कभी मजदूरी छूट भी सकती है. इतना पैसा नहीं मिलता कि घर को अच्छे से पाल सकें. कई घंटे काम करने के बाद भी मजदूरी बहुत कम मिलती.हम ठेकेदारी प्रथा के चुंगल से मुक्त हो जाएंगे. घुर्रा गांव के ख्वाजा गरीब नबाब स्वयं सहायता समूह की अकीला कहती है -"अब हमारे बनाए कालीन सब जगह जाएंगे.मेहनत का फल मिलेगा. "
आजीविका मिशन ने इन समूह के सदस्यों की मदद की. जौरा ब्लॉक प्रबंधक द्वारिका प्रसाद धाकड़ कहते हैं -" समूह की सदस्य दीदियों की काउंसलिंग की गई. उनको कालीन बनाने की पहली ट्रेनिंग दे दी गई. अभी और दूसरे समूह को भी इस मिशन में जोड़ा जा रहा है जिससे वे भी आत्मनिर्भर बन सके. शासकीय औपचारिकता पूरी कर ली गई है. जल्दी ही यूनिट शुरू होगी जहां महिलाएं आर्थिक आत्मनिर्भर बन जाएंगी." जिले में अभी तक ये महिलाएं अन्य ठेकेदारों के यहां मजदूरी करती हैं और अपना जीवन बसर कर रहीं हैं. आजीविका मिशन के जिला परियोजना प्रबंधक दिनेश तोमर कहते हैं -" यह जिले में नया प्रयास है. इन महिलाओं को एकजुट कर "नया सवेरा कालीन उत्पादक संगठन " बनवाया गया. इसका रजिस्ट्रेशन करवा कर बाकायदा नई पहचान देने के प्रयास किए गए हैं. हम और समूह की महिलाओं को भी ठेकेदारी प्रथा और मजूदरी से निकाल कर आर्थिक मजबूत बनाएंगे."
इस तरह कालीन बनाए जाएंगे (Image Credits: Ravivar vichar)
मुरैना जिले के कई इलाकों में कालीन और फर्श बनाने का कम बड़े पैमाने पर किया जा रहा है. लेकिन इसमें ठेकेदारी प्रथा होने से महिलाओं के आर्थिक तंगहाली और शोषण की शिकायतें मिलती रहीं हैं. इससे मुक्त कराने का बड़ा मिशन जिला प्रशासन ने हाथ में लिया. जिला पंचायत के सीईओ डॉ. इच्छित गढ़पाले कहते हैं -"मुरैना में महिलाओं की मेहनत सराहनीय है. यहां आजीविका मिशन से जुड़े समूहों की महिला सदस्यों द्वारा कई तरह के काम किए जा रहें हैं. कालीन बनाने में भी कई महिलाओं में हूनर है.लेकिन ये महिलाएं मजदूरी तक सीमित रह गईं. अब इन्हीं को आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है. निर्माण के उपयोग में आने वाले कच्चे माल की व्यवस्था भी जाएगी. साथ ही एडवांस ट्रेनिंग दिलवा कर महिलाओं को और अधिक तकनीक बताई जाएगी. यह जिले की बहुत बड़ी उपलब्धि है."
महिलाओं का हौंसला बढ़ाने के लिए ग्वालियर-चंबल संभाग के कमिश्नर दीपक सिंह ने खुद कई गांव का दौरा किया. समूह सदस्य महिलाओं से मिले. उनके कम को समझा. कमिश्नर सिंह कहते हैं -" यह जिले में बहुत बड़ा बदलाव है. यहां की महिलाएं बहुत मेहनती हैं. उनको शासन की योजनाओं का पूरा लाभ दिलाया जाएगा. यहां के बने कालीनों की मार्केटिंग की भी गुर सिखाए जाएंगे."