ब्लॉक प्रिंटिंग से दीदियों ने चमकाया चंदेसरी

उज्जैन जिले के गांव चंदेसरी में महिलाओं ने ब्लॉक प्रिंट का काम शुरू कर परिवार को आर्थिक मजबूती दी. चंदेसरी गांव अब ब्लॉक प्रिंट वाली दीदियों के नाम से जाना जाता है. यह प्रसिद्ध भेरूगढ़ प्रिंट का ही हिस्सा है.

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मेले में शामिल हुईं चंदेसरी की महिलाएं (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)

उज्जैन (Ujjain) जिले के गांव चंदेसरी की रहने वाली ज्योति, अर्चना, हेमलता हो या पूजा के घर की कहानी एक जैसी है. ज्योति मालवीय कहती है- "मैं घरेलु महिला थी. घर खाना बनाने के बाद कोई काम नहीं था. यही हालत मेरे गांव में कई महिलाओं की थी. हमारे पति मजदूरी पर जाते, जितना मिलता उसी से घर चलना था. आजीविका मिशन की मदद से  विनायक स्वयं सहायता समूह बनाया. ब्लॉक प्रिंट की ट्रेनिंग लेकर काम शुरू किया. नई कमाई से हिम्मत आ गई."  

अपने मजदूर पति का घर इंतज़ार करने वाली ये घरेलु महिलाएं अब खुद आत्मनिर्भर हो गईं. कपड़ों पर अलग-अलग चटख रंग उकेरने वाली इन महिलाओं ने केवल दो साल में ही अपने गांव को नई पहचान दे दी. इतनी मेहनत की, कि घर के आर्थिक हालात बदल गए और परेशानी से जूझ रहे इन परिवारों की ज़िंदगी कलर के साथ रंग-बिरंगी हो गई. उज्जैन जिले के गांव चंदेसरी में महिलाओं ने ब्लॉक प्रिंट (Block Print) का काम शुरू कर परिवार को आर्थिक मजबूती दी. चंदेसरी गांव अब ब्लॉक प्रिंट वाली दीदियों के नाम से जाना जाता है. यह प्रसिद्ध भेरूगढ़ प्रिंट का ही हिस्सा है. 

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उज्जैन जिले की घरेलु महिलाएं बनी बिज़नेस वुमन (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार) 

इन महिलाओं के हाथों में नया हुनर आ गया. इस समूह से जुड़ी अर्चना कहती है -" हम सभी एक जगह बैठ कर ये प्रिंट का काम करते हैं. मेरे पति सहित दूसरी महिलाओं के परिवारों ने भी बहुत साथ दिया. अधिकारियों ने हमें भोपाल सहित दूसरे मेलों में भेजा. मैं चाहती हूं कि हमें और अधिक मार्केटिंग की जगह मिले. "          

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साड़ियों पर उकेरी सुंदर डिज़ाइन (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)


उज्जैन के पास चंदेसरी गांव में महिलाएं परेशान थीं. आजीविका मिशन (Ajeevika Mission) के ब्लॉक प्रबंधक प्रवीण कुमार सिंह कहते हैं- "इस गांव में खेतिहर मजदूर लोग ज्यादा हैं. महिलाओं के पास खेतों में मजदूरी के सिवा कोई दूसरा काम ख़ास नहीं था. हमारी टीम ने गांव की महिलाओं की काउंसलिंग की. विनायक समूह बना कर जोड़ा. इन्हें प्रिंटिंग की ट्रेनिंग दिलवाई. अब यह खुद यूनिट चला रहीं हैं.घर की कमाई बढ़ी है." इस समूह में दस महिलाओं को जोड़ा गया. इनमे से कुछ महिलाएं प्रिंटिंग और कुछ महिलाएं सिलाई के काम से कमाई कर रहीं. ग्राम नोडल सहायक विकासखंड प्रबंधक रेखा बावरिया बताती है -" गांव की महिलाओं ने उत्साह से ट्रेनिंग ली. सदस्यों को लगातार प्रोत्साहित करते हैं जिससे  ये पूरी तरह आत्मनिर्भर हो सकें."

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 चीफ असिस्टेंट टेक्निकल ऑफिसर मोनी सिंह के साथ ट्रेनिंग लेतीं महिलाएं  (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)

कृषि विज्ञान केंद्र उज्जैन (Krishi Vigyan Kendra, Ujjain) ने इन महिलाओं को खास तरह की एक सप्ताह ट्रेनिंग (training) दी. इस सेंटर की चीफ असिस्टेंट टेक्निकल ऑफिसर डॉ. मोनी सिंह (Chief Assistant Technical Officer Dr. Moni Singh) कहती है- " इन महिलाओं को ट्रेनिंग देना बड़ी चुनौती था. ये पूरी तरह घरेलु महिलाएं थीं. लेकिन जल्दी इन महिलाओं ने साबित कर दिया कि गांव कि गांव कि महिलाएं ज्यादा मेहनती होतीं हैं. साधन कम होने के बाद भी उनमें क्रिएटिविटी कम नहीं है. कोरोना काल में अहमदाबाद से ब्लॉक्स मंगवाए.कलर्स उज्जैन के बाजार से लिए. यहां तक कॉटन की साड़ियां और दूसरे कपड़े उज्जैन से उपलब्ध करवाए. खासतौर पर मैंने खादी की साड़ियां पश्चिम बंगाल से मंगवाई. 22 से ज्यादा महिलाएं गांव में इस प्रिंटिंग कला में एक्सपर्ट हो गईं.मुझे ख़ुशी है कि ये महिलाएं अब यूनिट चला रहीं."

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दीवान सेट, बेडशीट सहित साड़ियों पर उकेरी सुंदर डिज़ाइन  (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)

ब्लॉक प्रिंट कि डिज़ाइन लगातार पसंद की जा रही. समूह की अध्यक्ष ज्योति मालवीय बताती है -" हम सभी मिलकर डबल बेडशीट, सिंगल शीट, साड़ियां, परदे, दीवान सेट, टेबल कवर कपड़ों पर प्रिंट करते हैं. बेडशीट की कीमत 800 से 1050 रुपए तक है. साड़ियों की कीमत लगभग 1100 -1200 होती है. रोज़ दो साड़ियां, 3 बेडशीट और दूसरे कपड़ों पर प्रिंट कर तैयार कर लेते हैं. हमारी कमाई 5 से छह हजार रुपए महीना होने लगी." मार्केटिंग (marketing) को लेकर आजीविका मिशन के जिला परियोजना प्रबंधक चंद्रभान सिंह कहते हैं -" ग्रामीण हाट बाजार और मेलों में महिलाओं को भेजा जा रहा है. सभी सदस्यों को प्रोत्साहित किया जा रहा. ऑनलाइन बिज़नेस (online business) और अमेज़न (Amazon) से मटेरियल सेल करने के लिए मिशन और कृषि विज्ञान केंद्र के टेक्निकल ऑफिसर प्रयास कर रहे." 

महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अलग-अलग कारोबार के लिए ट्रेनिंग दी जा रही. जिला पंचायत कि सीईओ अंकिता धाकरे कहती हैं -"मुझे ख़ुशी है कि छोटे से गांव की महिलाओं ने मेहनत कर ट्रेनिंग ली. घरेलु महिलाएं होने के बावजूद अब उत्साह से ब्लॉक प्रिंट से कई तरह के आइटम बना रहीं हैं. ऐसी महिलाओं को लगातार काउंसलिंग कर और अधिक प्रोत्साहित किया जा रहा है.एडवांस मार्केटिंग के हुनर में इन महिलाओं को आगे लाया जाएगा. " 

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