यहां रेशा रेशा है काम का....

महिलाओं की मेहनत और हाथों का कमाल है की रेशों से तैयार प्रोडक्ट की पहचान दूर-दूर तक बन रही है. जिले में सौ से ज्यादा महिलाएं इन दिनों केले के तने से निकलने वाले रेशों से हैंडी क्रॉफ्ट बनाने में जुटीं हैं.

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विवेक वर्द्धन श्रीवास्तव
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Image Credits: Ravivar vichar

खेतों में मजदूरी करते-करते बरसों गुजार देने वाली प्रियंका कुशवाह अब घर से कमान संभाल रही है. प्रियंका कहती है-"मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि जिन खेतों में केले तोड़ कर उसके तने काट कर सूखने के लिए फेंक देते थे,वही हमारे स्वाभिमान की ज़िन्दगी का हिस्सा हो जाएंगे. हम गांव  महिलाएं इन केले के तनों से निकाले गए रेशों से क्रॉफ्ट के आईटम बना रहे हैं. इन रेशों ने हमारी ज़िंदगी बदल दी. " बुरहानपुर जिले के जयसिंगपुरा की महिलाओं की मेहनत और हाथों का कमाल आज मिसाल बन गया. उनके हाथों से बनी सुंदर और नायब चीज़ें पर्यटकों को लुभा रही है. रेशे से तैयार प्रोडक्ट की पहचान दूर-दूर तक बन रही है. 

दरअसल तीन साल पहले तक बुरहानपुर जिले के केले किसान फसल लेने के बाद अगली फसल लेने के लिए ये सूखे तने काट कर फेंक देते थे. इसका कोई उपयोग नहीं किया. सरकार की ' एक जिला एक उत्पाद ' योजना का लाभ ले कर शहर के युवक मेहुल श्रॉफ ने लोन लेकर  केले के तनों से रेशे निकालने की मशीन लगाई. इसी से महिला समूह के आत्मनिर्भर बनने के रस्ते खुल गए. जिले में केले की बंपर पैदावार के बाद यहां केले के पेड़ के तने आसानी से मिल जाते हैं. इन्हीं से रेशे निकाल सुखाए जाते हैं. 

पुरातत्व और संस्कृति विभाग की तरफ से भेजे गए टेक्सटाइल विभाग से जुड़े ट्रेनर धर्मेंद्र पाटिल कहते हैं -"इन महिलाओं को समूह में ट्रेंड किया गया. केले के रेशे से इन महिलाओं को रस्सी ,देव सथल की सफाई उपयोगी झाड़ू ,बास्केट्स,केप सहित अन्य आइटम बनाना सिखाए. अब ये पूरी तरह ट्रेंड हैं. "आजीविका मिशन की परियोजना प्रबंधक कृष्णा रावत कहतीं हैं -" ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और मजदूरी से मुक्त करने में प्रशासन काफी हद तक सफल रहा. जो महिलाएं कारखाने में रेशा लेकर  वही काम करना नहीं चाहती ,उन्हें घर पर ही प्रोडक्ट बनाने की सुविधा दी गई. इसमें ग्रामीण महिलाओं के  अलावा नेपानगर की स्वसहायता समूह की शहरी रोजगार योजना अंतर्गत इस रोजगार से जोड़ा गया है. "फाइबर क्राफ्ट्स से लगभग शहरी और ग्रामीण इलाके की सौ से अधिक महिलाएं अलग-अलग तीस समूहों में जुड़ कर अब मजदूरी से दूर इस कारोबार से जुड़ आत्मनिर्भर हो गईं.     

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नेपानगर की सरला सचिन कहती हैं -" मैं बेरोजगार थी.इस बीच प्रशासन की मदद से मैंने रेशे से आईटम बनाना सीख लिया. अधिकारी हमें मार्केटिंग भी सीखा रहे हैं. मुझे ख़ुशी है कि अब खुद इन तैयार आइटम से पैसा कमा लेती हूं. " इस कारोबार से जुडी रंजना पंवार भी गर्व से बताती है - " घर कि जरूरतें पहले पूरी नहीं हो पाती थी. अब वह इस कला से पैसा कमा रहीं हैं. उनके ग्रुप में तीस महिलाएं हैं. " प्रियंका और उनके ही परिवार की नर्मदा बाई कहती हैं -"  हम लोग अब बास्केट्स ,केप,चटाई ,योग मेट आदि बना लेती है.इन्हें बाहर से आने वाले टूरिस्ट बहुत लेते हैं."

कलेक्टर भव्या मित्तल कहती हैं -" जिले में केले की पैदावार देश में खास जगह रखती है. किसान अभी तक केले के पेड़ और फसल लेने के बाद काट कर फेंक देते थे, लेकिन इसे रॉ मटेरियल बनाकर इससे फाइबर्स निकाल उनका उपयोग किया. इससे जिले की महिलाओं को नई पहचान मिली. टूरिज़्म डिपार्टमेंट से भी कोर्डिनेट किया गया है ,यह विभाग जिला टूरिज़्म काउंसिल को आर्थिक सपोर्ट भी कर रहा है. जिससे ये आईटम प्रदेश और राष्ट्रीय प्रदर्शनी में भी और प्रभावी ढंग से शामिल किए जा सके. प्रयास किए जा रहें हैं कि इस वेस्ट मटेरियल से बनाए गए आकर्षक प्रोडक्ट को विदेशी धरती पर भी पहचान मिले. "     
        

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जिला प्रशासन और कलेक्टर भव्या मित्तल खुद इस प्रोडक्ट के लिए लगातार समूह कि महिलाओं को प्रोत्साहित कर ट्रेनिंग दिलवा रही हैं. जिला प्रशासन के सहयोग और महिलाओं के प्रयासों से अब तक शाहजहां के लाल ताजमहल और मुमताज सहित कई कहानियों को अपने इतिहास में समेटे बुरहानपुर शहर की मेहनती महिलाएं फाइबर्स क्रॉफ्ट निर्माता के रूप में नया इतिहास रच देगीं.  

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