कभी आर्थिक रूप से परेशान महिलाओं के लिए वूडन वर्क (Wooden Work) वरदान बन कर आया. इतनी मेहनत की, कि वूडन बेग (Wooden Bags) से ज़िंदगी में बल्ले-बल्ले हो गई. इंदौर जिले में बन रहे वूडन बैग्स ने पूरे देश में अलग पहचान बना ली. एक सामाजिक संस्था के लिए प्रायवेट काम कर रही महिलाओं को आजीविका मिशन (Ajeevika Mission) ने आत्मनिर्भर बना दिया. अब ये ही महिलाएं सम्मान की ज़िंदगी जी रहीं हैं. जिले के महू ब्लॉक में सातेर गांव की महिलाएं तरह-तरह के आकर्षक बैग्स बना रहीं. इसके अलावा वूडन से ही बनी जूलरी भी इन महिलाओं के हाथों का कमाल है. डिज़ाइनर बैग्स और जूलरी आधुनिक युवतियों की खास पसंद बन गई.
मशीन के पास खड़ी समूह अध्यक्ष रमा कौशल (Image Credits: Ravivar vichar)
सातेर गांव की रमा कौशल कहती हैं -" शुरुआत में हमारे परिवार के हालात अच्छे नहीं थे. लकड़ी के छोटे काम जैसे फ्रेम वगैरह बना कर प्रायवेट संस्था की देते थे. मेरी इनकम नियमित नहीं थी. आजीविका मिशन के अधिकारियों की मदद से हम कुछ महिलाओं ने मिलकर जयश्री महाकाल समूह बना लिया. अब हम कुछ महिलाएं मिलाकर वूडन बैग्स बनाने लगे. मुझे अब हर महीने कमाई होने लगी."
वूडन बेग (Image Credits: Ravivar vichar)
इस समूह से जुडी कई महिलाओं की आर्थिक हालत ठीक हो गई. इस समूह की सचिव शीतल कौशल बताती है- "हम लोगों को कच्चा माल मिल जाता है. हम महिलाएं मशीन पर ये बेग बनाती हैं. ट्रेनिंग से बहुत फायदा हुआ. अब काम के लिए भटकना नहीं पड़ता. मैं बैग्स के अलावा वुड के टॉप्स ,झुमके और फ्रेम जैसी चीज़ें भी बना लेती हूं."
समूह के साथ असिस्टेंट ब्लॉक मैनेजर अंजलि सिंह (Image Credits: Ravivar vichar)
जयश्री महाकाल ग्रुप की सदस्यों को मिशन ने वूडन बैग्स बनाने की ट्रेनिंग दी. महू ब्लॉक की असिस्टेंट ब्लॉक मैनेजर अंजलि सिंह कहती हैं -"स्वयं सहायता समूह की सदस्यों को वूडन बैग्स यूनिट (Wooden Bags Unit) के लिए ट्रेनिंग दिलवाई. इन दीदियों के लिए एक बेग निर्माण प्रायवेट यूनिट (NGO) से तीन साल के लिए कॉन्टेक्ट किया. अब ये सदस्य 7 से 9 हजार रुपए महीने कमा लेती हैं.मैं लगातार इन महिलाओं सदस्यों के संपर्क में रहती हूं. जिससे इन्हें परेशानी न हो."
वूडन से बनी जूलरी जो महिलाओं कि खास पसंद बन गई (Image Credits: Ravivar vichar)
वूडन बैग्स की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है. ये सदस्य अपना प्रोडक्ट लेकर भोपाल, इंदौर के आयोजनों के अलावा कई शहरों में ले जा चुकीं हैं. महू को ब्लॉक मैनेजर श्वेता सुसलादे कहती हैं -"आजीविका मिशन से जुड़ने से पहले सीधे प्रायवेट यूनिट के लिए काम करती थीं. इससे जॉब ग्यारंटी नहीं होती थी. स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) बन जाने के बाद लोन दिलवाया. इस तरह के बेग बनाने में वुड, कलर और कपड़ा जैसे कच्चा माल इंदौर मार्केट से लाते हैं. ये बेग 500 रुपए से 1500 रुपए तक मिल जाते हैं.ये बेग अलग-अलग साइज़ और डिज़ाइन में बनाए जा रहे हैं."
वूडन से बनी जूलरी जो महिलाओं कि खास पसंद बन गई (Image Credits: Ravivar vichar)
बैग्स की बढ़ती मांग के बीच उत्पादन बढ़ने की भी योजना है. जिला पंचायत के जिला परियोजना प्रबंधक हिमांशु शुक्ला कहते हैं -" मुझे ख़ुशी है कि बैग्स को जगह-जगह लगने वाले मेले और प्रदर्शनी में जगह मिल रही है. यहां तक कि सरस मेलों के लिए भी इस बेग और दूसरे उत्पाद का चयन हुआ है. इन सदस्यों को और प्रोत्साहित किया जाएगा. महू (Mhow) के पास एक मॉल में ये बैग्स उपलब्ध हैं. इस मॉल में भी एसएचजी (SHG) की सदस्य ही बैठती हैं."