वेस्ट से बेस्ट पेपर बेग

कपड़े की थैलियों के घटते प्रचलन से गांव की महिलाओं सहित दूसरे लोग भी परेशान थे. जहां चाह,वहां राह की सोच रखने वाली इन महिलाओं के लिए आजीविका मिशन प्रोजेक्ट राह बन कर आ गई. महिलाओं ने अलग-अलग गांव में स्वसहायता समूह बनाए. रास्ता भी मिला और विकल्प भी.

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विवेक वर्द्धन श्रीवास्तव
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पेपर से बैग बनाती हुई महिलाएं Image Credits: Ravivar vichar

मनीषा पाटीदार और अलका  तिवारी के हाथों में अखबार का पेपर है. वही पेपर जो रद्दी हो गया.जिसे हम रद्दी वाले को बेचने के सिवाय कुछ उपयोग में नहीं लाते. उसी अख़बार को बड़े खूबसूरत अंदाज़ में मनीषा ने नया शेप दे दिया. देखते ही देखते पेपर बेग तैयार हो गया. मनीषा ,अनिता के चेहरे पर मुस्कान आ गई. वह पिछले छह दिन से ऐसे  ही बेग बनाने की प्रेक्टिस कर रही थी. आज वह बहुत ही सुंदर बेग बनाना सीख गई. ये स्वसहायता समूह से जुड़ी महिलाएं खरगोन जिले की हैं. आजीविका मिशन ने ऐसी 15 महिलाओं को पहली बार पेपर बेग बनाने की ट्रेनिंग दी.  बिना किसी लागत के इस कारोबार को लेकर महिलाओं ने नए सपने संजोये और भरोसा हो गया कि वह अब अपने पैरों पर खड़ी हो जाएंगी.

दरअसल पॉलीथिन के उपयोग और बढ़ते खतरे से निपटने के लिए कुछ महिलाओं ने आगे कदम बढ़ाए. गांव में फेंकी गई पॉलीथिन की थैलियां, पन्नियां को  मवेशियों द्वारा खा लेने के बाद तड़प -तड़प कर मरते देख महिलाओं का दिल पसीज गया. यह घटनाएं गांव में सामान्य है. मवेशियों की मौत और पशु पालकों के लाखों के नुकसान का असर ये हुआ कि महिलाओं ने विकल्प तलाशना शुरू किए. हर हाल में पॉलीथिन का बढ़ता उपयोग और उसके नुकसान से बचने के लिए महिलाओं ने ठान ली.कपड़े की थैलियों के घटते प्रचलन से गांव की महिलाओं सहित दूसरे लोग भी परेशान थे. जहां चाह,वहां राह की सोच रखने वाली इन महिलाओं के लिए आजीविका मिशन प्रोजेक्ट राह बन कर आ गई. महिलाओं ने अलग-अलग गांव में स्वसहायता समूह बनाए. रास्ता भी मिला और विकल्प भी. 

रानी लक्ष्मी स्वसहायता समूह की मनीषा पाटीदार  कहती हैं -" मैं कई दिनों से परेशान थी. रामपुरा गांव में समूह बनाया पर कोई खास काम नहीं हो पा रहा था. बेग बनाने में कोई अलग खर्ज या बजट कि जरूरत नहीं होगी. इसी समूह कि पारू पाटीदार और वंदना भी खुश हैं. गांव की ही महालक्ष्मी समूह की आशा यादव कहती हैं -" मेरे पास केवल दो एकड़ जमीन है. इतना खर्च नहीं निकल पाता. मुझे पाता चला कि बेग बनाने की ट्रेनिंग दी जा रही है. मैंने मन लगा कर सीखा. "रामपुरा की ही महिला शक्ति समूह की अलका यादव  ने भी ट्रेनिंग ली. वे  कहती हैं -" हमारे समूह में कई गरीब महिलाएं भी हैं. उनको इस धंधे से लाभ मिलेगा. गोपालपुरा की अनिता तिवारी कहती हैं -इस ट्रेनिंग में बेग बनाने में कोई लागत नहीं आती. हमारे पास कोई बजट नहीं था. अब बेग बनाकर कारोबार करेंगे इस ट्रेनिंग में ज्योति ,किरण आदि भी शामिल हुई.  

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(समूह द्वारा बनाये पेपर बैग Image Credits: Ravivar vichar)

आजीविका मिशन ने इस प्रोजेक्ट पर खास फोकस किया. मिशन की परियोजना प्रबंधक सीमा निगवाल ने बताया कि आरसेटी द्वारा यह ट्रेनिंग दिलवाई गई.यह ट्रेनिंग लगातार जारी रहेगी.महिलाओं को लगातार प्रोत्साहन दिया जा रहा है.  नरेश  शेंद्रे का कहना है - यह ट्रेनिंग खास विशेषज्ञों ने महिलाओं को दी. महिलाएं केवल पांच सौ रुपए में अपना कामकाज शुरू कर सकती है. ट्रेनर हितेश पंवार ने बताया कि रद्दी पेपर से किराना सामान में उपयोग कर सकते हैं. आजकल शॉपिंग मॉल में जी पेपर बेग का उपयोग करते हैं, उनको बनाने कि भी ट्रेनिंग दी गई. ये पेपर थोक में सस्ते मिल जाता है. अब तक वे खरगोन के अलावा धार ,हरदा ,बैतूल ,छिंदवाड़ा शहरों में भी महिलाएं ट्रेनिंग ले कर काम शुरू कर चुकी हैं. 

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(समूह द्वारा बनाये पेपर बैग Image Credits: Ravivar vichar)

जिला पंचायत की सीईओ ज्योति शर्मा कहती हैं -" यह प्रोजेक्ट बहुत सफल रहेगा. समूह की महिलाओं ने मन लगा कर ट्रेनिंग ली. ऑफिस फाइल्स बनाना भी सीखी जिसका उपयोग हर ऑफिस में किया जाता है. और भी समूह की महिलाओं को इसकी ट्रेनिंग दिलवाई जाएगी.मुझे ख़ुशी है कि जिले में महिलाएं कई तरह के रोजगार से जुड़ कर परिवार में कंधे से कंधा मिला कर साथ चल रहीं है. "कलेक्टर शिवराज सिंह वर्मा कहते हैं -" जिले की महिलाएं बहुत मेहनती हैं. समूह को अलग-अलग क्षेत्रों में रोजगार के अवसर दिलवाए जाएंगे. जिले में बहुत संभावनाएं हैं.महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्थानीय विकल्पों पर जोर दिया जा रहा है. " 

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