लाख की गुड़िया बनेगी लाखों कि फेवरेट

ओडिशा के बालासोर शहर के बाहरी इलाके कोशाम्बा नगर गाँव में भी लाख के गुड्डा गुड़िया बनाने वाली कारीगर महिलाएं रहती है. अपना स्वयं सहायता समूह (SHG) बनाकर यह महिलाएं लाख के गुड़ियाँ बना रहीं है.

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रिसिका जोशी
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laq ki gudiya

Image Credits: Wink Report

गुड़िया देखते ही बचपन को याद करने लगता है व्यक्ति. कोई परेशानी नहीं, कोई टेंशन नहीं, बस हम और हमारे खिलौने. माँ-पापा या दादी दादा से पूछेंगे तो वो भी यही बताएंगे. बस अंतर होगा तो हमारे और उनके खिलौनों में. वे लोग मिट्टी और लाख के गुड्डे गुड़ियों से खेला करते थे और आज के बच्चों के पास हर खिलौना प्लास्टिक के बने होते है. अब तो बच्चों को पता ही नहीं कि लाख के खिलौने भी होते है. ओडिशा के बालासोर शहर के बाहरी इलाके कोशाम्बा नगर गाँव में भी लाख के गुड्डा गुड़िया बनाने वाली कारीगर महिलाएं रहती है. अपना स्वयं सहायता समूह (SHG) बनाकर यह महिलाएं लाख के गुड़ियाँ बना रहीं है. देश में जब से प्लास्टिक के खिलौनों का चलन बढ़ा, इन महिलाओं के व्यवसाय पर काफी नकारात्मक असर हुआ है लेकिन फिर भी ये महिलाएं अपने पारम्परिक काम और शिल्पकारी को छोड़ना नहीं चाहतीं. 

कनकलता इस समूह की प्रमुख है, वे बताती है- "हमने 2005 में 15 महिलाओं के साथ बिनापानी self help group का गठन किया और तब से हम विभिन्न आकारों की लाख मूर्तियां जौकंधेई बना रहे हैं." यह ओडिशा की एक पारंपरिक लोक कला है. कनकलता और अन्य महिलाएं जो गुड़िया बना रही थीं, उन्हें बालेश्वरी जौकंधेई कहा जाता है. इन गुड़ियों के ढांचे मिट्टी से बने होते हैं जिनपर चमकदार लाख पेंट लगाकर तैयार किया जाता है. जौकंधेई गुड़िया आमतौर पर एक पुरुष और एक महिला के जोड़े में होती हैं, और इन्हें वैवाहिक सुख का शुभ प्रतीक माना जाता है. वे साबित्री व्रत जैसे त्योहारों का एक अभिन्न अंग भी हैं. 

एक कारीगर इस शिल्प से प्रति माह 10,000 रुपये से 30,000 रुपये के बीच कमाता है. हां यह सच है कि प्लास्टिक ने इस मार्केट को बहुत नुकसान पहुंचाया है, लेकिन जब से 'नेचर फ्रेंडली' चीज़ों का प्रचलन शुरू हुआ है, तब से इन गुड़ियों की मांग बढ़ी है. ओडिशा और देश की सरकार इन पारंपरिक कलाओं को बढ़ावा दे रही है, जिससे इन कारीगरों को अपना कौशल दिखाने का मौका मिल रहा है. रविवार विचार का मानना है कि हमारी संस्कृति के ज़रूरी हिस्से है ये कलाएं. इन्हे खो देना किसी भी नज़रिये से फायदेमंद नहीं होगा. सरकार को इन कौशलों को आगे बढ़ाने के लिए शिल्प मेले और प्रदर्शियां का आयोजन करना चाहिए ताकि महिला SHGs को एक स्टेज मिल पाए. हलाकि, यह महिलाएं अब खुश है कि इन्हें अपने प्रदर्शनियों से काफी फायदा हो रहा है. इसी तरह से महिलाओं का कौशल भी दुइनया के सामने आगे और वे अपना जीवन भी खुशहाल बना पाएंगी.

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