"केरल के मठ में जाकर देखा तो सोच भी नहीं पाई कि महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए इतनी बड़ी पहल की गई. उनके लिए सबसे जरुरी सैनिटरी पेड को इतना हाइजेनिक और रियूज़ तरह का बनाया जा रहा था. मैंने सभी साथी दीदियों के साथ पूरे उत्साह से ट्रेनिंग ली. मुझे पूरा भरोसा था कि अपने जिले में पहुंच कर महिलाओं को इसका महत्व और उपयोग का तरीका सीखा सकूंगी. और बुरहानपुर लौट कर ऐसा ही हुआ." प्रगति महिला स्वयं सहायता समूह की दीपिका सोनी ने वहां मिली ट्रेनिंग के फायदे बताए.
आने वाले दिनों में खासकर ग्रामीण महिलाओं के स्वास्थ्य को लेकर बड़ी सौगात मिलने वाली है. आजीविका मिशन (Ajeevika Mission) के तहत बुरहानपुर जिले में खास तरह से बनने वाले सैनिटरी पेड (Sanitary Pad) बनाने की यूनिट लगेगी. केले के पेड से निकलने वाले रेशे से तैयार यह पेड सस्ते होने के साथ रियूज़ लायक होंगे. एक ही पेड का कोई भी महिला चार साल तक उपयोग कर सकेगी. महिलाओं को जहां एक ओर रोजगार मिलेगा वहीं गरीब महिलाओं को महंगे पेड खरीदने की मजबूरी से छुटकारा भी मिल जाएगा.केरल के मां अमृतानंद मठ यानि अम्मा के मठ में यह ट्रेनिंग दी गई.
लगभग 13 दिनों की इस ट्रेनिंग कैंप में छह जिले की अलग-अलग स्वयं सहायता समूह (Self Help Group-SHG) की महिलाओं को शामिल किया गया. इसमें बुरहानपुर के अलावा खंडवा,खरगोन,धार,बड़वानी, झाबुआ से भी महिलाओं को इस ट्रेनिंग के लिए भेजा गया. इसी टीम में शामिल प्रियंका मंडलोई कहती है -" मठ में हमें सैनेटरी पेड की उपयोगिता, उसके खास फायदे और ग्रामीण महिलाओं तक कैसे पहुंचाया जाए जैसे मुद्दों पर ट्रेनिंग दी. हमें बतौर पेड के सैंपल भी दिए गए. हमने काउंसलिंग कर ग्रामीण महिलाओं को इसके फायदे बताए. महिलाओं को इस का लाभ समझ में आने लगा है."
प्रदेश की समूह से जुड़ी महिलाएं जो ट्रेनिंग के लिए केरल पहुंची
यदि ग्रामीण महिलाओं को इसका उपयोग करना आ गया तो समूह द्वारा ही यूनिट डाली जाएगी. आजीविका मिशन की जिला परियोजना प्रबंधक संतमति खलखो कहती हैं -"इस पेड की खासियत हैं कि ये केले के रेशे और कॉटन के कपड़े की सिलाई से तैयार होते हैं. इसे साफ पानी में धोकर लगभग चार साल रियूज़ कर सकते हैं. यह सस्ता पड़ेगा. समूह की दीदियां इसके लिए जागरूकता अभियान चला रहीं हैं.जिले में केले का सबसे ज्यादा उत्पादन होने से बुरहानपुर को पेड निर्माण यूनिट लगाने के लिए चुना है."
केरल के अम्मा मठ से जुड़ी अंजु बिष्ट मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) से वहां पहुंची महिलाओं की ट्रेनिंग और अन्य जानकारियों के लिए कोऑर्डिनेशन कर रहीं हैं. अंजु कहती हैं -"प्रदेश के समूह से जुड़ी महिलाएं बेहद मेहनती हैं. अभी हर पेड की लागत केवल 350 रुपए है. जबकि ब्रांडेड पेड बहुत महंगे होने के साथ सिंगल यूज़ हैं. हम प्रयासरत हैं कि बुरहानपुर में जल्दी यूनिट लगे. हम भोपाल में राज्य आजीविका मिशन से जुड़े अधिकारियों से लगातार संपर्क में हैं."
पेड उपयोग को लेकर की जा रही काउंसलिंग और मार्केंटिंग की गुंजाईश में जहां समूह की महिलाएं अपने-अपने जिले में व्यस्त हैं, वहीं इस इस खास पेड को लेकर इंदौर की चर्चित गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. मंजुश्री भंडारी कहती हैं- "यह सरकार की पहल बहुत बढ़िया है. ग्रामीण महिलाओं को इसका सीधा लाभ होगा.पर खतरा भी उतना ही है. अभी तक महिलाएं मेंस्ट्रुअल टाइम में पेड यूज़ कर फेंक देती हैं. यदि इस खास पेड की सफाई और उसका उपयोग को लेकर बहुत गंभीरता से सीखना होगा. हाइजेनिक ध्यान रखना होगा,अन्यथा इंफेक्शन का खतरा बना रहता है."
प्रशासन बुरहानपुर में इस यूनिट को लेकर लगातार प्रयास कर रहा है. कलेक्टर भव्या मित्तल (Collector Bhavya Mittal) कहती हैं -" समूह की महिलाएं पेड बनाने को लेकर रूचि ले रहीं हैं. सेकेण्ड फेस में प्रोडक्शन की ट्रेनिंग की व्यवस्था की जाएगी. यह इलाका केला उत्पादक है इसलिए उससे रेशे निकालना आसान होगा. इस प्रोजेक्ट में कोई समझौता नहीं किया जाएगा. यह यूनिट जिले के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि होगी. समूह की महिलाओं को जहां आर्थिक लाभ होगा वहीं ग्रामीण महिलाओं के अच्छे स्वास्थ्य को लेकर जागरूक होंगी. "