हमारा भैसान गांव इतना छोटा था कि क्या अलग ऐसा क्या काम करें कि मजदूरी छूट जाए और कमाई भी बनी रहे,यही सोचते रहते. हमारे पास कोई पूंजी भी नहीं थी, जिससे कोई नया काम शुरू कर सकें. फिर हम दुर्गा स्वयं सहायता समूह से जुड़े.रास्ते मिले. लोन मिला और ज़िंदगी बदल गई. अब मुर्गी पालन केंद्र की मालकिन हूं. इतने अंडे तैयार हो रहे कि रखने की जगह नहीं बची. गांव की सुशीला बाई उइके ने ये बातें बताते-बताते भावुक हो गई.
सीहोर जिले के आदिवासी ब्लॉक बुधनी और नसरुल्लागंज के चालीस गांव की मजदूर या घरेलु महिलाएं इन दिनों एसएचजी से जुड़ कर आत्मनिर्भर होने की दिशा में आगे बढ़ रहीं हैं. साढ़े तीन हजार महिलाओं कि तक़दीर अब बदल गई.यहां तक कि फटे कपड़ों से भी कमाई कर रहीं हैं.
फोटो क्रेडिट: जुगल किशोर पटेल
सुशीला बाई आगे बताती हैं-" अब हम आठ से दस हजार रुपए महीने कमा लेती हूं. " इसी गांव में दो समूह की बीस महिला सदस्य रोजगार से जुड़ गईं. इसी ब्लॉक के मरदानपुर गांव की कविता बताती है -" पहले कोई काम नहीं था. दुर्गा समूह से जुड़ी. दोना-पत्तल की मशीन डाल कर कारोबार शुरू किया.धीरे-धीरे काम बढ़ गया.
जिले में रेहटी तहसील की दो ही आदिवासी ब्लॉक में 35 हजार से ज्यादा महिलाएं 263 अलग-अलग समूह से जुड़ी हुईं हैं. इन समूहों को सरकारी योजनाओं को समझाने लाभ दिलाने के साथ प्रेरित करने वाली जागृति महिला संस्थान की अध्यक्ष सरोज भल्लावी कहती हैं-" आदिवासी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए हमारी संस्था जागरूक करने का काम करती है. उन्हें आजीविका मिशन से लोन दिलाने के साथ कारोबार में सजग रहने की तकनीक समझाते हैं.
फोटो क्रेडिट: जुगल किशोर पटेल
ढाबा गांव की बबिता और उसके पति भी मजदूरी से जैसे-तैसे गुजर बसर करते थे. बबिता कहती है -"श्री कृष्णा स्वयं सहायता समूह से जुड़ी और पांच हजार का लोन ले कर किराने की दुकान शुरू की. शुरू में गांव में दूसरी दुकानें होने से ज्यादा नहीं चल पा रही थी. हमने महिलाओं से जुड़े आइटम रखे और हाट बाजारों में जाना शुरू किया. हमारी कमाई बढ़ गई. हमने एक पुरानी वेन खरीद ली. अब उससे ही हाट बाजार जाते हैं." गांव धनकोट की सीमा ने महाकाल समूह से जुड़ कर बड़ी -पापड़ सहित कई खाने के सामान बनाने शुरू किए. नरेला गांव की एकता समूह से जुड़ने वाली पूजा और श्री कृष्णा समूह की शांति मसकोले बताती है -" हमने फाटे हुए कपड़ों का उपयोग किया. इन कपड़ों को सिल कर थाल पोश, पैर पोश सहित कई आकर्षक सामान बनाए. इससे कमाई शुरू हो गई.
जनजागृति समूह की सचिव संतोषी तिवारी बताती हैं -" ये पूरे आदिवासी समूह हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि समूह ने भी आपस में व्हाट्सएप ग्रुप बना लिया. जिससे जरूरत का सामान समूह के सदस्य आपस में ही खरीद कर एक दूसरे को बढ़ावा देते हैं. हमारा मकसद महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने में मदद कर उनका आत्मविश्वास बढ़ाना है."