नाग पंचमी पर महिला श्रद्धालु में आस्था का सैलाब

मध्यप्रदेश के निमाड़ में नागपंचमी की धूम है. खासकर महिलाएं सावन के महीने में नागपंचमी का भी बेसब्री से इंतज़ार करती हैं. पूरे निमाड़ भगवान भोलेनाथ के श्रृंगार माने जाने वाले नाग को देवता का अवतार माना.

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विवेक वर्द्धन श्रीवास्तव
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खरगोन में शिवलिंग तराशती SHG सदस्य

नाग पंचमी पर महिला श्रद्धालु में आस्था का सैलाब 

मध्यप्रदेश के निमाड़ में नागपंचमी की धूम है. खासकर महिलाएं सावन के महीने में नागपंचमी का भी बेसब्री से इंतज़ार करती हैं. पूरे निमाड़ भगवान भोलेनाथ के श्रृंगार माने जाने वाले नाग को देवता का अवतार माना. महिलाएं इस इलाके में शिवलिंग के साथ नागपंचमी पर नागदेवता को अवतार भीलट देवता के रूप में पूजती हैं. यहां सैकड़ों की संख्या में भीलट यानी नागदेवता के मंदिर हैं.  

जीवनदायिनी नदी मां नर्मदा का उल्लेख पुराणों में तो है ही साथ ही रेवा को गंगा से भी पुरानी माना गया है. ऐसी मान्यता है कि गंगा नदी में स्नान से जो पुण्य लाभ मिलता है वही लाभ मां नर्मदा नदी के दर्शन मात्र से मिल जाता है. यह भी मान्यता है कि नर्मदा नदी के कंकर-कंकर में शंकर का स्वरूप है और इस मान्यता का साक्षात रूप देखने को मिलता है खरगोन जिले बकावां गांव में. वैसे भी सनातन परंपरा में माना गया है कि नर्मदा के कंकर और पत्थर निकाल कर सीधे स्थापित करते हैं और उनकी प्राण प्रतिष्ठा की जरूरत नहीं पड़ती. वह वैसे ही पूजनीय होते है.नदी की गहराई से इन पत्थरों को निकाल तराश कर इसे शिवलिंग का स्वरूप दिया जाता है.यह तराशे हुए शिवलिंग,  भारत सहित दुनियाभर में स्थापित होते है और इन नर्मदेश्वर शिवलिंगों का महत्व सबसे ज्यादा है. घरों से लेकर मंदिरों तक हर जगह नर्मदेश्वर शिवलिंग पूजे जातें है. लेकिन इन्हें तराशना और सही शिवलिंग का रूप देना आसान काम नहीं है. इस काम में बकावां के सैकड़ों लोग जुटे हैं. सम्भवतः यह एक मात्र गांव है जहां साढ़े पांच हजार की आबादी में अधिकांश परिवारों की जीविका का साधन शिवलिंग तैयार करना ही है.यह गांव देश-विदेश में इन पत्थरों और शिवलिंग निर्माण के लिए प्रसिद्ध है.श्रावण महीने और महाशिवरात्रि जैसे विशेष दिनों में शिवलिंग और भगवान भोलेनाथ के इस निराकार स्वरूप का महत्व और बढ़ जाता है.यहां के पत्थरों में प्राकृतिक कलाकृतियां उभरी हुई दिखती है तराशे जाने के बाद इन पर तिलक,ॐ व अन्य आकृति दिखती हैं. जो धार्मिक भावनाओं को और आस्थावान बना देती है.

इतना सब होने के बावजूद कुछ साल पहले तक यहां की महिलाएं खेतिहर मजदूर थी.जब खेतों में काम नहीं मिलता तब शिवलिंग निर्माण कर रहे लोगों के लिए मजदूरी कर शिवलिंग बनाती थी. यहां की महिलाएं अपने भविष्य को लेकर हमेशा चिंतित थी. मजदूरी में उतनी कमाई नहीं थी कि परिवार की ठीक से देखभाल कर सकें. इस समस्या से निकलने के लिए गांव की ही महिलाओं ने नए कदम उठाया और  जिला प्रशासन के मार्गदर्शन में SHG तैयार किया. 10 महिलाओं ने कुछ नया करने के लिए हिम्मत दिखाई और फिर पिछले 3 वर्षों से पलट कर पीछे नहीं देखा. अब यही महिलाएं अपनी नई पहचान बना रहीं हैं.नर्मदा नदी की गहराइयों से निकलने वाले शंकर स्वरूप पत्थरों को तराश कर खुद की तकदीर को तराशने में जुड़ गई हैं .

महिलाओं को मिला रोजगार का सहारा 

इस SHG की अध्यक्ष योगिता केवट ने बताया - " पहले हम सभी समूह सदस्य मजदूरी करती थी. फिर हम 10 दीदीयों ने मिलकर शिवलिंग स्व सहायता समूह बनाया.  नदी से निकाले गए पत्थरों को तराशना शुरू किया" . शुरुआत में पत्थरों को ये महिलाएं परम्परागत छैनी और हथौड़ी से पत्थर तराश शिवलिंग बनाती थी. रात दिन की मेहनत की और धीरे-धीरे इस काम ने रफ्तार पकड़ ली.  साप्ताहिक कुछ रुपए जुटाकर उन्होंने यह काम शुरू किया. जब कुछ पैसा इकट्ठा हो गया तब नर्मदा से निकले पत्थर को तराशने के लिए कटर मशीन खरीदी. आज इन मशीनों के साथ वे बेहतर तरीके से शिवलिंग बना रहीं हैं. इस समूह को आजीविका मिशन से भी सहायता मिली. आजीविका मिशन के तहत उन्होंने अलग अलग कुल 12 लाख रुपए का लोन लिया. जिसे पूरे अनुशासन के साथ किस्तों के रूप में समय पर उतार भी दिया. समूह की दीदियां गर्व से बताती हैं- "फिलहाल हमारे पास आठ लाख रुपए की जमा पूंजी है".  समूह की सदस्य पहले कभी खेत में मिर्ची तोड़ने तो कभी खेतों में दूसरे कामों के लिए जाती थी. इससे बड़ी मुश्किल से 4 से पांच हजार रुपए महीने भी कमाई नहीं होती थी.इस संस्था में उनके साथ रमाबाई नारायण, संध्या भाई हरेराम, सीमा राकेश, संगीता राधेश्याम,सुशीलाबाई गणेश,राधाबाई मिश्रीलाल, बसंतीबाई केसरीलाल हैं, जो पूरी श्रद्धा से शिवलिंग का निर्माण कर रही हैं. यह शिवलिंग सुपारी आकार से 51 फीट तक के बनाए जाते हैं. वे रोज 15 से 20 शिवलिंग का कच्चा माल तैयार कर लेती हैं.  बड़ा शिवलिंग तैयार करने में 7 से 8 दिन लग जातें है . समूह की सफलता उस मुकाम पर है कि अब परिवार के सदस्य और खासकर पति भी काम में साथ दे रहे हैं. 

समूह ने बकावां गांव में चार दुकानें खोल रखी हैं. यहीं इंदौर, जयपुर,वाराणसी, दिल्ली, हैदराबाद जैसे शहरों से लोग शिवलिंग खरीदने आते हैं.कई बार विदेशी लोग भी सीधे  यहां आ जाते हैं. दुकान पर ये शिवलिंग 15 रुपए से लगाकर लगभग डेढ़ लाख रुपए तक की कीमत के होते हैं. समूह की महिलाओं को यह अफसोस है कि शिवलिंग उन्हें स्थानीय दुकानों से ही बेचना पड़ता है. केवल राष्ट्रीय आजीविका मिशन के तहत ही  फिलहाल ऑनलाइन शिवलिंग के लिए आर्डर ले पाती हैं.वे चाहती हैं कि जिला प्रशासन और सरकार बड़ा मार्केट उपलब्ध कराए. अगर इस समूह को ऑनलाइन बिज़नेस की व्यवस्था के साथ मार्गदर्शन मिल जाए तो उनकी कमाई कई गुना बढ़ हो सकती है. फिलहाल उन्हें व्यापारियों की शर्तों पर ही शिवलिंग बेचने पड़ते है.  इसके अलावा कुछ बिचौलिए भी यहां से ओने पौने-दामों पर शिवलिंग खरीद कर महंगे दामों पर बड़े शहरों में बेच देते हैं.यही बिचौलिए हैं ,जो विदेशों में भी शिवलिंग निर्यात कर देते हैं. स्थानीय समूह फिलहाल इस ऑनलाइन पहुंच से दूर है. 

एक समय खेती मजदूरी करती इस समूह की महिलाओं को आज सुकून और सुरक्षा है कि प्रति सदस्य लगभग 10 से 12 हजार रुपए प्रतिमाह कमा रहीं हैं. प्रशासन ने उनकी मेहनत और लगन को देखकर कियोस्क सेंटर चलाने की अनुमति दे दी और यह समूह बकावां में कियोस्क सेंटर चला रहा हैं. सदस्यों के अलावा अन्य ग्राहकों के माध्यम से वे अब तक तीन करोड़ रुपए का ट्रांजैक्शन कर चुकी हैं.

जिला पंचायत में परियोजना प्रबंधक सीमा निगवाल ने बताया कि - "समूह को लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा है. साथ ही सारी जानकारी और मदद समूह तक पहुंचाई जा रही है". समूह की सदस्य भी जिला प्रशासन का सहयोग और समर्थन के लिए धन्यवाद करती है. जिला पंचायत खरगोन की सीईओ ज्योति शर्मा ने कहा कि इस कला को संरक्षित किया जाएगा.ऑनलाइन और सोशल मीडिया के जरिए मार्केटिंग करने के लिए ट्रेंनिग दिलवाने की योजना बनाई जा रही है.सांस्कृतिक,परम्परागत प्रदर्शनियों में  शामिल होने के लिए भी प्रोत्साहित किया जाएगा.

यह शिवलिंग बनाने की परंपरा ग्रामीणों को विरासत में मिली है . रियासत काल और देवी अहिल्याबाई होल्कर के शासनकाल में यह बहुत समृद्ध थी.आज समूह सदस्यों के साथ गांव के बुजुर्ग चिंता में हैं कि यह गांव और नर्मदा का किनारा महेश्वर बांध परियोजना अंतर्गत डूब प्रभावित है. यदि बांध परियोजना अपना मूर्त रूप लेती है तो इस गांव के किनारे के साथ गांव भी डूब जाएगा. गांव के मिश्रीलाल,दीपक नामदेव ने बताया-" इस विरासत और कला को बचाने के लिए ग्रामीण लगातार मांग कर रहे हैं". यदि नर्मदा का जलस्तर बढ़ा और किनारे डूब गए तो यह अनूठे पत्थरों को ढूंढना और निकालना मुश्किल हो जाएगा. साथ ही SHG महिलाओं की इस अनूठी पहल पर भी पानी फिर जाएगा.

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