केले के वेस्ट तो महिलाएं कर रहीं बेस्ट

आस पास के खेतो और बागानों से हर महीनें यह महिलाएं केले का सारा कचरा मंगवाती है.बौधांचल स्वयं सहायता समूह के संस्थापक तेजस्वी पाठक कहतीं हैं, "केले के तने का उपयोग हम गहनों से लेकर गुड़िया और ट्रे जैसे उत्पादों को तैयार करने के लिए करते हैं.

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रिसिका जोशी
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उत्तर प्रदेश का एक जिला, श्रावस्ती, जो की एक बहुत प्रचलित पर्यटन स्थल है क्युकी मन जाता है की गौतम बुद्ध एनलितांमेन्ट (प्रबोधन) के बाद यही रहने लगे थे. इसी कारण यहाँ बहुत से लोग घूमने के लिए आते है. लेकिन इससे हटकर यहां की महिलाएं एक असामान्य सी चीज़ के आने का इंतज़ार भी करती मिलतीं है. यह असामान्य चीज़ है 'केले का कचरा'. आस पास के खेतो और बागानों से हर महीनें यह महिलाएं केले का सारा कचरा मंगवाती है. बौधांचल स्वयं सहायता समूह के संस्थापक तेजस्वी पाठक कहतीं हैं, "केले के तने और उनके छिलके प्राकृतिक फाइबर का एक स्रोत हैं, जिसका उपयोग हम गहनों से लेकर गुड़िया और ट्रे जैसे उत्पादों को तैयार करने के लिए करते हैं." इस पहल से उन्होंने 30 और महिलाओं को रोजगार दिया है. 

महिलाएं दो समूहों में काम करती हैं. एक समूह कचरे को अलग करना, केले के रेशों को निकालने वाली मशीन चलाना, जटा को रंगना और हाथ से उन्हें तार बनाने के लिए बाँड्ने के काम करता है. दूसरे समूह में वे कारीगर शामिल हैं जो तार से हस्तकला उत्पाद बनाते हैं. फैशन डिजाइनर पाठक कहतीं है- "मैंने हमेशा महसूस किया था कि इस जिले में स्थानीय रूप से बनने वाले उत्पादों के लिए एक बड़ा अप्रयुक्त बाजार था. इसलिए, जब मैं महामारी के दौरान मोहम्मदपुर घर लौटा और परिवारों को खुद को बचाए रखने के लिए मेहनत करते देखा, तो मैंने कुछ महिलाओं के साथ इस विचार पर चर्चा की. जनवरी 2022 में, हमने इस SHG की स्थापना की." स्थापना के बाद से ही महिलाओं को केले और जूट के रेशे से उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है. अक्टूबर 2022 में, श्रावस्ती भूमि संरक्षण कार्यालय ने समूह को केले का रेशा निकालने वाली मशीन दान की. श्रावस्ती के भूमि संरक्षण अधिकारी शिशिर वर्मा का नें कहा- "इस क्षेत्र में केले के बागान आम हैं, और फसल के बाद लगभग 60 प्रतिशत केले के बायोमास को बेकार माना जाता है. SHG कचरे की समस्या का भी बहुत बड़ा समाधान कर रहे है है."

ये समह फ़िलहाल अपने उत्पादों को सरकारी हस्तकला उत्सवों और बोलकर बेच रहा है. हाल ही में सोशल मीडिया पेज शुरू किए गया जिसपर काफी अच्छी प्रतिक्रिया देखने को मिली. यह उत्पाद जल्दी ही ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर भी देखने को मिल जाएंगे. महिलाएं इस रोजगार अवसर के करना प्रति महीना 10,000 रुपये कमा रहीं है. इस पहल को पुरे देश में बहुत बड़े पैमाने पर शुरू किया जा सकता है. देश दुनिया के लोगो को बेस्ट फ्रॉम वेस्ट का कांसेप्ट वैसे ही बहुत भाता है और फिर यह उत्पाद आर्गेनिक भी है. महिलाएं इस पहल से बहुत अच्छे से अपना जीवन यापन कर सकती है. देश की सरकार को इस पहल को हर उस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर शुरू करना चाहिए जहां केले की खेती होती है. इसी तरीके की पहल महिलाओं और उनके परिवार के जीवन को बदल देंगी.

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