"मेरे परिवार में चाहे छह बीघा ज़मीन हो लेकिन इतनी ज्यादा सूखी है कि कोई भी खेती में मुनाफा मिलता ही नहीं.कुछ साल में ही केवल डेढ़ बीघा जमीन में मैंने 'मीठी तुलसी' लगाई. इस मीठी तुलसी ने तो मेरी जिंदगी में मिठास ही घोल दी.आजीविका मिशन की मदद से मैंने श्रीकृष्ण स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) बनाया. अधिकारियों ने हमने इस फसल के बारे बताया. लागत से ज्यादा कई गुना मुनाफा हुआ. एक सीज़न में ही मैंने 20 हजार रुपए की कमाई कर ली." ये कहना था धार के छोटे से गांव बड़वेली की रामी बाई का ... रामी बाई जैसी धार जिले में लगभग 120 दीदियां हैं जो अलग-अलग समूह से जुड़ कर मीठी तुलसी यानि स्टेविया (Stevia) की खेती कर रही है.
पिछले कुछ सालों में स्टेविया शुगर (diabetes) के मरीजों के लिए वरदान साबित हुई. लगभग नहीं के बराबर लागत में कई गुना मुनाफा देने वाली स्टेविया (मीठी तुलसी) ने किसान दीदियों की ज़िंदगी को आत्मनिर्भर बना दिया. प्रदेश में सैकड़ों बीघा ज़मीन पर स्टेविया की खेती होने लगी. भारत में बढ़ते डायबिटीज़ के मरीजों के लिए यह नेचुरल प्रोडक्ट (Natural Product) स्टेविया ने दूसरे आर्टिफिशियल स्वीटनर (artificial sweetener) को काफी हद तक रिप्लेस कर दिया. जिला एवं पंचायत के आजीविका मिशन (Ajeevika Mission) के अधिकारियों ने बकायदा ट्रेनिंग देकर स्वयं सहायता समूह (SHG) के सदस्यों को इस खेती के लिए मोटिवेट किया. सरदारपुर के ब्लॉक मैनेजर नरेंद्र सिंह वास्केल कहते हैं -" इस ब्लॉक में आदिवासी बहुलता है. किसानों के पास अधिक ज़मीन नहीं है. ग्राम नोडल मनीषा उपाध्याय ने महिलाओं की काउंसलिंग की. प्रेरित किया. सभी ने मिलकर किसान दीदियों को स्टीविया खेती के फायदे बताए.इस ब्लॉक में ही बड़वेली, मानसिया, घाटीवाला तिरला गांव में उत्साह से खेती की जा रही. "
धार जिले के खेत में लगे स्टेविया के पौधे (Image Credits: Ravivar vichar)
मंदसौर-नीमच मंडियों में धार का दबदबा
स्टेविया की खेती और उपज का इतना असर रहा कि धार जिले की इस पैदावार ने प्रदेश की सबसे बड़ी औषधि मंडी नीमच सहित मंदसौर में दबदबा कायम कर दिया. यहां की मंडियों में लगातार स्टेविया की मांग बढ़ रही है. मनासिया गांव की पूजा स्वयं सहायता समूह की पूजा नरेंद्र और तिरला के भगवती समूह की प्रभु वीरालाल कहती हैं - "शुरुआत में स्टेविया की पत्तियों को तोड़ घर में सूखाते. हम समूह की सदस्य अपने हिसाब से बेच रहे थे. कुछ खरीदार सीधे हमारे खेत से भी ले जाते. इसमें इतना फायदा नहीं हुआ. फिर जिले के सभी समूह की महिलाओं ने रास्ता निकाला. एक साथ माल बेचने नीमच पहुंचे जहां मुनाफे से हमारी ज़िंदगी बदल गई."
आजीविका मिशन के सूक्ष्म उद्यमिता विकास जिला प्रबंधक अमित कुमार आर्य कहते हैं -" समूह की महिलाओं की लगातार की गई काउंसलिंग का नतीजा है कि धार जिले ने स्टेविया में ने नई पहचान बनाई. किसान दीदियों को ज्यादा मुनाफा दिलाने के लिए उनके माल को एक साथ इकठ्ठा करवा कर बड़ी मंडियों में बेचा. फायदा लाखों में हुआ." स्टेविया 150 रुपए किलो से 250 रुपए किलो की भाव बिक रहा.
शकर से 30 गुना मीठा !
स्टेविया पर कुछ सालों में कृषि वैज्ञानिकों और विभाग का ध्यान ज्यादा गया. यह किसान महिलाओं के साथ मेडिकल फील्ड में शुगर पेशेंट के लिए संजीविनी साबित हो रहा. वैज्ञानिकों और रिसर्च के अनुसार स्टेविया को बोलचाल की भाषा में मीठी तुलसी भी कहते हैं. बॉटनिकल नाम 'स्टेविया रेबुडियाना' (Stevia Rebaudiana) है. इसकी पत्तियां (leaf) शकर (sugar) से लगभग 30 गुना मीठी है. इसमें एंटीऑक्सीडेंट कॉम्पोनेंट (antioxidant component) मिलता है. प्रोटीन, फाइबर, आयरन, विटामिन-सी सहित कई उपयोगी तत्व पाए जाते हैं. राज्य औषधि और पादप बोर्ड के कंसल्टेंट मनीष पुरी गोस्वामी कहते हैं -" मप्र (Madhya Pradesh) में धार,जबलपुर में खेती के साथ खंडवा में भी इसकी नर्सरी तैयार की जा रही है. आने वाले दिनों में स्टेविया को और प्रमोट किया जाएगा."
पहली बार डब्लूएचओ की चेतावनी !
देश में लगभग 10 करोड़ लोग डायबिटीज़ की चपेट में हैं.और कई प्री-डायबिटिक स्टेज पर हैं. एकदम शकर (sugar) छोड़ नहीं पाने के कारण बड़ी संख्या में डाइबिटिक पेशेंट आर्टिफिशियल स्वीटनर का जमकर उपयोग कर रहे. डॉ.समीर माहेश्वरी, एमडी कहते हैं - "पहली बार WHO (World Health Organisation) ने सख्त चेतावनी दी. आर्टिफिशियल स्वीटनर को खतरनाक बताते हुए लंबे समय उपयोग पर साइड इफेक्ट होने का खतरा बताया. यह भारत में चिंता की बात है. समझाइश के बाद भी लोग उपयोग कर रहे. जबकि नेचुरल प्रोडक्ट स्टेविया की पत्तियां या पॉवडर पूरी तरह सेफ है. आर्टिफिशियल स्वीटनर की जगह स्टेविया लीव्स का उपयोग कर सकते हैं. ब्लड प्रेशर, स्किन, हड्डियों के दर्द में भी कारगर है." हालांकि स्टेविया का ट्रेंड बढ़ता दिखने भी लगा है. मेडिकल शॉप के संचालक हर्षित राठौर विहान कहते हैं -" अलग-अलग कंपनियों ने स्टेविया लॉन्च किया. यह 95 रुपए के पैक में 25 ग्राम से लगा कर 145 रुपए में 200 ग्राम के पैक में बिक रहा है. कुछ समय से मांग बढ़ी है."
धार जिले के खेत में कई बीघा में स्टीविया की खेती (Image Credits: Ravivar vichar)
लगातार देंगे बढ़ावा
धार जिले के कई गांव में किसान दीदियों ने अब ज्यादा इंट्रेस्ट दिखाया. आजीविका मिशन की जिला परियोजना प्रबंधक अपर्णा पांडेय कहती है -" जिले के 12 समूह की 120 दीदियों और उनके परिवार स्टेविया की खेती कर रहे. इन्हें लगातार ट्रेनिंग और मार्केटिंग सिखाई जा रही. ज़ीरो लागत और लाखों का मुनाफा मिल रहा. लगभग 100 बीघा में यह खेती हो रही.इसे नेचुरल तरीके से सूखाया जा रहा, जिससे पत्तियां हरी ही रहती हैं. और नो केमिकल प्रोडक्ट है. इस बार कंसलिंग से रकबा बढ़ने के प्रयास किए जाएंगे. ग्रेडिंग और पैकेजिंग के लिए पत्राचार किया जा रहा है." पेरूग्वे,चीन,जापान,अमेरिका के साथ भारत के कई इलाकों में स्टेविया की खेती स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) के लिए बड़ी आजीविका बन रही है. 'रविवार विचार' (Ravivar vichar) नेचुरल प्रोडक्ट का समर्थन करते हुए शुगर मरीज़ों से अपील करता है कि आर्टिफिशियल स्वीटनर का उपयोग नहीं करें.