'पति के छत से गिरने के बाद उनका चलना फिरना पूरी तरीके से बंद हो गया था, बिस्तर से उठने के लिए भी सहारे की ज़रूरत पड़ने लगी. घर वाले परेशान थे, बच्चे पापा के साथ दोबारा से खेलने के लिए तरस रहे थे. इलाज भी कराया, सालों तक चला, लेकिन अंत में उनकी मृत्यु हो गयी.' ये किसी फिल्म का सीन नहीं हैं बल्कि एक महिला के ज़िन्दगी की कहानी हैं. 2015 में अपने पति की मृत्यु के बाद चंबा निवासी सुमन (सुमित्रा) को एक नौकरी के लिए दर दर भटकना पड़ता था. वे कई जगह कम मांगने भी गयी लेकिन हमेशा निराशा ही हाथ लगती. पूरे घर की ज़िम्मेदारी को लिए सुमन बस कोशिश कर रही थीं की कोई एक छोटी सी उम्मीद उनके हाथ लग जाए.
उन्हें शहर की कुछ महिलाओं ने नगर परिषद चंबा में कार्यरत नर्सी, पूनम और NULM की कोर्डिनेटर रुचि महाजन से मिलकर किसी योजना के तहत लाभान्वित होने बारे सलाह दी. आखिरकार उन्होंने नगर परिषद में तैनात महिला कर्मचारियों के साथ संपर्क साधा. इस पर उन्हें स्वयं सहायता समूह (SHG) बना कर आगे बढ़ने की सलाह मिली. आखिरकार उन्होंने स्वयं सहायता समूह बनाया. सुमन ने वर्ष 2006 में ब्यूटीशियन का कोर्स किया था, जिसकी मदद से उन्होंने ब्यूटीपार्लर चलाने का निर्णय लिया.
कहते हैं न मेहनत का परिणाम हमेशा मिलता हैं. बस इसी सोच के साथ वे कार्य में जुटी रहीं और उन्हें कम मिलता गया. वे बताती हैं, "स्वयं सहायता समूह के बल पर ही मैंने अपने बच्चों को पढ़ाया." उन्होंने अपनी बात पूरी करते हुए कहा, "अब तक मैं 30 युवतियों को अपने स्तर पर निशुल्क प्रशिक्षित कर चुकी हैं. साथ ही 300 से अधिक महिलाओं को self help group से जोड़ कर अपने पांव पर खड़ा होने की सीख दे रही हूँ." सुमन ने साबित कर दिया, की दुःख चाहे कितने भी बड़े क्यों न हो, अपने पैरो पर खड़े होने से नहीं रोक सकते. परेशानियां तो आती रहती हैं, लेकिन अगर आगे बढ़ने के ठान ली जाए तो आपको कोई नहीं रोक सकता.