क्या आप जानते है नॉर्थ ईस्ट भारत (North-East India) में कितनी ट्राइब्स हैं ? इसी बारे में लोगों को बताने के लिए अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) की इलेक्ट्रिकल इंजीनियर ने डॉल बनाना शुरू किया. उन्होंने अपने क्रोशिया (crochet) के हुनर को अपने समुदायों के बारे में बताने के लिए इस्तेमाल किया. इदु-मिशमी जनजाति (Idu-Mishmi tribe) से ताल्लुक रखने वाली सुषमा लिंग्गी (Sushma Linggi) दिबांग घाटी के रोइंग की रहने वाली हैं. बिजली विभाग, अरुणाचल प्रदेश में असिस्टेंट इंजीनियर (Assistant Engineer) के पद पर करियर की शुरुआत की. काम के बीच थोड़ा वक़्त मिलता तो बुनाई और कढ़ाई कर लिया करती.
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एक बार इंटरनेट ब्राउज़ करते समय, उन्होंने क्रोशिया से बनी गुड़िया देखी. वह तुरंत उस जैसी गुड़िया बनाने लगी. लेकिन वो उस जैसी गुड़िया बना नहीं पाई. उन्होंने इंटरनेट का सहारा लेने का सोचा. सुषमा ने ऑनलाइन ट्यूटोरियल वीडियो देखकर इन गुड़ियों को बनाना सीखा. सुषमा अपनी मां को पारंपरिक मेखला (थुवे) और बीडिंग ज्वैलरी (लेकेपो) बनाते हुए देखा करती थी. उनकी मां अभी भी पारंपरिक कला का इस्तेमाल कर हैंडबैग बनाकर उन्हें बेचती हैं. उनकी मां की कृतियों ने उन्हें इन गुड़ियों को आदिवासी स्पर्श देने के लिए प्रेरित किया. सुषमा ने कुछ जनजातियों की गुड़िया बनाई है और ज़्यादा से ज़्यादा जनजातियों को कवर करने का लक्ष्य रखती है.
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“हमारे हैंडीक्राफ्ट (handicraft) राज्य की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का अनमोल हिस्सा है. मैं अपनी संस्कृति को बाकी दुनिया के साथ साझा करना चाहती हूं. अगर इन गुड़ियों को बनाने से हमारे कल्चर (culture) को दुनिया तक पहुंचाने में थोड़ी भी मदद मिल सकती है तो मैं इन्हें बनाना जारी रखूंगी", सुषमा (Sushma) ने कहा.
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शौक के तौर पर उन्होंने 2018 में इन डॉल्स को बनाना शुरू किया. लोग उनकी डॉल्स को खरीदने की इच्छा दिखाने लगे. इससे प्रेरित होकर, आखिरकार जुलाई 2019 में डॉल्स को बेचना शुरू किया. सुषमा बताती है कि आकार और काम की डीटेल के हिसाब से एक गुड़िया बनाने में उन्हें लगभग 4 घंटे से 4 दिन लगते हैं.
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भारत 80 % से ज़्यादा खिलौनों का आयात (import) चीन से करता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) द्वारा 'आत्मनिर्भर भारत' (Atmanirbhar Bharat) पहल की शुरुआत ने स्थानीय किसानों, उद्यमियों आदि को आशा की किरण दी है. उनका कहना है कि अगर स्थानीय आर्टिस्ट (local artists) को बढ़ावा मिलेगा तो आयात में कमी आ सकती है. साथ ही, प्लास्टिक (plastic) की जगह मुलायम धागे या ऊन से बने खिलौने कार्बन फुटप्रिंट (carbon footprint) कम करने में मदद करेंगे. ये खिलौने बच्चों को भी कोई नुक्सान नहीं पहुंचाते. खेल-खेल में बच्चों को उनकी संस्कृति के बारे में भी पता चल जाता है. उनके जैसी दिखने वाली गुड़िया से बच्चे ज़्यादा लगाव महसूस करते हैं.
सुषमा उनके क्षेत्र में चल रहे स्वयं सहायता समूहों (Self Help Groups-SHG) की महिलाओं को यह कला सिखाना चाहती हैं, ताकि राज्य के कल्चर को दर्शाने वाली ऐसी डॉल्स ज़्यादा से ज़्यादा बन सके और महिलाओं को इसके ज़रिये आमदनी के अवसर भी मिले.