अक्सर कचरा समझ कर फैक दीं जाने वाली चीज़ों से लोग कुछ ऐसा बना लेते है ,जिसे देख कर पहचान पाना मुश्किल है. इस तरीके से सामन बनने को 'बेस्ट फ्रॉम वेस्ट' नाम दिया गया है. इस प्रक्रिया में बनने वाला सामन इतना सुन्दर होता है की देख कर किसी का यकीन कर पाना मुश्किल हो जाता है की यह चीज़ को पहले फैका जा रहा था. 'बेस्ट फ्रॉम वेस्ट' का ट्रेंड बहुत तेजी से पुरे भारत में फ़ैल चूका है और इसी के बीच दक्षिण कन्नड़ के विटला पडनूरू की महिलाओं ने दिखा दिया कि वे नारियल के गोले से दुर्लभ सजावटी कला का काम कर सकती हैं, जो सामान्य परिस्थितियों में इस्तेमाल होने के बाद हर घर से फेंक दिया जाता है. गांव की ग्राम पंचायत में नारियल के गोले से सजावटी कलाकृतियां बनाने पर पहली बार एक कार्यशाला आयोजित की.
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स्वरोजगार को प्रोत्साहित करने के लिए संजीवनी ऊक्कुट्टा की महिला स्वयं सहायता समूहों ने कार्यशाला का आयोजन किया. कार्यशाला में सैकड़ों महिलाओं ने भाग लिया जो दक्षिण कन्नड़ जिला नारियल किसान संगठन, नाबार्ड और भारतीय विकास ट्रस्ट की पहल के कारण मुमकिन हुआ. नारियल के छिलके से बने उत्पादों की विदेशों में काफी मांग है. इसी मांग को पूरा करने के लिए और नारियल की खेती करने वाले किसानो के नुक्सान को बचाने के लिए इस कार्यशाला का आयोजन किया गया था. संगठन अब हर महीने ऐसी कार्यशालाएं आयोजित करके अधिक से अधिक महिलाओं तक पहुंचने का इरादा रखता है. यह एक बहुत अच्छी पहल है जिससे महिलाओं को अपना कौशल दिखाने का और साथ है पाने परिवार को वित्तीय मदद करने का मौका मिलेगा. सिर्फ कर्नाटक के बंटवाल में ही नेह बल्कि बेस्ट फ्रॉम वेस्ट का कांसेप्ट पुरे भारत को अपनाना चाहिए. महिला स्वयं सहायता समूह इससे काफी आगे बढ़ेंगी और उनकी प्रगति बीच यह एक बड़ा कदम होगा.
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