अपने लोगों को कहते हुए सुना होगा कि एक बच्चे को पलने के लिए पूरा गांव लगता है. ये बात जिस इनसां ने भी कही, उसे एक बार उत्तर प्रदेश के सीतापुर की 'सुपरमॉम' सुधा पांडे से मिलना चाहिए, जिसने न केवल अपने चार बेटों बल्कि गायों की भी देखभाल की बल्कि यह भी सुनिश्चित कि उनके गांव की महिलाएं भी सशक्त बने और और उनके बच्चे भी पढ़ पाए. जब भी उनकी एक उत्कृष्ट माँ के रूप में प्रशंसा की जाती है, तो उनकी आँखों में चमक और आसूं एक साथ आ जातें है. उन्होंने कितनी कठिनाइयों के बावजूद भी अपने बेटों को पाला और उन्हें सफल व्यक्ति बनाया. उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि उनके चारों बेटों को सही शिक्षा मिले. उनकी दैनिक जरूरतों का ख्याल रखने के अलावा, अपनी छोटी सी गौशाला को भी चलाया. आज वह गौशला, 2002 में गठित self help group की 11 महिलाओं को रोजगार देने वाला, एक पुरस्कार विजेता डेयरी व्यवसाय बन चूका है.
उन्होंने जैविक खाद बनाने और किसानों को बेचने के लिए अपने शेड से गाय के गोबर और गोमूत्र बेचना भी शुरू कर दिया. अपने बढ़ते व्यवसाय के कारण, सुधा को क्षेत्र में सर्वाधिक दूध उत्पादन के लिए दिए जाने वाले 'गोकुल पुरस्कार' से छह बार सम्मानित किया जा चुका है. 2021 में देशी नस्ल की गायों के संरक्षण के लिए 'नंद बाबा पुरस्कार' भी जीता. सुधा पण्डे बताती है- “शुरुआत में, ग्रामीणों को यह पसंद नहीं आया कि मैं बाहर काम कर रही हूँ. इसे पुरुषों के काम के तौर पर देखा जाता था. मैं गायों को चराने और अपने बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करने के लिए सुबह 4 बजे उठ जाया करती थी. मेरा मानना है कि आत्म-प्रेरणा ने मुझे बच्चों और गायों की देखभाल करने में भी मदद की.” सुधा की यह कहानी हर उस महिला के लिए प्रेरणा बनेगी जिसे अपना जीवन बदलने की इच्छा है. सुधा ने हर परिस्थिति में अपने हौसला बरक़रार रखा और इसीलिए वे आज इस जगह पर है.