खजूर पत्तियों से बन रहे झुमके, कंगन और गुड़िया

बदलते वक़्त के साथ अब कच्चे घरों और आलीशान बंगलों में टाइल्स का उपयोग फर्श के लिए किए जा रहे हैं. खोड़ से बने झाड़ू का प्रचलन नहीं रहा. आसाम में बने झाड़ुओं ने इनके जगह ले ली. उज्जैन जिले की 73 की शारदा बाई का परिवार इस परंपरागत कला को बचाने में लगा है.

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विवेक वर्द्धन श्रीवास्तव
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नैरोबी से आई संध्या दुबे हस्तशिल्प सामान पसंद करते हुए (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)

"अब बड़े -बड़े बंगलों और घरों में टाइल्स लगने लगी. झाड़ू भी बदल गए. अब कहां कच्चे मकान और कहां लिपे हुए आंगन... अब खजूर के पेड़ की पत्तियों (खोड़) से बनने वाले झाड़ू लगभग ख़त्म से हो गए. खजूर की पत्तियों से झाड़ू के अलावा मैंने फिर कुछ ऐसी चीज़ें बनाई जिसने इस कला को बचा लिया. मेरे बेटे-बहू और बच्चे तक खजूर की पत्तियों से अलग-अलग सजावट का सामान बना रहे हैं. " इंदौर में आयोजित मालवा उत्सव में आई शारदा बाई ने अपनी बात कही. 

मप्र सहित कई इलाकों में खजूर की पत्तियों से झाड़ू बनाए जाते रहे. बदलते वक़्त के साथ अब कच्चे घरों और आलीशान बंगलों में टाइल्स का उपयोग फर्श के लिए किए जा रहे हैं. खोड़ से बने झाड़ू का प्रचलन नहीं रहा. आसाम में बने झाड़ुओं ने इनके जगह ले ली. उज्जैन जिले के कमेड़ गांव की 73 साल की शारदा बाई का परिवार इस परंपरागत कला को बचाने में लगा है. इन पत्तियों से वह मोर, गणेश, गुलदस्ते, झुमके, हेयरबेंड, गुड़िया जैसे कई आइटम यह परिवार बना रहा है. पत्तियों से बने आइटम की खूबसूरती इतनी है कि देश के कई हस्तशिल्प मेले में इस कला को जगह मिलने लगी. कई पुरस्कार से नवाज़ा गया. 

 handicrafts from khajoor leaves

मालवा उत्सव में स्टॉल (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)

झाड़ू का उपयोग अब केवल गांवों तक सिमित रह गया. शारदा बाई कहती है -" मुझे लगभग 60 साल हो गए. झाड़ू की बिक्री कम हो गई. मुझे लगा अब यह कला ख़त्म हो जाएगी.मैंने परिवार के साथ नए आइटम तैयार किए. वह शासन ने पसंद किए किए. मुझे ख़ुशी है कि हस्तशिल्प मेले में हर जगह मुझे बुलाया जाता है. मेरे पति भी मेरा साथ देते हैं. अब बहुओं के साथ मेरे पोते-पोती भी इस कला को बचा रहे." शारदा बाई हरियाणा के सूरज कुंड, दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, पुरी, चैन्नई, बड़ौदा, खजुराहो सहित कई जगह बुलाया जा चुका है. 

इस कला से जुड़ी परिवार की ही संगीता और रजनी कहती हैं - "शादी हो कर आए जब से ही हमने भी इस कला को सीखा. हमें ख़ुशी है कि सरकार और शासन ने हस्तशिल्प मेले में हमें प्रदर्शन करने और स्टॉल की जगह दी." शारदा बाई के बेटे सुनील वर्मा कहते हैं - "हम लोग जंगल से खजूर की पत्तियां तोड़ कर लाते हैं. उन्हें सूखा कर अलग-अलग तरह का सामान बनाते हैं. मेरा बेटा प्रदीप सहित दूसरे बच्चे भी इस कला को सीख गए."        

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शारदा बाई खजूर कि पत्तियों से गुड़िया बनाते हुए (फोटो क्रेडिट : रविवार विचार)

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कई मंत्री,अधिकारियों ने सम्मान दिया. इंदौर के मालवा उत्सव में शामिल होने आई नैरोबी देश की संध्या दुबे कहती है -" मैं 16 सालों से नैरोबी में रह रही हूं. लेकिन भारतीय लोक संस्कृति और कला की जगह कोई नहीं ले सकता. खजूर की पत्तियों से झाड़ू के अलावा इतनी सुंदर चीज़ें भारत के कलाकार ही बना सकते हैं. इसके यहां की मेहनती महिलाओं ने जिस तरह चूड़ियां और दूसरे सजावटी सामान बनाए, वह मैंने ख़रीदे. सभी विदेश ले जाऊंगी."

प्रदेश में कई जगह हस्तशिल्प मेले के आयोजन सरकार करवा रही है. इंदौर के लालबाग में आयोजित मालवा उत्सव में कई तरह के स्टॉल लगे. मेले में आई धीरल ने भी हस्तशिल्प से जुड़ा सामान ख़रीदा. धीरल कहती हैं - " मुझे खजूर से बने सामान बहुत पसंद आए. मैंने कुछ ख़रीदे भी. ऐसे मेले में हस्तशिल्प और हमारी भारतीय संस्कृति को पहचाने का मौका मिलता है. "  शारदा बाई के टेबल पर सजे हुए खजूर के आईटम देखने वालों की भीड़ ने साबित कर दिया कि हस्तशिल्प को पसंद करने वालों की तादाद बहुत ज्यादा है.

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