साल 628 में पैग़ंबर मोहम्मद ने अपने 1400 अनुयायियों के साथ एक यात्रा शुरू की जो इस्लाम धर्म की पहली तीर्थयात्रा बनी. इसी को हज कहा जाता है. हज इस्लाम के पांच स्तम्भों में से एक है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक़, शारीरिक और आर्थिक रूप से सक्षम हर मुसलमान को अपनी ज़िंदगी में कम से कम एक बार इस फ़र्ज़ को अदा करना ज़रूरी है. हर साल दुनियाभर के मुस्लिम सऊदी अरब के मक्का में हज के फ़र्ज़ को पूरा करने के लिए जाते हैं. पांच दिन की ये तीर्थयात्रा ईद-उल-अज़हा या बक़रीद के साथ पूरी होती है.
महिलाओं और पुरुषों पर सामान रूप से हज फ़र्ज़ किया गया, लेकिन महिलाओं के लिए महरम के साथ हज यात्रा पर जाना अनिवार्य था. साल 2022 में, सऊदी अरब ने इस अनिवार्यता को हटाया. इस्लाम में महरम उस पुरुष को कहा जाता है जो महिला का पति हो या ख़ून के रिश्ते में हो. इस कदम को दुनियाभर के मुसलामानों ने महिलाओं के अधिकारों और सशक्तिकरण की दिशा में एक अहम कदम के रूप में देखा.
भारतीय हज समिति के अध्यक्ष, ए.पी. अब्दुल्लाकुट्टी, बताते हैं कि इतनी बड़ी संख्या में भारतीय महिलाओं का बिना महरम के हज पर जाना सामाजिक विकास का संकेत है.
अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय के अनुसार, जेद्दा में भारतीय दूतावास अकेले यात्रा करने वाली महिलाओं के लिए सुरक्षित आवास की व्यवस्था करने में मदद करेगा. इस नियम में बदलाव की ख़बर के बाद इस बार हज यात्रा पर जाने वाली अकेली 4314 महिलाओं ने अर्ज़ी दी है. देश आज़ाद होने के बाद, 2018 में पहली बार, भारत ने महरम की अनिवार्यता हटाई थी. 2018 से लेकर अब तक करीब 3,401 महिलाएं बिना पुरूष रिश्तेदार के हज यात्रा कर चुकी हैं.
अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय की हज नीतियों के अनुसार 45 वर्ष से ज़्यादा उम्र की महिलाएं जिनके पुरुष रिश्तेदार ना हों, वे चार या उससे ज़्यादा महिलाओं के समूह के साथ हज पर जा सकती हैं.सऊदी अरब के अनुसार अकेली महिला भी इसके लिए आवेदन दे सकती है और इन समूहों का गठन हज कमेटी ऑफ़ इंडिया (एचसीओआई) करेगी. लेखक और वरिष्ठ पत्रकार ज़िया-उस-सलाम ने कहा कि सऊदी अरब महिलाओं के हित में कई परिवर्तनकारी काम कर रहा है, जो सकारात्मक, प्रगतिशील और सराहनीय हैं.