'बीज अम्मा' ला रहीं जैविक मिलेट क्रांति

2023 'इंटरनेशनल ईयर ऑफ़ मिलेट्स' घोषित हुआ. मिलेट्स को बढ़ावा देने के लिए देशभर में स्वसहायता समूह की महिलाएं नए-नए तरीके खोज रही हैं. ज़हीराबाद की बीज अम्माओं की। ये अम्माएं 'बीज रक्षक' हैं और हर मौसम में मिलेट्स की 25 किस्में उगाती हैं.

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beej amma telangana

Image Credits: Google Images

लाल, पथरीली, सूखी, ज़मीन में आज एक क्रांति की कोपल पनप रही है. तेलंगाना के ज़हीराबाद शहर के लगभग 70 गांवों में, महिलाएं अब बाजरा, दालें और तिलहन की कई किस्में उगा रही हैं. दुनिया भर में मिलेट्स की जागरूकता पैदा करने और उसकी खपत बढ़ाने के लिए, संयुक्त राष्ट्र (UN) ने वर्ष 2023 को 'इंटरनेशनल ईयर ऑफ़ मिलेट' घोषित किया. मिलेट्स को बढ़ावा देने के लिए देशभर में स्वसहायता समूह की महिलाएं नए-नए तरीके खोज रहीं है, कभी मिलेट्स का चीला बनाकर, तो कही कुकीज़ बनाकर. मिलेट्स के सफ़र की ये कहानियां रविवार विचार ने आपसे साझा की हैं. ऐसी ही एक कहानी हैं ज़हीराबाद की बीज अम्माओं की. वे एक कृषि-आधारित स्थानीय गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) डेक्कन डेवलपमेंट सोसाइटी (डीडीएस) में काम करती है. 60 साल की अम्मा मिट्टी से प्लास्टर किए हुए प्यालों में 75 किस्मों के बीजों को सावधानी से रखती है और कहती है, "वे भी हमारे बच्चे हैं, और हम उनका ध्यान रखते हैं क्योंकि ये बीज हमारे लिए बहुत ज़रूरी है," 

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ये सभी महिलाएं अपने आप को 'बीज रक्षक' मानते हुए हर मौसम में मिलेट की 25 किस्में उगाती हैं और अभी तक कई महिलाओं को ट्रेनिंग भी दे चुकी हैं. लक्ष्मी अम्मा कनाडा, लंदन, जर्मनी, सिंगापुर, सेनेगल, सिंगापुर, माली समेत 20 देशों का दौरा कर मिलेट्स के बारे में जागरूकता फैला चुकी है. उन्हें महिला सशक्तिकरण के तहत राज्यपाल से पुरस्कार भी मिला. वे मिट्टी की पलस्तर वाली टोकरियों का इस्तेमाल अपने ज्वार के बीजों को बचाने के लिए करते हैं. बीज डालकर गोबर से टोकरियों को ऊपर से बंद कर देते हैं. यह बीजों को बचाने का पारंपरिक तरीका है जिसे ये बीज बैंक कहते हैं. बाजरा अनाज के साथ-साथ चारे के रूप में भी बिकते हैं. 

मोगुलम्मा भी समूह के बीच एक मिनी-सेलिब्रिटी हैं, क्योंकि उन्हें भारत के राष्ट्रपति ने सम्मानित किया. मोगुलम्मा जानती है कि नई मां को कौनसा बीज देना है और बीमार होने पर कोनसा बीज खाया जाता है, अलग-अलग बीमारियों के लिए भी अलग-अलग वैरायटी के आटे का इस्तेमाल किया जा सकता है. उन्होंने अपने बाजरे को खाने से पहले अंकुरित करना भी शुरू कर दिया है जिससे बाजरे के आटे में ताकत बढ़ जाती है. वह हर साल रबी सीजन में 28 और खरीफ सीजन में 30 किस्में उगाती हैं.

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उनकी एक और साथी चंद्रम्मा छोटी-छोटी कृषि तरकीबों को अच्छे से जानती है और उन्होंने अपना पूरा जीवन खेती में लगा दिया. उन्होंने  मिलेट्स और अन्य फसलों की सैकड़ों किस्मों को बचाया और पीढ़ियों के लिए उदाहरण बन गई. वे शादी के बाद महिलाओं के समूह में शामिल हो गईऔर बाजरा के बीज बचाने के नए-नए तरीके खोजने लगी. वे केवल जैविक और प्राकृतिक खेती में विश्वास रखती है. हर दोपहर फसल काटते समय वो धुन गुनगुनाती है और बाजरे की इस क्रांति को और आगे लेजाने के बारे में सोचती है. ये सभी महिलाएं 'इंटरनेशनल ईयर ऑफ़ मिलेट' को नई ऊचाई दे रही हैं. 

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