गरीबी और नक्सली उग्रवाद के लिए सुर्ख़ियों में रहने वाला झारखंड (Jharkhand) का एक जिला अब, रागी से बने स्नैक्स के लिए चर्चा में है. ये चर्चा अब देश के बाहर अमेरिका की हारवर्ड यूनिवर्सिटी (Harvard University) तक पहुंच गई है. बाजरा के इर्द गिर्द एक धीमी क्रांति वहां पनप रही है, जो कुपोषण और गरीबी पर वार करती है. इस पिछड़े जिले में नए कृषि-उद्योग को लाने का काम युवा प्रशासनिक अधिकारी सुशांत गौरव ने किया जिनका सपना है की गुमला पूर्वी भारत की रागी राजधानी बनाना चाहते हैंबन जाए.
राज्य की राजधानी रांची (Ranchi) से लगभग 100 किलोमीटर दूर, गुमला में ये पहल की गई जिसके लिए सुशांत को प्राइम मिनिस्टर्स अवार्ड्स फॉर एक्सीलेंस से सम्मानित किया गया. पहले गुमला की अर्थव्यवस्था चावल की वर्षा पर निर्भर खेती पर टिकी थी. उपायुक्त सुशांत गौरव ने राष्ट्रीय बीज निगम की मदद से उच्च गुणवत्ता वाले बीजों को खरीद रागी की खेती शुरू की. शुरुआत में 1,600 एकड़ के ज़मीन पर रागी की खेती की, जिसे अब बढ़ाकर 3,600 एकड़ ज़मीन पर किया जा रहा है. उत्पादन में 300 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. सखी मंडल महिला स्वयं सहायता समूह (Self help groups-SHG) द्वारा खरीद के बाद सफलता की गति बढ़ गई.
रागी प्रसंस्करण केंद्र स्थापित किया गया जो झारखंड में पहला है. वहां रागी लड्डू, भुजिया नमकीन और आटे का उत्पादन किया जा रहा है. प्रोटीन, कैल्शियम और आयरन से भरपूर होने की वजह से रागी कुपोषण और एनीमिया से लड़ने में मदद करता है. केवल महिलाओं द्वारा संचालित रागी प्रोसेसिंग केंद्र जौहर रागी ब्रांड के तहत 1 टन रागी आटा, 300 पैकेट रागी लड्डू और 200 पैकेट रागी स्नैक्स का प्रतिदिन उत्पादन कर रहे हैं. बच्चों को कुपोषण से लड़ने के लिए रागी के लड्डू और मोरिंगा पाउडर कम कीमत पर काफी ज़्यादा कारगर साबित हो रहे हैं.
अविनाश कुमार, महात्मा गांधी नेशनल फेलो है जिन्होंने डिप्टी कमिश्नर की ओर से हार्वर्ड बिजनेस स्कूल में गुमला मॉडल पर एक केस स्टडी प्रेजेंट की जिसे अंतरराष्ट्रीय बिजनेस स्कूल और ब्यूरोक्रेट्स की ट्रेनिंग के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. इस पहल से महिलाओं को रोज़गार मिलेगा, कुपोषण और एनीमिया की समस्या ख़त्म होगी और 'ईयर ऑफ़ मिलेट' को ऊंचाइयों मिल सकेगी.