दीदी कैफे: ग्वालियर की ख़ास चाय

ग्वालियर में दीदी कैफे की चाय इस समय खास बनी हुई है. गरीबी से ज़िंदगी की शुरुआत करने वाली एक महिला ने कैसे समूह बनाया और कैसे अन्य महिला सदस्यों के साथ जोड़कर सफलता का मुकाम पाया, यही इस चाय और दीदी कैफे को संचालित करने वाले समूह की कहानी है.

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समीर
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didi cafe

ग्वालियर में इन दिनों दीदी कैफे और उसकी चाय का स्वाद लोगों की जुबां पर है. मैं ग्वालियर गया.इस चर्चा को सुनकर मैं भी इस दीदी कैफे तक पहुंचा.सबसे व्यस्त और खास कलेक्टर कार्यालय परिसर में अदरक की खुशबूदार चाय का स्वाद और उसकी चुस्की लिए बिना आप आ ही नहीं सकते. कैंटीन में पहुंचा तो और अधिक आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा. ग्राहकों की भीड़ और  कैफे संभाल रही दीदी से उनके बारे में जाने बिना मैं रह नहीं सका. पता चला इस सफलता और उनके चेहरे पर मुस्कुराहट की वजह SHG है. स्व सहायता समूह के बल पर  रीना राणा के साथ समूह की अन्य साथियों की जिंदगी बदल रही है.

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इस कैंटीन चलाने का भी बड़ा रोचक किस्सा है.जिला प्रशासन और कलेक्टर लंबे समय से अधिकारी और कर्मचारियों की सुविधा के लिए परिसर में ही कैंटीन चाहते थे. परंतु यह हो नहीं पा रहा था. प्रशासन ने दो बार टेंडर भी निकाले.बावजूद कोई भी व्यवस्थित संचालक इस टेंडर प्रक्रिया में शामिल नहीं हुआ. आखिरकार जिला पंचायत के सीईओ और कलेक्टर ने विचार-विमर्श कर राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन अंतर्गत बने हुए महिला स्वसहायता समूह को एक अवसर देने का विचार किया. बस यही से नई शुरुआत हुई. इस प्रक्रिया में गांव लखनौती के मां वैष्णो आजीविका महिला स्वसहायता समूह को मौका मिल गया.अब यह कैफे अपनी कसौटी पर खरा उतर रहा है. इसे देखकर अन्य दो समूह भी अलग-अलग जगह पर दीदी कैफे का संचालन कर रहे हैं.

 इस बीच लगातार ग्राहकों की भीड़ और पैसों का गल्ला संभालती रीना ने बताया कि वह जिले के डबरा विकासखंड की रहने वाली है. बच्चों की ट्यूशन और दिव्यांग पति की देखभाल के बीच वह जैसे तैसे गुजर-बसर कर रही थी. कुछ नया करने का सपना लिए वह ग्वालियर आ गई.यहां उन्होंने कुछ महिलाओं के साथ मिलकर समूह बनाया. नाम रखा मां वैष्णो आजीविका महिला स्वसहायता समूह.महिलाओं ने साथ मिलकर चाय का कैंटीन शुरू करने की ठानी.रीना का कहना है कि वह शुरू से ही चाय बढ़िया बनाती थी. इस बीच किस्मत को मेहनत के बल पर और संवार दिया. कलेक्टर ने रीना और साथियों को उनके उत्साह को देखते हुए एक लाख रुपये का लोन दिया. यही नहीं जिला प्रशासन ने अपने ही परिसर में व्यवसाय शुरू करने की अनुमति दे दी. नाम रखा दीदी कैफे.... फिर शुरू हुआ व्ययसाय...धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ी.ग्राहकों की संख्या बढ़ती चली गई.

कई बार कर्मचारियों के अलावा कलेक्टर और अन्य अधिकारी भी दीदी कैफे की चाय का स्वाद ले चुके हैं. रीना बताती है कि वह दस हजार से 20 हजार रुपए हर माह कमा लेती हैं.रीना ने SHG की कल्पना को साकार कर दिया. अब यह समूह और उनकी सफलता उदाहरण बन गई है. इस इलाके में चाय और उसके स्वाद के साथ आत्मविश्वास का दायरा भी बढ़ गया. दीदी कैफे कलेक्टर कार्यालय के साथ एसपी ऑफिस में भी शुरू किया.रीना का कहना है यदि समूह और सरकार की योजना को ईमानदारी से समझें और इस पर काम करें तो मिलने वाली सहायता के दम पर रोजगार से कमाई को कोई रोक नहीं सकता. ग्वालियर और आसपास दीदी कैसे की सफलता की चर्चा आप किसी से भी सुन सकते हैं. दीदी कैफे से प्रेरणा ले कर अन्य दो समूहों ने भी ऐसे ही कैफे शुरू किए.जिसमें एक कमिश्नर कार्यालय परिसर में है. जब भी कभी आप ग्वालियर जाएं तो दीदी कैफे जरूर जाएं.  और उनकी सफलता की कहानी जरूर देख सुन कर आइए.

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