महुआ बनेगा हर घर का हिस्सा

छत्तीसगढ़ के ऐसे ही डॉक्टर जो आज एक ब्यूरोक्रेट है, जशपुर कलेक्टर डॉ. रवि मित्तल, लोगों के सेहत से जुड़ी समस्याओं को जड़ से ख़त्म करने के लिए महुआ फूल के साथ ऐसे अवसर तैयार कर रहे है, जिससे हमें स्वच्छ पौष्टिक भोजन मिले.

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रिसिका जोशी
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Mahua factory in Chhattisgarh

Image Credits: First Post

'सेहत ही बरकत है' कहते हुए आपने बहुत से लोगों को सुना होगा. हालांकि आज के समय में व्यक्ति की ज़िन्दगी कुछ ऐसी हो गयी है कि उसे अपनी सेहत को अच्छा रखने के लिए मेहनत करनी पड़ती है. पहले के लोगों के लिए यह एक आसान काम था क्योंकि उनका खाना पीना साफ़ और मिलावट रहित था. लेकिन आज यह बात बोल पाना मुश्किल है कि जो हम खा रहे है, वह 100 % शुद्ध है भी या नहीं. बहुत से ऐसे लोग है जो सेहत के विषय पर काम कर रहे है और सब के लिए ऐसे उत्पाद तैयार कर रहें है जो शरीर को नुक्सान ना पहुंचाए और सेहत भी बढ़ती रहे. छत्तीसगढ़ के ऐसे ही डॉक्टर और ब्यूरोक्रेट है, जशपुर कलेक्टर डॉ. रवि मित्तल, लोगों के सेहत से जुड़ी समस्याओं को जड़ से ख़त्म करने के लिए महुआ फूल के साथ ऐसे अवसर तैयार कर रहे है, जिससे हमें स्वच्छ पौष्टिक भोजन मिले. उन्होंने जिस कार्य योजना से काम करने का फैसला किया है वो ना केवल पोषण लाभ प्राप्त करने और कुपोषण से निपटने के लिए बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने में भी एक बहुत मदद साबित होगी.  

मित्तल ने एक फ़ूड प्रोसेसिंग और पैकजिंग लैब भी शुरू की जो ग्रामीण महिला स्वयं सहायता समूहों के लिए एक बहुत बड़ा फायदा साबित होगी. डॉ. रवि मित्तल ने एक सेंटर शुरू किया जिसमें वे महुआ के पेड़ के फूलों से विभिन्न प्रकार के स्वस्थ खाद्य उत्पाद तैयार करेंगे. ग्रामीण और आदिवासी महिलाएं, अच्छी तरह से शिक्षित ना होने के बावजूद इस व्यवसाय को कर रही हैं, क्योंकि जिला खनिज फाउंडेशन फंड की मदद से खाद्य प्रयोगशाला में उन्हें सही मशीनें और उपकरण प्राप्त हुए. महिलाओं को अलग-अलग मशीनों को संचालित करने के लिए प्रशिक्षित किया गया. SHG इन उत्पादों में लगने वाले कच्चे माल को सीधे किसान उत्पादक संगठन से खरीदते हैं. विभिन्न खाद्य पदार्थ जो कि इस लैब में तैयार किया जा रहे है उनमें कुकीज़, केक, अचार, चाय की पत्ती, जेली, दाल, चावल, आटा और कुछ लघु वनोपज शामिल है. 

जशपुर क्षेत्र में लोहे की कमी और कुपोषण सबसे ज़्यादा है. सदियों से आदिवासी समुदाय महुआ का उपयोग हर्बल दवाओं, उपचार और शराब बनाने के लिए कर रहे है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने आदिवासियों के लिए महुआ को एक मल्टीपर्पस वृक्ष बताया है. डॉ. मित्तल ने महुआ आधारित पोषाहार सामग्री हर घर तक पहुंचाने का निर्णय लिया है. वे कहते है- "आहार में पोषक तत्वों की कमी पर निरंतर ध्यान देने की आवश्यकता है. अधिकतम लाभ के लिए हम इसे 'बाजरा मिशन' के साथ भी जोड़ रहे हैं." डॉ मित्तल द्वारा शुरू किये गए इस मिशन से बहुत से परिवार के बच्चे शुद्ध पोषण ले पाएंगे. छत्तीसगढ़ की सरकार को इस पहल को पूरा योगदान देना चाहिए. बाकि राज्यों को भी इस पहल से सीख लेनी चाहिए. SHG महिलाओं के साथ मिलकर इस पहल को पुरे देश में तेजी से फैलाना चाहिए ताकि महिलाएं भी सक्षम बनें और हर पविवार को महुआ के लाभ प्राप्त हों सकें. 

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