मोटे अनाज (Millets) को लेकर पुरे देश में पहल शुरू है, क्यूंकि देश के प्रधानमंत्री के कारण UN ने इस साल को Millets Year 2023 घोषित किया है. इसी कारण सरकार की सक्रियता के चलते मोटा अनाज यानी 'श्रीअन्न' सहायक भूमिका से आगे बढ़कर केंद्रीय भूमिका में नजर आ रहा है. FMCG (Fast Moving Consumer Goods) और खाद्य प्रसंस्करण कम्पनियां भी मोटे अनाज (Millets) की लोकप्रियता बढ़ाने के अभियान को सफल बनाने की शुरुआत कर सकतीं है और इसे मुख्य धारा का अनाज बना सकती हैं.
आजकल मोटे अनाज से बने चिप्स, कुकीज, नूडल्स व अन्य तैयार खाद्य सामग्री लोकप्रिय हो रही है. अब पहल यह है की इस अनाज को लोगों के आम जीवन का हिस्सा बनाया जाए. आहार में मोटा अनाज शामिल करने से उसकी गुणवत्ता सुधारी जा सकती है. कम्पनियों को मोटे अनाज को विभिन्न खाद्य उत्पादों से जुड़ी व्यंजन विधियों के साथ नए प्रयोग करने की आवश्यकता है. यह कंपनियां स्वयं सहायता समूह (SHGs) से मदद ले सकतीं है क्यूंकि यह पहले से ही मोटे अनाज के उत्पादन, बिक्री एवं भण्डारण में लगे हैं. FMCG कम्पनियां पहले से मौजूद मार्केटिंग, सेल्स व वितरण चैनलों के साथ बाजार के इन उभरती महिला self help group के साथ भागीदारी निभाने का सोच रहें है.
भारत सरकार का उद्देश्य है कि वह भारत को millet center बनाए. इस कार्य में भारत सरकार का साथ दे सकतीं है SHG की महिलाएं जो मोटे आनाज के उत्पाद हमेशा से बनती आई है. आंध्र प्रदेश में ऐसी ही 'पायलट परियोजना' शुरू की गई थी. इससे 200 महिलाओं ने छोटी मिलेट मिक्सी से कुछ शुल्क लेकर पास-पड़ोसियों के लिए मोटा अनाज पीसना शुरू किया और इसे लघु उद्योग बना दिया. देश में भले ही श्रीअन्न को अपनाने में कुछ और समय लग सकता है लेकिन एक बार यह चलन शुरू हुआ और लोग अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरूक हो गए तो यह काम बहुत आसान हो जाएगा. FMCG कम्पनियां इतनी सक्षम हैं कि वे सरकार के प्रयासों के साथ मिल कर मोटे अनाज को किसान के खेतों से थाली तक पहुंचा सकती हैं. ऐसा होने पर हम लोगों को तो स्वस्थ रख ही सकते हैं साथ ही पर्यावरण संरक्षण और मजबूत अर्थव्यवस्था का लक्ष्य भी हासिल किया जा सकता है. महिलाएं देश में मिलेटस के प्रचलन को तो बढ़ा ही रहीं थी, लेकिन अब FMCG कम्पनीज और सरकार का इनके साथ मिलकर काम करना बहुत जल्द बदलाव लाएगा.