भारत का कल्चर और धर्म पूरी दुनिया के सबसे लोकप्रिय धर्मों में से के होने के साथ सबसे ज़्यादा कलरफुल भी माना जाता है क्यूंकि यहां ना जाने कितने धर्मों के लोग बसते है. अगर देखा जाए तो पूरे भारत के हर मंदिर से निकलने वाला फूलों का प्रसाद और नारियल का सूखा कचरा इतना होता है कि इसकी बर्बादी पर्यावरण को नुक्सान पहुंचाने लगे. इसी नुक्सान को नियंत्रण में लाने के लिए गुजरात के वड़ोदरा में हाल ही में पावागढ़ में महाकाली मंदिर ट्रस्ट, और वन विभाग, जिला प्रशासन ने मिलकर नारियल के रेशे से कोकोपीट बनाना शुरू कर दिया है.
महाकाली मंदिर में प्रतिदिन हजारों सूखे नारियल चढ़ाये जाते हैं. इससे निकलने वाला भूसा कचरे का कारण बनता था, इसीलिए लोग उसमें आग लगा दिया करते थे. इस कारण जंगलों में भी आग लग जाया करती थी, और बहुत नुक्सान होता था. लेकिन आज वन विभाग की इस पहल से कूड़ा ख़त्म हो चूका है, जंगलों में आग नहीं लग रही और हरियाली भी बढ़ चुकी है. आग लगने के कारण जो जंगल पूरी तरह से बंजर हो गया था वो आज फिर से हराभरा हो चूका है.
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वन विभाग ने मंदिर ट्रस्ट के साथ मिलकर नारियल के छिलकों को कोकोपीट में बदलने के लिए मशीनें लगाई हैं. कोकोपीट नमी जमा कर सकता है और वजन में हल्का होता है. यह पौधे उगाने के लिए बेस्ट ऑप्शन बनता जा रहा है. कोकोपीट बनाने के लिए विभाग ने छोटार्दिवव वन विकास सहभागी मंडली के स्वयं सहायता समूह (SHG) महिलाओं को शामिल किया गया है. वन विभाग ने नवलखी कोठार के आसपास 10 हेक्टेयर भूमि में 42,000, पावागढ़ की तलहटी में 20 हेक्टेयर भूमि में 32,000 और माची की सड़क पर कोकोपीट का उपयोग कर 2,500 पौधे लगाए. आने वाले दिनों में महिलाएं महाकाली मंदिर के आसपास 11,111 पौधे और मंदिर ट्रस्ट द्वारा विकसित किए जा रहे डाइनिंग हॉल के आसपास 4,444 पौधे लगाएंगी.
Self Help Group की यह महिलाओं के लिए यह पहल बहुत फायदेमंद साबित होगी. SHG महिलाएं हर समय पर्यावरण को बचाने के लिए प्रयास करती रहती है. पर्यावरण सुरक्षा के साथ इन्हे अपनी आजीविका तैयार करने का मौका भी मिल रहा है. सरकार और वन विभाग का ये कदम सराहनीय है. सिर्फ गुजरात ही नहीं बल्कि हर राज्य को महिलाओं और पर्यावरण के लिए यह कदम उठाना चाहिए.