सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख: डॉक्टरों की सुरक्षा पर सवाल
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक स्नातकोत्तर प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ हुए बलात्कार और हत्या की घटना पर गहरी चिंता व्यक्त की है. इस मामले को "भयानक" करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टरों, विशेष रूप से महिला डॉक्टरों की सुरक्षा को लेकर महत्वपूर्ण मुद्दे उठाए हैं. मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व में तीन न्यायाधीशों की बेंच ने इस मामले को गंभीरता से लिया है, जो पूरे देश में आक्रोश का कारण बना है और कार्यस्थलों में डॉक्टरों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सुधार की मांग कर रहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने डॉक्टरों की सुरक्षा पर उठाए सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को केवल एक अपराध के रूप में नहीं, बल्कि डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए एक व्यापक चिंता के रूप में देखा है. न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि कोलकाता के इस बलात्कार-हत्या मामले से डॉक्टरों की सुरक्षा पर गंभीर "प्रणालीगत मुद्दे" उजागर होते हैं. मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि अदालत को इस बात की गहरी चिंता है कि युवा डॉक्टरों के लिए काम करने की सुरक्षित परिस्थितियां नहीं हैं, जो कार्यस्थल में लैंगिक समानता के लिए गंभीर प्रभाव डालता है.
मीडिया द्वारा पीड़िता की पहचान उजागर करने पर सुप्रीम कोर्ट की आलोचना
अदालत ने एक और गंभीर मुद्दे पर प्रकाश डाला, जिसमें मीडिया में पीड़िता की पहचान का व्यापक प्रसार शामिल था. पीठ ने इस बात पर अपनी नाराजगी व्यक्त की कि पीड़िता का नाम, फोटो और वीडियो व्यापक रूप से फैलाए गए, जिसे अदालत ने "अत्यंत चिंताजनक" बताया.
डॉक्टरों के लिए सुरक्षित कार्य परिस्थितियों के लिए राष्ट्रीय प्रोटोकॉल की मांग
अदालत ने युवा डॉक्टरों के कठिन कार्य घंटों को लेकर भी चिंता जताई.
"अधिकांश युवा डॉक्टर 36 घंटे तक काम कर रहे हैं, हमें सुरक्षित कार्य परिस्थितियों को सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय प्रोटोकॉल विकसित करना चाहिए," अदालत ने कहा.
पीठ के ये बयान यह दर्शाते हैं कि उच्च दबाव वाले वातावरण जैसे अस्पतालों में चिकित्सा पेशेवरों की सुरक्षा के लिए व्यापक नीतियों की आवश्यकता है.
आरजी कर अस्पताल के प्रधानाचार्य की नियुक्ति पर सवाल
अदालत ने आरजी कर मेडिकल कॉलेज के पूर्व प्रधानाचार्य संदीप घोष के व्यवहार पर भी सवाल उठाए, जिन्होंने घटना के केवल दो दिन बाद इस्तीफा दे दिया था. पीठ ने पश्चिम बंगाल सरकार के उस फैसले पर सवाल उठाया, जिसमें घोष को कलकत्ता मेडिकल कॉलेज के प्रधानाचार्य के रूप में नियुक्त किया गया, जबकि उनका आचरण केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा जांच के दायरे में था. सीबीआई ने चार दिनों में करीब 53 घंटे तक घोष से पूछताछ की, जिसमें डॉक्टर के शव मिलने के बाद उनके कार्यों पर ध्यान केंद्रित किया गया.
पश्चिम बंगाल सरकार की प्रतिक्रिया पर भी सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार के इस मामले के प्रति दृष्टिकोण पर भी सवाल उठाए, विशेष रूप से डॉक्टर की मौत के बाद उभरे प्रदर्शनों के संबंध में. पीठ ने चेतावनी दी कि राज्य की शक्ति का प्रदर्शनकारियों पर दमन नहीं होना चाहिए. अदालत ने इसे "राष्ट्र के शुद्धिकरण का समय" करार देते हुए उचित और न्यायपूर्ण प्रतिक्रिया की आवश्यकता पर जोर दिया.
अदालत ने यह भी कहा कि अपराध स्थल पर कानून व्यवस्था बनाए रखने में राज्य की विफलता पर भी सवाल खड़े किए. अदालत ने पूछा कि पश्चिम बंगाल सरकार अपराध स्थल को सुरक्षित क्यों नहीं कर पाई और महत्वपूर्ण सबूतों की रक्षा क्यों नहीं कर सकी.
डॉक्टरों की सुरक्षा पर व्यापक सुधार की जरूरत
मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने कहा कि विशेष रूप से महिला डॉक्टरों की सुरक्षा एक राष्ट्रीय मुद्दा है. उन्होंने जोर देकर कहा कि समानता का सिद्धांत चिकित्सा पेशेवरों के लिए व्यापक सुरक्षा की मांग करता है. "राष्ट्र को अगली घटना का इंतजार नहीं करना चाहिए," मुख्य न्यायाधीश ने कहा, यह इंगित करते हुए कि जबकि कुछ राज्यों में चिकित्सा पेशेवरों की सुरक्षा के लिए कानून हैं, वे अक्सर प्रणालीगत मुद्दों का समाधान करने में विफल रहते हैं.
दुखद घटना और राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन
9 अगस्त को आरजी कर मेडिकल कॉलेज के सेमिनार हॉल में 31 वर्षीय डॉक्टर का शव मिलने के बाद से राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन और न्याय की मांग जोर पकड़ रही है. इस अपराध से जुड़े एक नागरिक स्वयंसेवक को गिरफ्तार किया गया है, लेकिन इस मामले ने भारत में चिकित्सा पेशेवरों की सुरक्षा को लेकर व्यापक चिंताएं उजागर कर दी हैं.