IIM-काशीपुर (IIM Kashipur) और उत्तराखंड कृषि उत्पादक और विपणन बोर्ड (Uttarakhand Agricultural Producers and Marketing Board) ने जून में शुरू होने वाली एक परियोजना के लिए एमओयू (MoU) साइन किया. इसके तहत IIM के छात्र स्थानीय किसानों को अपनी उपज की मार्केटिंग स्ट्रेटेजी (Marketing Strategy) तैयार करने और पॉलिसी (policy) बनाने में मदद करेंगे. इससे पहाड़ी क्षेत्रों में किसानों के लिए बाजार तक पहुंचने की रास्ते खुलेंगे. इसमें आईआईएम (IIM) के छात्रों की एक टीम शामिल होगी जो कृषि उपज की मात्रा, गुणवत्ता और निर्यात (export) क्षमता पर डेटा इकट्ठा करने के लिए सर्वे करेगी. इस डेटा का इस्तेमाल स्थानीय किसानों की उपज के हिसाब से कारगर मार्केटिंग प्लान और नीतियों को तैयार करने के लिए किया जाएगा.
पायलट प्रोजेक्ट (pilot project) बागेश्वर में शुरू होगा और दूसरे जिलों में भी चलाया जायेगा. पहले चरण में बागेश्वर में 'अपनू मार्केट' में सुधार कर उसे दोबारा बेहतर ढंग से शुरू किया जायेगा. किसान उत्पादक संगठन (FPO) और महिला स्वयं सहायता समूह (Self Help Group) इन कृषि उत्पादों को बढ़ावा देने और बेचने में अहम भूमिका निभाएंगे. बागेश्वर में सफलता दूसरे जिलों की लिए प्रेरणा बनेगी.
मंडी निदेशालय ने पहले पहाड़ी उत्पादों को इकट्ठा करने और बेचने के लिए कलेक्शन सेंटर शुरू किये थे. यह योजना सफल नहीं हो सकी क्योंकि कलेक्शन सेंटर से सीधे किसानों का जुड़ना मुश्किल था. मंडी निदेशक, आशीष भटगैन बताते है, "हम अपने बाजारों को आधुनिक बनाने और उन्हें और ज़्यादा कुशल बनाने के लिए काम कर रहे हैं. आईआईएम के साथ सहयोग हमें इस लक्ष्य को पूरा करने में मदद करेगा.
आईआईएम और यूकेएपीएमबी के बीच इस सहयोग का लक्ष्य पहाड़ी क्षेत्र के किसानों को बाजार तक पहुंचने में मदद करना है. सटीक डेटा और नये मार्केटिंग के तरीके के साथ, यह साझेदारी कृषि क्षेत्र में विकास की काफी संभावनाएं रखती है. परियोजना की शुरुआत पहाड़ी क्षेत्र के कृषि उद्योग में विकास और बदलाव की दिशा में एक सराहनीय कदम है. आगे चलकर निदेशालय मंडियों के हर काम को ऑनलाइन करने की योजना बनाई जा रही है. आईआईएम के छात्र मंडियों के कामों का सर्वे कर ऑनलाइन वर्कशीट भी तैयार करेंगे. मार्केट फीस और डेवलपमेंट फीस भी ऑनलाइन जमा होगी.
डिजिटल बदलाव के इस दौर में किसानों को डिजिटल इकोसिस्टम से जोड़ना, उनकी उपज बढ़ाने, मुनाफा दोगुना करने, और बाजार तक पहुंचने में मदद करेगा. इससे न केवल किसानों का पर स्वयं सहायता समूहों का भी फायदा होगा. SHG मार्केटिंग में मदद करेंगे और इस परियोजना से उन्हें रोज़गार मिलेगा.