अपने घरों में उपयोग आने वाली हल्दी और मेहंदी से हर्बल बल्ब बनेंगे और वे रोशनी भी देंगे. यह बात सुनकर आप अचरज में जरूर पड़ गए होंगे. पर आपको बता दें यह अब कुछ समय बाद ये बल्ब देखने को मिल सकते हैं. लगातार चार साल के गहन इस रिसर्च से यह सफलता मिली. ये शोधार्थी इंदौर के इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) के हैं. खास बात यह है कि इन छह शोधार्थियों में चार छात्राएं हैं. हाल ही में प्रकाशित साइंस जर्नल्स में यह शोध प्रकाशित हुआ. सैद्धांतिक इस सफल परिणाम के बाद अब इंजीनियरिंग वर्क करना बाकी है. यह हर्बल इल्क्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है.सब कुछ ठीक रहा तो देश-विदेश के बाज़ारों में हर्बल बल्ब देखने को मिलेंगे.
पूरी तरह सुरक्षित इस रिसर्च के प्रमुख गाइड प्रोफेसर डॉ. राजेश कुमार हैं जिन्होंने शोधार्थियों को लगातार मार्गदर्शन दिया. इस टीम में प्रोफेसर हेमचन्द्र झा सहयोगी हैं. रिसर्चर टीम में खासतौर पर भूमिका साहू और तनुश्री घोष के अतिरिक्त सुचिता कांडपाल ,चंचल रानी ,लव बंसल और देव रथ शामिल हैं. इस प्रोजेक्ट 'सर्ब ' के तहत साथ में इंडो-जर्मन साइंस एंड टेकनॉलोजी सेंटर ने फंडिंग की है.प्रो. राजेश कुमार कहते हैं - "इसे समझना बहुत आसान है. पहले आप एलईडी बल्ब को समझिए. इसमें बल्ब में केमिकल को अल्ट्रा वॉयलेट रेड से रिफ्लेक्ट किया जाता है और रोशनी निकलती है. इसमें सेमीकंडक्टर का उपयोग होता है. रिसर्च में हमने पाया कि सेमीकंडक्टर को किसी प्राकृतिक चीज़ में बदला जाए. लगातार कोशिश में हमने देखा कि जब हल्दी पॉवडर से अल्ट्रा वॉयलेट किरणें गुजरती है तो हरे रंग की लाइट निकलती है."
रिसर्चर द्वारा तैयार ग्राफ जिसमें हर्बल बल्ब के सिद्धांत को समझाया (फोटो क्रेडिट :आईआईटी, इंदौर)
इस उलब्धि के बाद सभी रिसर्चर के चेहरे भी खिल उठे. चार सालों की मेहनत में रंग भर गए. इस टीम की प्रमुख भूमिका और तनुश्री ने और ताकत झोंकी. प्रो. कुमार ने रात-दिन गाइड किया. प्रो. कुमार आगे बताते हैं -" हमने रिसर्च को आगे बढ़ाया. हमने पाया कि यही रेज़ यदि मेंहदी से होकर निकलती है तो लाल रंग देने लग जाती है. यह सभी लिक्विड स्टेट में पाया गया." यह रिसर्च की दूसरी पायदान थी जब उपलब्धि में नई उम्मीद जाएगी. सभी छह छात्रों ने प्रयास किया कि इसका स्थाई परिणाम निकले.
रिसर्चर के साथ गाइड प्रो. कुमार ने इसे और सरल बना दिया. प्रकृति में पीला रंग बनाने के लिए लाल रंग और हरे रंग को मिलाना होता है. बस इसी सिद्धांत पर हल्दी और मेहंदी का लिक्विड बनाया. और इसी लिक्विड मिश्रण में अल्ट्रा वॉयलेट लाइट को डाला गया. कुमार कहते हैं - "बस फिर क्या था,रिसर्च को नई रोशनी मिली और इस प्रयोग में पीली लाइट बाहर निकलने लगी.यही आधार पर बल्ब बनाने के प्रयास किया जा रहा हैं. इसमें लिक्विड मिश्रण को ठोस अवस्था में बदलना होगा. साथ इसे अल्ट्रा वॉयलेट मेथड से जोड़ना है. इस रिसर्च को टेक्निकल रूप देना है." यह संस्थान दूसरे बड़े स्थापित संस्थानों से बाद में शुरू हुआ. बावजूद यहां के प्रबंधन और शैक्षणिक स्टाफ ने रिसर्च के क्षेत्र में लगातार काम किया. जनसंपर्क अधिकारी कमांडर सुनील कुमार कहते हैं -"जब हमारे यहां के विद्यार्थियों कि उपलब्धि देश-विदेश तक पहुंचती है तो प्रसन्नता होती है. सभी की मेहनत रंग ला रही है." इंदौर में जहां आईआईटी संस्थान है वहीं आईआईएम संस्थान भी अलग पहचान रखता है.