भारत G20 की अध्यक्षता कर रहा है, जिसके तहत वाराणसी (Varanasi) में कृषि प्रमुख वैज्ञानिकों (scientists) की बैठक (meeting) आयोजित की गई. इसका लक्ष्य, ऐसी राष्ट्रीय नीतियों (national policies) को बढ़ावा देना था जो पोषण-संवेदनशील कृषि-खाद्य प्रणाली परिवर्तन (nutrition-sensitive agri-food system transformation) लाने में सहयोगी बनें. इससे छोटे किसान मौसम के अनुकूल उत्पादन उपायों को अपनाकर सशक्त बनेंगे, जिससे स्वस्थ समुदायों को बढ़ावा मिलेगा.
ओडिशा के आदिवासी बहुल कोरापुट जिले में एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन (MSSF) के 'अन्नदत्त न्यूट्रिशनल गार्डन मॉडल' (Annadatta Nutritional Garden Model) एक उपयोगी उदाहरण है. कभी घने जंगलों से ढके हुए, यह खनिज समृद्ध जिला तेजी से जंगलों की कटाई और क्लाइमेट चेंज के प्रकोप का सामना कर रहा है, जिसने आदिवासी किसानों के तरीकों को गहराई से प्रभावित किया है.
एमएसएसएफ मॉडल का लक्ष्य स्वयं सहायता समूहों (Self Help Groups-SHG) के ज़रिये जिले में महिला किसानों (woman farmers) की क्षमता को बढ़ाना है ताकि वे अपने घरों में फलों और सब्जियों की खेती कर सकें. कई फसलें उगाकर, परिवार की खाद्य और पोषण सुरक्षा को बढ़ाया जा सकता है. अन्नदत्त मॉडल के लगातार प्रयासों से, खासकर बात करने से परिवारों के उपभोग पैटर्न में सकारात्मक बदलाव आया है. दैनिक आहार अब सब्जियों, फलों और इसके अलावा, दालों के रूप में संतुलित हो गया है, जो खनिजों और विटामिनों सहित पोषक तत्वों से भरपूर है. ख़ास बात यह है कि, इससे पूरे साल परिवार की पोषण सुरक्षा का ध्यान रखा जा सकता है.
किसानों की आय दोगुनी करने वाली समिति (डीएफआई) (Doubling Farmers’ Income - DFI), 2017 की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में शहरी और ग्रामीण आबादी अभी भी पोषण से जुड़ी स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं जैसे, असंतुलित आहार का सामना करती है. इसके बावजूद कि देश बड़ी मात्रा में अनाज, दालें, फल, सब्जियां, दूध, मांस, मछली और अंडे जैसे पौष्टिक खाद्य पदार्थों का उत्पादन करता है. इसलिए, रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि ऐसी फसलों की मांग बढ़ानी होगी, जो न केवल किसानों के मुनाफे के लिए बल्कि परिवारों के पोषण और स्वास्थ्य के लिए भी ज़रूरी हो.
विशेषज्ञों का मानने है कि बाजरा (ज्वार, रागी, बाजरा आदि) प्रोटीन, खनिज और विटामिन के मामले में गेहूं और चावल की तुलना में तीन से पांच गुना ज़्यादा पौष्टिक होते हैं. उन्हें उत्पादन के लिए बहुत कम पानी की ज़रुरत होती है. बाजरा के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए भारत 'इंटरनेशनल ईयर ऑफ़ मिलेट' (International Year of Millet 2023) को भी लीड कर रहा है. इस तरह के प्रयासों से खाद्य सुरक्षा बढ़ेगी, किसानों को मुनाफा होगा और संतुलित भोजन आम जनों तक पहुंच सकेगा.