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कहते है अजूबों का देश है भारत , यहां हर वो बात मुमकिन है, जो शायद पूरी दुनिया में लोग सोचते भी नहीं होंगे. चाहे वो विकलांग होने के बावजूद माउंट एवेरेस्ट पर चढ़ना हो (अरुणिमा सिन्हा), या दुनिया के सबसे कठिन रेस में जीतना. पूरी दुनिया पर छा चूका है एक भारतीय महिला का नाम जिसने 'मैराथन ऑफ़ सैंड' को जीत लिया है. कहा जाता है की मैराथन ऑफ़ सैंड दुनिया की सबसे मुश्किल रेस है. ऐसी रेस में भी आगे है एक भारतीय महिला महाश्वेता घोष.
भारत के पश्चिम बंगाल की रहने वाली है महाश्वेता. जब उन्होंने इस रेस में हिस्सा लिया तब से वह जानती थी कि नतीजा कुछ भी हो सकता है. रेस का नियम है कि आप अपने परिवार वालो से भी बात नहीं कर सकते. महाश्वेता जानती थी कि उन्हें कुछ हो भी गया तो भी वे किसी को नहीं बता पाएंगी. जान का जोखिम होने के बावजूद, महाश्वेता ने इस रेस को जीतकर इतिहास रच दिया. मैराथन ऑफ सैंड सहारा के रेगिस्तान में आयोजित होने वाली एक प्रतियोगिता है. प्रतियोगिता सात दिन तक चलती है और रेस में कुल 256 किलोमीटर चलना होता है. मौसम और रेगिस्तानी ट्रैक, तापमान भयानक गर्म, पैरों में छाले, अत्यधिक प्यास, और इतना सब होने के बाद भी अपने गोल तक पहुंचना! किसी से कोई बातचीत नहीं, अकेले चलते रहना, साथ में एक बैग जिसमें ज़रूरत का सामान होता है. ये सब पार कर जीती है भारत की बेटी महाश्वेता.
जब इन्होने रेस में भाग लेने का तय किया, ये ओवरवेट थी. ताने सुनती थी, लेकिन ठान चुकी थी अपनी कमजोरी को ताकत बना लेंगी. महाश्वेता ने वजन कम करने के लिए दौड़ना शुरू कर दिया. बस फिर क्या था, महाश्वेता ने अपने वजन को तो कंट्रोल किया ही, साथ में मैराथन ऑफ़ सैंड में दौड़ने का फैसला कर लिया. अपनी डाइट और लाइफस्टाइल को इस तरह से मैनेज करने लगी कि आज पूरी दुनिया में अपना और देश का नाम रोशन कर रही है.
दुनिया की सबसे मुश्किल रेस को भी अपने हौसले और जज़्बे से जीतने का दम रखती है, भारतीय महिलाएं. चाहे घर हो, काम हो, या इस तरह के जोखिम और डर से भरे कारनामे, महिलाओं के लिए अब कुछ भी नामुमकिन नहीं. वे एक अच्छी हाउस वाईफ, बेस्ट बिज़नेस वीमेन, निडर माउंटेनियर, या बेहतरीन एथलीट सब कुछ हो सकती है.